Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 422
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ४०७ वक्ता १४ गुण वर्णन पद, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: वक्ता के गुण चवदा कइये; अंति: मुनि राम० विरला वक्तामाही, गाथा-४. १०६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिनवाणीश्रवण, म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: सुरता बिन कोन सुणे बानि; अंति: हीरालाल० सुधो कूगरू कानि, गाथा-५. १०७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: अंधा को वेठ बताइए आरसि; अंति: तिरिया करे पति अंध के पास, गाथा-५. १०८. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-समकित, पृ. ३२अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९७९, आदि: सुरतां गुण सामलो रे लाल; अंति: हीरालाल लिजो समकित धार, गाथा-११. १०९. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: वरसे पुष्करावर्त सुमेहा; अंति: यो हिरालाल करे प्रकास, गाथा-१५. ११०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्य, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: पुन विना नहि लागे नहि सत; अंति: हिरालाल ततखीण जगने त्यागे, गाथा-६. १११. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३३अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह-पुण्य, पुहिं.,प्रा., पद्य, आदि: लक्ष्मी केने अकल के विवाद; अंति: दप्पो मुल विणासस्स, गाथा-४. ११२. पे. नाम. अष्टरिद्धि सज्झाय, पृ. ३३अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: प्रथम रिद्धि अणिमानाम; अंति: मुनि कहे सखर ले जंजाल, गाथा-६. ११३. पे. नाम, औपदेशिक कवित, पृ. ३३अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: सुरज छिपे गन बादल से; अंति: उस मुछ कु पुछ जाणिये. ११४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक लावणी-पुण्यपाप, पुहि., पद्य, आदि: दोय बात हे जुगमे साचि पुन; अंति: कर्म खपा कर मुगत गिया, गाथा-१०. ११५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: अनंता तरिया० तरेने तरसिजी, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११६. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारीत्याग, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: केसे इजत रहे तुमारि पर; अंति: नाहक कष्ट उठाने वाले, गाथा-४. ११७. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. खुबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सयाणा नारीनो नेह; अंति: खुबचंद० नीत प्रणमु पाय रे, (वि. गाथांक नहीं है.) ११८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-सती, पृ. ३५अ, संपूर्ण. म. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: सतियाने नहि लागे कलंक; अंति: हीरा० मोलमे मुंगा जो होय, गाथा-८. ११९. पे. नाम. ७ सती सज्झाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. ___ मु. अमिरेख, रा., पद्य, वि. १९५१, आदि: सति सातो सुखदानी रे; अंति: अमिरेख० मोटि सति का वखाण, गाथा-१६. १२०. पे. नाम, रावण सज्झाय, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरे कूबुधि कंथ कोन पे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) १२१. पे. नाम. एकादशीतिथि सज्झाय, पृ. ३६अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नरदल मुन करिने रइये पाछो; अंति: उदेरत्न० अविचल लील विलासे, गाथा-७. १२२. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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