Book Title: Jinabhashita 2009 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ UPHIN/2006/16750 विहार और बैण्ड-बाजे मुनि श्री क्षमासागर जी : संस्मरण प्रसंग * सरोजकुमार मुनिश्री क्षमासागर जी के इंदौर में हो रहे वर्षा योग (1996) की समयावधि समाप्त हो गई थी। इंदौर से विहार की तैयारी थी। पर वे कब विहार करेंगे, और कहाँ के लिए करेंगे, इत्यादि बातें किसी को मालूम नहीं थीं। मुनिश्री अपना कार्यक्रम और योजनाएँ किसी को बताते भी नहीं थे। एक दिन मुनिश्री के संघ के एक विश्वस्त ब्रह्मचारी जी से संकेत मिला, कि दूसरे दिन मुनिश्री विहार कर रहे हैं। बस फिर क्या था, भक्तगण उनसे आशीर्वाद लेने व नमोऽस्तु कहने पहुँचने लगे। खबर आग की तरह फैली। जैनसमाज के अध्यक्ष ने अखबारवालों को भी बता दिया, कि सुबह सात बजे मुनिश्री विहार करनेवाले हैं। फिर हुआ यह, कि सुबह पाँच बजे से ही भक्तों का ताँता वंदनार्थ लग गया। 6बजे के करीब बैण्डवाले भी आ गए। यह सब देख-सुनकर मुनिश्री अत्यंत दु:खी, विचलित और उद्विग्न हो गए। मैं भी पहुँचा। भीड़ में किसी तरह निकट पहुँच कर वंदना कर परिसर में लौट आया। मुझे मुनिश्री ने बुलवाया और पूछा, 'ये लोग बता रहे हैं, कि अखबार में समाचार छप गया है ? ये कैसे आ गया? ऐसा समाचार तो नहीं आना था? यह तो ठीक नहीं हुआ। हमारे संघ में समारोही ढंग से विहार की परम्परा नहीं है। और यहाँ तो बैण्ड भी बजने लगा है।' मैं एक अखबार से थोड़ा जुड़ा हुआ हूँ। अत: मुनिश्री को मुझ पर संदेह हुआ होगा, कि मैंने ही अखबारवालों को खबर दी होगी। ___ मैंने मुनिश्री को बताया, कि 'मेरी ओर से तो किसी अखबारवाले को नहीं कहा गया था। पर समाज के पदाधिकारियों के लिए विहार की खबर ज्ञात हो जाने पर, यह जरूरी हो गया होगा कि वे ये बात सबको बता दें। इसी भावना से किसी ने अखबार में दे दिया होगा। विहार की बात ज्ञात हो जाने पर यदि वे सबको सूचित नहीं करते, तो आपका विहार हो जाने के बाद सब उन्हें पकड़ते, और दोष देते, कि मुनिसंघ के विहार की खबर हमसे क्यों छिपाई गई? हमें क्यों नहीं बताया गया? विहार के पूर्व वंदना का अवसर हमें क्यों नहीं लेने दिया? सबके हित में ऐसा कुछ हो गया, लगता है।' __मुनिश्री कुछ नहीं बोले, और अपनी विभिन्न चर्याओं में व्यस्त हो गए। ऐसा प्रतीत हुआ, मानों उन्होंने अपना विहार पर निकलना स्थगित कर दिया हो। मुनिश्री दु:खी हुए हैं, अतः सब दुःखी थे। लेकिन मुनिश्री ने विहार स्थगित कर दिया है, यह सोचते हुए सब खुश भी थे। परिसर में भक्तों की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई। कुछ समय बाद वहाँ उपस्थितों ने देखा, कि मुनिश्री अपने संघ सहित परिसर से बाहर निकल रहे हैं। पर उस दिशा में नहीं, जिस दिशा में उनके जाने की संभावना थी। अनेक भक्तगण भी उनके साथ हो गए। मुनिश्री पहुँचे, छत्रपति नगर के मंदिर में। वहाँ दो दिन रहे, और पुनः चुपचाप समवशरण मंदिर में आ गए। यहाँ एक दिन रुके, और बिना किसी पूर्व घोषणा अथवा सूचना के चुपचाप खण्डवा की दिशा में विहार कर गए। उन्हें विदा देने बहुत कम लोग उस समय मंदिरपरिसर में पहुँच पाए थे। मनोरम, 37 पत्रकार कॉलोनी, इन्दौर, म.प्र. स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36