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यह संग्रह आशीर्वाद रूप हो सके ऐसा है। जो लोग जैन अथवा जैनेतर छात्रालयोमें अथवा शिक्षामंदिरोमें जैन दर्शनका संक्षिप्त तथापि विशिष्ट परिचय पहुंचाना चाहते है उनके लिये भी यह अनुवादसंग्रह बड़े कामका है।
हिन्दी संस्करणके समयजब गुजराती प्रथम संस्करण छपा तव मेरे सामने केवल चार निबंध उपस्थित थे अत एव वाकीके पांच निबंधोंको मै उस समय देख सका न था। वे पांच निबंध इस समय देखने में आये । इस तरह इस समय प्रस्तुत हिन्दी आवृत्तिमें समावेश किये गये सब निबंधोंका अवलोकन मै कर सका हूं।
गुजराती निदर्शनमें चार निबंधों के बारेमें मैंने अपना थोडासा विचार प्रकट किया था । अभी पांच निबंधोके बारेमें कुछ वक्तव्य प्राप्त है।
पुस्तक गत तीसरा और आठवां ये दो निबंध कर्मविषयक है। 'जैन दर्शनमें कर्मवाद' और 'जैनोंका कर्मवाद' शीर्षकसे लेखकने कर्मतत्त्वकी चर्चा की है। पहिले निबंधमें कर्मतत्त्वकी सामान्य चर्चा है, जो दर्शनान्तरके कर्मविचारके साथ जैन दर्शनके कर्मविचारको आंशिक तुलनारूप है। मेरी रायमें लेखक इस जगह दर्शनान्तरके कर्मविषयक विचारोंको विशेष स्पष्टता व विस्तारके साथ दरसाते तो निबंधके अभ्यासीके लिये विचारकी यथावत् सामग्री प्रस्तुत होती। लेखकने गौतमप्रतिपादित न्यायदर्शन-सम्मत कर्मका विचार जैसा दरसाया है वैसा वे पातंजल योगशास्त्रके आधार पर सांख्य-योग-सम्मत कर्मविचारका निरूपण कर सकते थे। एक तरहसे न्यायशास्त्रके कर्मविचारकी अपेक्षा