Book Title: Jinabhashita 2009 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ बिहारी की गज़ल ईंट-पत्थर से बने मस्जिदो-मन्दिर स्व० श्री बिहारीलाल जी जैन ईंट-पत्थर से बने मस्जिदो-मंदिर सब हैं। इनकी पाकीज़गी तब है, वहाँ इबादत हो॥ गर ज़खीरा हो यहाँ तबाहनुन असलाहों का। तो फिर ये जंगी-किले हैं, ना इबादतखाने॥ काबा या के गिरजा हो, मस्जिद हो या मंदिर हो। पूजा के घर हैं सारे या सिर्फ परिस्तिश हो॥ लड़ने या झगड़ने के, ये घर नहीं कोई हैं। ये प्यार-मुहब्बत के धर हैं, यही रहने दो॥ आलात-लड़ाई के और न यूँ कुदूरत के। ये धर हैं सफ़ाई के, लड़ने के न बनने दो॥ भगवान् के घर हैं ये, अल्ला की इबादत के। दिल पाक़ बनाने के, पाकीज़ ही रहने दो। ये आज की दुनियाँ सब, धर है यूं तशद्दद की। कुछ ही जगह हैं, इनको बस पाक़ ही रहने दो॥ मज़हब का नाम लेकर, लड़ते हो झगड़ते हो। क्या सच में ये मज़हब है? हमको भी समझने दो॥ हर धर्म के रहवर का, फ़र्मान है गर कोई। इंसान हो, बस जज्बा, इंसानियत रहने दो॥ मालिक ने तुम्हें भेजा इन्सान बना करके। हैवान खुद न बनना, इंसानियत रहने दो॥ लाज़िम तो ये था तुमको, इंसान फरिश्ता हो। हर आन दिल में जज्बा इंसानियत रहने दो॥ कहने को 'बिहारी' तुम हो आदमी दुनियाँ के। मज़हब का असल मक़सद, कुल रूह ही रहने दो॥ 'बिहारी की गज़ले' से साभार PRANSsInsoldisaicDIREM A RISEASE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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