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मुनिवर श्री १०८ प्रवचनसागर महाराज पूर्ण चैतन्य अवस्था में समाधिस्थ
पिता
महामृत्युंजयी तपोसाधक दिगम्बराचार्य श्री १०८ । हुये, दयोदय पशु सेवा केन्द्र पहुंची। मुनिवर की अंतिम शोभायात्रा विद्यासागरजी महाराज के आज्ञानुवर्ती सुशिष्य मुनिवर श्री १०८ | में मुनि श्री समतासागर, मुनिश्री प्रमाणसागर, मुनि श्री निर्णय प्रवचनसागर महाराज का कटनी में पूर्ण चैतन्य अवस्था में | सागर, मुनिश्री प्रबुद्धसागर, ऐलक श्री निश्चयसागर जी प्रभात सल्लेखनापूर्वक समाधि मरण हो गया।
मंडल के ब्रह्मचारीगण (प्रभात मंडल के ब्रह्मचारीगण समाधि विस्तृत प्राप्त जानकारी के अनुसार मुनि श्री प्रवचनसागर | साधना में विशेष सहयोग देते रहे), प्रभात जैन मुंबई, डॉ. अमरनाथ एवं मुनि श्री निर्णयसागर महाराज आचार्य श्री की आज्ञा से सर्वोदय सागर, डॉ. राजेश भोपाल, कवि चन्द्रसेन जैन, प्रकाश मोदी भाटापारा, तीर्थ अमरकंटक से बिहार करके विगत् कुछ दिनों पूर्व ही कटनी | संतोष सिंघई दमोह के साथ ही हजारों श्रद्धालुओं ने उपस्थित पहुंचे थे, एकाएक मुनिश्री प्रवचनसागर जी महाराज गंभीर रूप से | होकर अश्रुपूरित नेत्रों से मुनिवर को विदाई दी। अपनी सरलता, अस्वस्थ्य हो गये। उक्ताशय की जानकारी छत्तीसगढ़ में अतिशय विद्वता, नि:स्पृहता के लिये प्रसिद्ध मुनिश्री की छबि प्रत्येक हृदय धर्म प्रभावना करते हुये बिहार कर रहे पूज्य आचार्य श्री को प्रदान | में अंकित हो गयी। की गयी। आचार्य श्री के निर्देशानुसार श्री दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र
__ अमित पड़रिया बहोरीबंद (जिला कटनी) में विराजमान मुनि श्री समतासागर, | मुनि श्री प्रवचनसागर जी का जीवन परिचय मुनि श्री प्रमाणसागर, ऐलक श्री निश्चयसागर जी ने कटनी की ओर | पूर्व नाम
: ब्र. चंद्रशेखर शास्त्री गमन किया। आचार्य श्री का संकेत प्राप्त होते ही मध्यान्ह १:००
: श्री बाबूलाल जी जैन बजे बिहार कर २७ कि.मी. दूर ग्राम में रात्रि विश्राम कर प्रातः माता
: श्रीमती फूलरानी जैन ६.०० बजे पुनः २४ कि.मी. चलकर मुनि द्वय एवं ऐलक श्री | जन्म स्थान
: बेगमगंज, जिला रायसेन (म.प्र.) कटनी पहुंचे।
जन्म दिनांक
: 29.11.1960 विभिन्न आयुर्वेदाचार्यों एवं चिकित्सकों द्वारा अथक परिश्रम | लौकिक शिक्षा : एम.कॉम. (प्रीवियस) करने के पश्चात् भी मुनि श्री प्रवचनसागर जी का स्वास्थ्य निरंतर | ब्रह्मचर्य व्रत कब/कहाँ : 29.10.1987 श्री दि.जैन गिरता जा रहा था, तकरीबन २४ घटों के अंदर ही चिकित्सकों ने
अतिशय क्षेत्र थुवौन जी, गुना (म.प्र.) स्पष्ट घोषणा कर दी थी मुनिवर की स्थिति में सुधार असंभव है, | क्षुल्लक दीक्षा : 20/4/1996, वैशाख शुक्ला तीज, मुनिश्री ने सल्लेखना का संकल्प लेकर अन्न जल त्याग कर
शनिवार, वि.सं. 2053 अक्षय तृतीया दिया। मुनिश्री की सेवा में रत एक श्रावक ने बताया कि- जब दीक्षा स्थल
: श्री दि. जैन सिद्धक्षेत्र, तारंगा जी, मुनिश्री के हाथ पैरों में पूर्ण शिथिलता आ गयी, शरीर पूर्णत:
जिला-महेसाणा (गुजरात) कमजोर हो गया, ऐसी विषम परिस्थिति में भी मुनिश्री स्वयं को
ऐलक दीक्षा : 19/12/1996, मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी ही संबोधन देते रहे 'ये शरीर भी धोखेबाज है और ये धोखा दे ही
_ वि.सं. 2053, गुरुवार गया।
दीक्षा स्थल
: श्री दि. जैन सिद्धक्षेत्र गिरनार जी, मुनि श्री समतासागर, मुनि श्री प्रमाणसागर, मुनि श्री
जिला-जूनागढ़ (गुजरात) निर्णयसागर, ऐलक श्री निश्चयसागर मुनिवर की समाधि साधना में
मुनि दीक्षा : 16/10/1997, अश्विन शुक्ला पूर्णिमा पूर्णतः सहायक रहे । मुनिसंघ सजग एवं चौकन्ना होकर निर्विकल्प
(शरद पूर्णिमा), गुरुवार वि.सं.2054 समाधि कराने में निरत रहा। मुनिश्री अंतिम समय तक पूर्ण चैतन्य
दीक्षा स्थल
: श्री दि. जैन रेवातट सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र एवं जागृत रहे। गंभीर रूप से रोग ग्रस्त होने पर भी मुनिश्री ने
नेमावर जी, जिला-देवास (म.प्र.) अपवाद मार्ग को अस्वीकार कर मुनियों के लिये अनुकरणीय
दीक्षा गुरु
: आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आदर्श प्रस्तुत किया। यह भी एक संयोग रहा कि २९ नवम्बर को
मातृभाषा
: हिन्दी ही मुनिश्री का ४२ वाँ जन्म दिवस था, और जन्म का समय भी
समाधिस्थ
29/11/03, वि.सं. 2060 मगसिर वही था जो उनकी समाधि का समय था। अंत समय न कोई
शुक्ला छठ, शनिवार बैचेनी, न घबराहट, न चेहरे पर शिकन नश्वर देह का त्याग करते
समाधि के समय सान्निध्य मुनि श्री समतासागर जी महाराज समय यदि मुनिश्री के चेहरे पर कोई भाव था तो मात्र निर्विकल्पता
मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज एवं आत्मसंतुष्टि का।
मुनि श्री निर्णयसागर जी महाराज मुनिश्री प्रातः ११:२० मिनट पर समाधिस्थ हुये। इसके
मुनि श्री प्रबुद्धसागर जी महाराज पश्चात् उनकी अंतिम शोभायात्रा जैन धर्मशाला से प्रारंभ होकर
ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज झंडा बाजार, पुरानी बस्ती, शेर चौक, आजाद चौक, नदी पार होते 8 जनवरी 2003 जिनभाषित -
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