Book Title: Jinabhashita 2004 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ विद्वान आचार्य थे उन जैसे ही नाम रखकर और अपनी प्रवृत्ति के । मिथ्या है। ऊपर दिए हुए इतिहास के उद्धरणों से यह भलीभांति अनुकूल ही ग्रंथ बनाकर जैन धर्म का अपवाद कर भोली समाज | सिद्ध है कि भट्टारकों का वर्तमान रूप दिगम्बर मुनि का भ्रष्ट रूप को सन्मार्ग से वंचित करने का पूर्ण प्रयास करना। बादशाही | है। भट्टारकों के उद्भव का इतिहास दिगम्बर जैन धर्म की जमाने में इनको प्रभुता प्राप्त थी। अतः इनको उस समय मन चाही | विशुद्ध आचरण परंपरा के कलंक के रूप में जाना जायेगा। इन सफलता भी मिली थी। इन्होंने भगवान को भी कुंडल मुकुट | जैन आगम के विपरीत आचरण कर मिथ्यात्व का पोषण करने वाला, केसर पुष्प धारण कराके परिग्रह युक्त किया था और कपड़े वालों के बारे में तथ्यात्मक वर्णन को यदि आरोप आक्षेप कहा पहनने वाले साधुओं तक को भी दिगम्बर साधु मनवाने के लिए जायेगा तो क्या शिथिलाचारी मुनियों के दुराचार की कठोर शब्दों ग्रंथों में श्लोक बना बनाकर सिद्ध करने का प्रयत्न किया था। में भर्त्सना करने वाले दिगम्बर जैन धर्म के सातिशय प्रभावक इसका एक उदाहरण देखिए।' आचार्य कुंदकुंद महाराज को भी मुनियों पर आरोप, आक्षेप लगाने पृष्ठ ७५ अपवित्र पटो नग्नो नग्नश्रवार्घपटः स्मृतः। वाले कहेंगे? दिगम्बर जैन धर्म में सच्चे देव शास्त्र गुरु की श्रद्धा नश्चमलिनो द्वासौ नग्न: कोपी नवानपि॥ को सम्यग्दर्शन बताते हुए तीन लोक, तीन काल में जीव का कषाय वासता नग्नो नग्न श्वपनुत्तरीयमान। सर्वाधिक कल्याणकारी कहा है, उसी प्रकार मिथ्या देव शास्त्र गुरु अन्त: कच्छो वहि: कच्छे मूलकच्छ स्तथैवच॥ | की मान्यता को मिथ्या दर्शन कहते हुए उसको लोक में जीव का अर्थ : अपवित्र कपड़े पहनने वाला, आधा वस्त्र | सर्वाधिक अहितकारी निरूपित किया है। पहनने वाला, मैले कपड़े पहनने वाला, धोती के सिवाय दूसरा एक बार कुंडलपुर क्षेत्र पर संयम वर्ष के उपलक्ष्य में कपड़ा न रखने वाला केवल भीतर की तरफ कसौटा लगाने वाला | आयोजित एक धर्म सभा में प.पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज और बिल्कुल न पहनने वाला इस तरह अनेक तरह के नग्न माने के सान्निध्य में माननीय श्री नीरज जी द्वारा अपने भाषण में पीछी गए हैं। अर्थात् वे वस्त्र सहित अपने आपको भी नग्न सिद्ध कर धारक साधुओं द्वारा संयम की पालना में तत्पर रहते हुए पीछी की रहे हैं। इस प्रकार भट्टारकों ने दिगम्बर जैनधर्म के मूल सिद्धान्त | मर्यादा की रक्षा करने पर जोर दिया था और यत्किंचित शिथिल अचेलकत्व अथवा नग्नत्व के लक्षण को ही विकृत कर दिगम्बरत्व आचरण वाले साधुओं द्वारा हो रही पीछी की मर्यादा भंग पर खेद की जड़ें ही खोदने का प्रयास किया है। प्रकट किया था। किंतु आज उन्हीं पं. नीरज जी को भट्टारकों के व्रत कथा