Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 26
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२६ ३८३ ११९६२४. (#) पाक्षिकसूत्र व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-२ (१ से २) = ५, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x१२.५, ११-१९x४३). १. पे नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. ३अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम सूत्र अपूर्ण से है व छजीवनी अध्ययन तक लिखा है.) २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दोय श्रावकमेइ तीन; अंति: (-), (पू.वि. "तीर्थंकरजीरी आगत पाठांश "तक है.) ११९६२५. (+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ३-१०X३५). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा. मा.गु. प+ग, आदि तिक्खुत्तो अग्राहिणं पवाहिण; अंति: (-), (पू.वि. आवश्यक ४ अपूर्ण तक है.) साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीन वार करणोजी भणी० आवृत; अंतिः (-)११९६२६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१-६ (१ से ६) = २५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१२.५, ९४२५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७अ - ३१अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अति: वंदामि नित्थार पारगा होह, (पू.वि. पगाम सज्झाय सूत्र से है . ) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३१अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अति (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ११९६२८ (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २४६-२२३(१ से २२३) = २३. पू. वि. बीच के पत्र हैं... प्र.वि. संशोधित, जैवे. (२६१२, ६x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सूत्र- १७२ अपूर्ण से सूत्र- १८३ व्याख्यान ७-नेमिजिन चरित्र तक है.) कल्पसूत्र टीका, सं., गद्य, आदि (-); अति (-). ११९६२९ (+) वैद्यवल्लभ सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., , (२६.५X१२, ७-११X३०-४० ). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: विनिर्मिता स्वयम्, विलास-९, श्लोक-३२६. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्री सारदाप्रतइ हीयै; अंति: वधै मुरादिसाह आपकाधी. ११९६३०. (+) नवतत्वप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९ भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. भाग्यविजयगणि (गुरु पं. रविविजयगणि); गुपि. पं. रविविजयगणि (गुरु पं. गंगविजयगणि); पं. गंगविजयगणि (गुरु पं. हंसविजयगणि); पं. हंसविजयगणि (गुरु पं. लब्धिविजयगणि) पं. लब्धिविजयगणि (गुरु पं. रंगविजयगणि) पं. रंगविजयगणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : नक्तत्व, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५x१२, ३४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ अजीवा २ पुन्नं३; अंति: लहिओ श्रीधम्मसुरेहिं, गाथा- ६५, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीव कहतां च्यार अंति: आत्माने शुद्ध करे, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १६ तक व गाथा ६३-६४ तक लिखा है.) ११९६३१ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पू. १६, ले. स्थल पाडीवनगर, प्रले. पं. राजिंद्रविजय (गुरु पं. फतेविजय); गुपि. पं. फतेविजय (गुरु पं. सुमतिविजय) पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: ज्ञानपांच, ज्ञानपं०, ज्ञानपंच. कुंथनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५X१२, ६x२९). For Private and Personal Use Only

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