Book Title: Jinabhashita 2004 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 4 मुनि श्री प्रवचनसागर जी के लिए आशीर्वाद समाधिस्थ मुनि श्री प्रवचनसागर जी को दि. २७.११.०३ को नैला (अकलतरा ) फैक्स द्वारा कटनी भेजा गया आ. श्री विद्यासागर जी का उद्बोधन संस्मरण '१. आत्मतत्त्व को ही मुख्यता देना है । २. आजतक जो कुछ भी अध्यात्म पाया है, उसी को स्मृति में लाना है। ३. शरीर की अशुचिता एवं नश्वरता के बारे में चिंतवन करना है ।' समाधि २९.११.०३ शनिवार को ११ बजकर २० मिनिट पर कटनी म.प्र. में कल को का भरोसो है ? हाँ, यह वाक्य मुनिश्री जी कहते थे। जिस दिन से उन्होंने दिगम्बरी दीक्षा धारण की, उस दिन से मानो अंतराय का और उनका चोली-दामन का साथ हो गया। इसके बाबजूद भी उनमें उपवास करने में गजब का उत्साह रहता था। दो-दो अन्तराय के बाद जब पूज्य आचार्यश्री के चरणों में मुनि श्री प्रत्याख्यान के समय उपवास का निवेदन करते थे, तब पू. आचार्य श्री कहते थे कि अभी आहार तो ठीक हो जाने दो। तब मुनिश्री का यही निवेदन रहता था कि 'कल को का भरोसो है' और आचार्यश्री का आशीर्वाद का वरदहस्त उठ जाता था । क्या मालूम था कि सचमुच में यह वाक्य मुनिश्री सार्थक कर अल्प समय में हमारा साथ छोड़कर मृत्यु महोत्सव पूर्वक चले जायेंगे, हमसे विदा ले लेंगे। अद्भुत निरीहवृत्ति - सन् १९९७ में दीक्षा के समय उनके लिए लिखने हेतु एक पैड दिया गया था, जो सन् २००३ तक उनके पास रहा। मात्र ४-६ पेज लिखे हुए थे। ऐसे महान् साधक थे हमारे मुनिश्री प्रवचनसागर जी । उन्होंने एक करोड़ णमोकार मंत्र की जाप का संकल्प लिया था, जिसमें ३४३०१ माला x १०८ = २७,०४,५०८ मंत्र फेर लिये थे। चारित्रशुद्धि के १२३४ उपवासों का संकल्प लिया था, जिसमें उन्होंने ३५० उपवास कर लिये थे । गृहस्थ जीवन में श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की ३८ वंदनाएँ की थीं। जनवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only मुनि श्री प्रसादसागर जी www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36