Book Title: Jinabhashita 2009 02
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 6
________________ अ. २६/३२, मार्कण्डेय पुराण के २२७ पृ., निर्णयसिन्धु के पृ. ३०६ तथा धर्मसिन्धु के पृ. १९१ पर देख सकते हैं। जैन वाङ्मय के अध्ययन करने से स्पष्ट है कि प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में नवरात्रि महोत्सव के सम्बन्ध में एक भी शब्द लिखा नहीं मिलता। कुछ व्यक्तियों का सोचना है कि नवरात्रि पर्व भरत चक्रवर्ती द्वारा प्रचलित हुआ अर्थात् भरत चक्रवर्ती ने आश्विन शुक्ला एकम से नवमी तक दिग्विजय प्रारम्भ करने से पर्व पजा-विधान आदि करवाये। तथा आश्विन शुक्ला दशमी के दिन दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया तब से ही नव दिन की पूजा के पर्व को नवरात्रि पर्व और प्रस्थान वाले दिन को विजयादशमी कहा जाता है। परन्तु इन व्यक्तियों का यह चिन्तन, मात्र उनकी स्वयं की कल्पनाभर है। भरतचक्रवर्ती की प्रामाणिक कथा तथा चरित्रवर्णन सर्वप्रथम हमें श्री आदिपुराण, रचयिता आचार्य जिनसेन (९वीं शताब्दी) से प्राप्त होता है। जब कि इस ग्रन्थ में ऐसा कोई भी वर्णन रंचमात्र भी नहीं है कि भरतचक्रवर्ती ने प्रस्थान से पूर्व आश्विन सुदी एकम से आश्विन सुदी नवमी तक, इन नौ दिनों में कोई महोत्सव मनाया हो, महापूज की हो या नवरात्रि पर्व मनाया हो। ऐसा भी उल्लेख इस ग्रन्थ में नहीं मिलता कि भरत चक्रवर्ती ने आश्विन शुक्ला दशमी को दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया और इसी वजह से वह दिन विजयादशमी कहलाता है। २. प्रथमानुयोग के प्राचीनतम ग्रन्थ पउमचरिअं (विमलसूरि ४ शताब्दी) में भरतचक्रवर्ती का चरित्रवर्णन तो है, पर नवरात्रि पर्व या विजयादशमी का नामोनिशान भी नहीं है। ३. पद्मपुराण (आचार्य रविषेण, ७वीं शताब्दी) में भी भरतचक्रवर्ती का चरित्रवर्णन है परन्तु इसमें भी नवरात्रि और विजयादशमी से सम्बन्धित उल्लेख नहीं है। ४. हरिवंशपुराण (आचार्य जिनसेन ८-९ वीं शताब्दी) में भी भरतचक्रवर्ती का वर्णन प्राप्त होता है, परन्तु नवरात्रि या विजयादशमी का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ५. पुराणसंग्रह (आचार्य यामनन्दि १०वीं शताब्दी) में भी भरतचक्रवर्ती के चरित्रवर्णन में नवरात्रि या विजयादशमी का कहीं भी उल्लेख नहीं है। ६. अपभ्रंश भाषा में लिखे गये महापुराण (कवि पुष्पदंत, १०वीं शताब्दी) में महाराजा भरत का विशद वर्णन है, परन्तु यहाँ भी नवरात्रि एवं विजयादशमी का नामोल्लेख भी नहीं है। ७. महापुराण (आचार्य मल्लिषेण, १०वीं शताब्दी) में भरतचक्रवर्ती का चरित्रवर्णन तो है, परन्तु नवरात्रि या विजयादशमी का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार निम्नलिखित ग्रन्थों में भरतचक्रवर्ती का चरित्रचित्रण तो प्राप्त होता है, परन्तु किसी भी ग्रन्थ में नवरात्रि पर्व या विजयादशमी मनाने के कारण के सम्बन्ध में एक भी पंक्ति या शब्द नहीं मिला ८. पुराणसारसंग्रह (मुनि श्रीचंद्र, ११ वीं शताब्दी) ९. भरतेश्वराभ्युदय (अज्ञात, १२ वीं शताब्दी) १०. त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र (पं० आशाधर, १३ वीं शताब्दी) ११. बाहुबलिचरिउ (कवि धनपाल, १४ वीं शताब्दी) १२. आदिपुराण (भट्टारक सकलकीति १५वीं शताब्दी) १३. हरिवंशपुराण (भट्टारक यश:कीर्ति १५ वीं शताब्दी) इनके अतिरिक्त श्रावकाचारसंग्रह पांचों भागों में दिगम्बर जैन श्रावकों के लिए पूजा की विधि का वर्णन एवं समस्त पर्वो का उल्लेख तो मिलता है, परन्तु नवरात्रि पर्व का नाम तथा इसके मनाने की विधि से सम्बन्धित उल्लेख नहीं है। इससे स्पष्ट है कि दिगम्बर जैन वाङ्मय के प्रथमानुयोग एवं चरणानुयोग के समस्त उपलब्ध प्रामाणिक 4 फरवरी 2009 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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