Book Title: Jinabhashita 2009 02 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ साहित्य में नवरात्रि महोत्सव या विजयादशमी का नामोल्लेख भी नहीं प्राप्त होता है। अतः नवरात्रि पर्व या विजयादशमी का जैनधर्म से दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं हैं। कछ विद्वान भरतेश वैभव काव्यग्रन्थ को नवरात्रोत्सव के विषय में प्रस्तुत करते हैं। इसे जैनागम का प्रामाणिक शास्त्र नहीं कहा जाता है। यह तो एक श्रृंगारकवि रत्नाकर द्वारा रचित काव्यग्रन्थ है, जो मात्र काव्य है, आगम नहीं। फिर भी यदि हम भरतेशवैभव के प्रसंगों को ही लें तो१. इस ग्रन्थ में नवरात्रि पर्व या विजयादशमी का कोई नामोल्लेख नहीं है। २. नवरात्रि पर्व वर्ष में २ बार चैत्र एवं आश्विन की शुक्ला एकम से शुक्ला नवमी तक है, जबकि भरत चक्रवर्ती ने तो मात्र एक बार ही दिग्विजय के लिये यात्रा प्रारम्भ की थी, फिर इस पर्व को २ बार क्यों मनाया जाता है? ३. भरतेशवैभव में चैत्र अथवा आश्विन माह का कोई वर्णन उपलब्ध नहीं होता। पृ. १८१ पर यह लिखा मिलता है- 'अब वर्षाकाल की समाप्ति हो गई है। अब सेनाप्रयाण के लिए योग्य समय है। इसलिये आलस्य के परिहार के लिए दिग्विजय का विचार करना अच्छा होगा।' पृ. १८२ पर लिखा है 'नौ दिन तक जिनेन्द्र भगवन्त की पूजा वगैरह उत्सव बड़े आनन्द के साथ कराकर दशमी के रोज यहाँ से प्रस्थान का प्रबन्ध करूँगा।' पृ. १८४ पर लिखा है 'इस प्रकार प्रतिपदा से लेकर नवमी तक अनेक प्रकर से धर्मप्रभावना हो रही थी।' पृ. १९० पर लिखा है 'आज दशमी का दिन है। राजोत्तम भरतेश ने श्रृंगार कर योग्य मुहूर्त में दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया।' उपर्युक्त ४ स्थानों पर महाराजा भरत द्वारा की जाने वाली दिग्विजय से पूर्व पूजा एवं प्रस्थान का वर्णन है, परन्तु नवरात्रि एवं विजयादशमी का इससे कोई सम्बन्ध नहीं जुड़ता है। कवि ने आश्विन या चैत्र मास का कोई नामोल्लेख नहीं किया है। तथा 'विजयादशमी' शब्द का भी कोई प्रयोग नहीं किया है। जो व्यक्ति भरतेशवैभव के आधार से नवरात्रि महोत्सव और विजयादशमी को सिद्ध करने का प्रयास करना चाहते हैं, वे केवल अपनी कपोलकल्पना को थोपना चाहते हैं। इस अप्रामाणिक ग्रन्थ में भी नवरात्रि या विजयादशमी का दिगम्बर जैनधर्म से कोई सम्बन्ध स्थापित नहीं होता है। वस्तुतः जिनधर्म को माननेवाला प्रत्येक व्यक्ति अच्छी प्रकार जानता है कि पूजा और आराधना किनकी की जाती है। हम तो वीतरागी देव एवं साधु के पूजक हैं। जो अपने को जैन कहता है और सरागी देवी-देवताओं की पूजा करता है, वह तो जैन कहलाने का अधिकारी भी नहीं है। ऐसे लोगों की अज्ञानता दूर करने के लिए आर्यिका स्याद्वादमती माताजी द्वारा लिखित 'वात्सल्य रत्नाकर' (पुस्तक प्राप्ति स्थानविमल साहित्य सदन, सम्मेदशिखर जी) के पृ. ३६४ पर आचार्य विमलसागर जी द्वारा दिये गये प्रश्नोत्तरों का निम्न अंश द्रष्टव्य है जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है मैंने (आर्यिका स्याद्वादमती जी ने पूछा- आचार्यश्री! आजकल चारों ओर नवरात्रि को महोत्सव के रूप में मनाने का जोर चल रहा है। अपने यहाँ भी इसका कोई महत्त्व है क्या? इस समय हमें भी कोई जाप जपना चाहिये क्या? आचार्य विमलसागर जी ने कहा- बेटा! जैनधर्म में नवरात्रि नामक कोई पर्व नहीं है। लोग तो मिथ्यात्व में फँसे हुए नाना देवी-देवताओं के चक्र में फँस रहे हैं। बेटा! अपने को इस मिथ्यात्व से बचना चाहिए। तुम्हें तो मात्र गणधरवलय व णमोकारमंत्र के जाप इन दिनों जपना चाहिये। कुछ विद्वान् लोग ऐसा कहते नजर आते हैं कि आजकल साधुवर्ग नवरात्रि, नव-दुर्गामहोत्सव में देवी-आराधना व गरबा नृत्य देखते हुए जो मिथ्यात्व का पोषण कर रहे हैं, उसके पीछे आचार्य श्री विमलसागर -फरवरी 2009 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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