कोष में निर्दोष सप्तमी के दिन के लिये लिखा | हाथों हो रहे संयम चिन्ह पीछी की इस दयनीय घोर अवमानना का समर्थन करते देख हमें अत्यधिक आश्चर्य मिश्रित खेद होता वियतां मुकुट मूर्ध्नि रचितं कुसुमोत्करैः । है। कंठे श्री वृषभेशस्य पुष्पमाला च धार्यते ।। माननीय श्री नीरज जी आगे लिख रहे हैं कि बीस पंथी इस प्रकार अष्ट द्रव्यों से पूजन करके वृषभ जिनेन्द्र के | आम्नाय की मिथ्या आलोचना के क्षेत्र में हमारे द्वारा अति हो रही से बनाया हुआ मुकुट तथा कंठ में | है उसे हम रोकें। इसीलिए उन्होंने लेख का शीर्षक अति सर्वत्र पुष्पों की माला पहनानी चाहिए। ऐसे भट्टारकों ने मुनि के स्वरूप | वर्जयेत रखा है। भट्टारक सम्प्रदाय के बारे में उनके लेख लिखने की विकृति के साथ-साथ जिनेन्द्र भगवान् के वीतराग स्वरूप को | तक हमने स्वयं तो कुछ भी नहीं लिखा था। लगता है यशस्वी भी विकृत किया है। | स्वर्गीय विद्वान पं. नाथूराम जी प्रेमी की पुस्तक की सामग्री को श्री इसके अतिरिक्त इतिहास लेखकों ने सर्वत्र इसको स्वीकार | नीरज जी ने हमारी पुस्तक समझने की भूल की है। हमने कहीं किया है कि दिगम्बर मुनि के भ्रष्ट रूप में भट्टारक बने । भट्टारकों | बीस पंथ, तेरा पंथ की बात अपनी ओर से नहीं की है। पक्ष ने मंदिर निर्माण, मूर्ति निर्माण प्रतिष्ठा पूजन-विधान साहित्य निर्माण | व्यामोह से ग्रसित दुर्भावना के कारण आपको आगम सम्मत विवेचन आदि कार्य कर जैन संस्कृति की सेवा अवश्य की किंतु इन सबके | में बीस पंथ की आलोचना की गंध आने लगती है। जहां जैन तत्व पीछे लक्ष्य रहा इनके अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति और धन | दर्शन और जैन आचरण पद्धति का अवर्णवाद हो रहा हो वहां संचय। श्रावकों की अंध श्रद्धा, मंत्र-तंत्र का भय और शक्ति के | आगम के अनुकूल कहने व लिखने में अति भी वर्जित नहीं है। आतंक के आधार पर शोषण किया और उन्हें धर्म भीरू अज्ञानी | किंतु आगम विरूद्ध व्यवस्था के समर्थन में निराधार अयुक्तियुक्त बनाए रखा। जैन साहित्य के आध्यात्मिक एवं चारित्रिक पक्ष को | कथन अनर्गल प्रलाप की श्रेणी में आता है। अतः अत्यंत नम्रता गौण कर केवल सरागी देवी देवताओं की पूजा विधान मंत्र-तंत्र पूर्वक हाथ जोड़कर हमारा निवेदन है 'अनर्गल प्रलापं वर्जयेत्'। आदि को मुख्यता देते रहे। विद्वद्वर क्षमा करें। आदरणीय श्री नीरज जी का यह कथन कि भट्टारकों पर | आपका यह कथन कि आज कौन भट्टारक श्रावकों को आरोप लगाते समय इतिहास को देखते नहीं या जानबूझकर पाठकों | मारते-पीटते और आतंकित कर पैसे वसल करते हैं, नाम बताएँ। एवं समाज को भ्रमित करना चाहते हैं, सर्वथा निराधार और । यह ठीक है कि आज श्रावकों में थोड़ी बहुत जागरूकता आई है 24 जनवरी 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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