Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६
४२१ नयचक्र-भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., गद्य, वि. १७२६, आदि: वंदो श्रीजिनके वचन; अंति: कीनो वचन
विलास. ११९८३२. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन व चोमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२,
१३४२७). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ.१आ, संपूर्ण.
ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवल ज्ञानकमला; अंति: पद्मविजय सुहितकर, गाथा-७. २. पे. नाम. चोमासीपर्व देववंदन, पृ. २अ-१३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-),
(पू.वि. महावीरजिन चैत्यवंदन गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ११९८३४. (#) प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १५४२७-३०). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: (-),
(पू.वि. ढाल-५ तक है.) ११९८३५. (+#) वैराग्यशतक व प्रतिक्रमण समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की
स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ४-७४३६). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वैराग्यशतक.
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, गाथा-१०४.
वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार जांणिउ; अंति: पामीस तुं शाश्वतुं ठाम. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण समाचारी सह टबार्थ, पृ. ९आ-१३आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्मं नमिउं देविंद; अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स,
गाथा-४०. प्रतिक्रमण समाचारी-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त भलीपरइ मनवचन काया; अंति: सूत्रनउ
अणाविर्णउ. ११९८३६. (+#) नवतत्त्वप्रकरण, दंडकप्रकरण व लघुसंग्रहणी आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, कुल
पे. ४, प्रले. मु. भाग्यसोम (गुरु आ. आणंदसोमसूरि); पठ. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ११४३०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व. ___ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उद्धरिउ रुद्धाओसुअ समुदाओ, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-१५ से
२. पे. नाम. दंडकप्रकरण, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दंडक. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ,
गाथा-४४. ३. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नानीसंघयणी.
आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३१. ४. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. १०अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. पेथापुर, पे.वि. हुंडी:भाष्य.
आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाणभाष्य गाथा-२६ तक है.) ११९८३९. मिथ्यात्वीकृत निरवद्यक्रिया मतपष्टि चौपाई व लघज्येष्ठविनयव्यवहार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५,
कुल पे. २,प्र.वि. हुंडी:नि०., जैदे., (२४४१२.५, ८x२३). १. पे. नाम. मिथ्यात्वीकृत निरवद्यक्रिया मतपुष्टि चौपाई, पृ. १अ-२५अ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, वि. १८४७, आदि: अरिहंत सिधने आयया; अंति: संकामै राखौ लिगार चुतरनर, ढाल-४.
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