Book Title: Jinabhashita 2004 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 34
________________ जिस दिन भक्त आत्मा की शरण में जाऐगा वह । पद्मा जैन ने प्रस्तुत की। संचालन पवन कुमार अजमेरा ने किया। संत बन जायेगा भक्तामर स्तोत्र को तीन वर्ष पूरे हुए मन्दसौर- परम पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज सनावद- श्री सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में डॉ. नरेन्द्र पूज्य क्षुल्लक धैर्यसागर जी महाराज एवं पूज्य क्षुल्लक श्री गम्भीर | जैन 'भारती' की प्रेरणा पर प्रत्येक अष्टमी और चतुर्दशी के दिन सागर जी महाराज राजस्थान के केकड़ी में चातुर्मास सम्पन्न कर आयोजित भक्तामर स्तोत्र के सामूहिक पाठ को तीन वर्ष पूर्ण होने विभिन्न स्थानों पर धर्म प्रभावना करते हुए मन्दसौर पधारे जहाँ जैन पर मंच के सदस्यों ने खुशी जाहिर करते हुए इसे निरन्तर आगे समाज के सैकड़ों नर-नारियों ने मुनि संघ की भव्य अगवानी कर आयोजित करते रहने का निश्चय किया। पाठ में मुख्यतः गजेन्द्र नगर प्रवेश कराया। बाकलीवाल, संतोष बाकलीवाल, राजेश चौधरी, सत्येन्द्र जैन, __ यहाँ एक विशाल प्रवचन सभा को सम्बोधित करते हुए | पवन जैन, डॉ. नरेन्द्र जैन, कमलेश जैन, संगीता बाकलीवाल, पूज्य मुनिपुंगव सुधासागर जी महाराज ने कहा कि परमात्मा हमारे | संध्या जैन, कल्पना जैन, मंजुला भंच आदि का बराबर सहयोग लिए दिशा निर्देश देता है। जिस दिन भक्त आत्मा की शरण में | मिल रहा है। चला जायेगा वह संत बन जायेगा और मुक्ति प्राप्त करेगा। आपने डॉ. नरेन्द्र जैन 'भारती' सनावद (म.प्र.) बताया कि आज हर व्यक्ति परमात्मा में लीन है, हम परमात्मा के लिए नहीं, परमात्मा हमारे लिए है, ऐसा भाव हमारे मन में जाग्रत भारतवर्षीय श्रमण संस्कृति परीक्षा बोर्ड का होना चाहिए। परमात्मा को साधन बनाकर परमात्मा बनने की भव्य उद्घाटन कोशिश करें, परमात्मा के दरबार में जब कुछ प्रसाद चढ़ाकर कुछ परम पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी वापस अपने साथ ले आना व्यापार व बनियापन का प्रतीक है, महाराज के परमशिष्य मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज एवं जबकि जैन धर्म में सब कुछ दरबार में अर्पण कर दिया जाता है, संघस्थ क्षुल्लक श्री गम्भीरसागरजी, क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी के कुछ लाया नहीं जाता, ईश्वर को सब कुछ देते चलो वो तुम्हें पुनः | पावन सान्निध्य में श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर मिलता जायेगा। जयपुर के अन्तर्गत प्रारम्भ किये गये भारतवर्षीय श्रमण संस्कृति विलासमय जीवन छोड़ने की प्रेरणा देते हुए मुनि श्री ने । परीक्षाबोर्ड का भव्य उद्घाटन किशनगढ़ अजमेर के प्रसिद्ध कहा कि जिस प्रकार संत सब कुछ कष्टों को सहकर अपना जीवन उद्योगपति, परमगुरु भक्त, सम्मानीय श्री निहालचंद जी पहाड़िया सुधारते हैं। आगे अनंत सुख उन्हें प्राप्त होते हैं जबकि इसके एवं समाचार जगत के प्रधान सम्पादक श्री राजेन्द्र जी गोधा ने सहस्रों श्रावकों की उपस्थिति में मनिश्री के आशीर्वाद के साथ विपरीत मनुष्य जो जीवन में सब प्रकार के दुःख भोगता है वह उद्घाटन किया गया। आगे चलकर नरक में कष्ट ही पाता है, इसी प्रकार सब कुछ ईश्वर उक्त परीक्षाबोर्ड के अन्तर्गत कोटा में संचालित हो रही को अर्पण करते चलें कुछ साथ लाने की भावना न रखें तभी १६ पाठशालाओं का एकीकरण कर उसका नाम 'श्रमण संस्कृति जीवन सफल होगा। मंदिर एक विद्यालय है जहाँ बिना पैसे खर्च ज्ञान मण्डल' रखा गया, ये सभी पाठशाला उक्त परीक्षाबोर्ड से किए बहुत कुछ सीखने को मिलता है और आमतौर पर विद्यालयों सम्बद्ध करने की घोषणा भी श्रमण संस्कृति संस्थान के कोषाध्यक्ष में पैसा देकर शिक्षा प्राप्त की जाती है और भावना यह रहती है कि श्री ऋषभकुमार जैन ने दी। उक्त पाठशालाओं तथा देश के अन्य मैं पढ़ लिखकर खुब पैसा कमाऊँ। भागों में संचालित हो रही तथा होने वाली जैनधर्म की पाठशालाओं __ हिंसा की निंदा करते हुए पूज्य मुनिश्री ने कहा कि आज | एवं लौकिक व धार्मिक शिक्षण संस्थाओं में १ जुलाई २००४ से दव, शास्त्र, गुरु का झुठलाया जा रहा है। भगवान महावीर ने | पाठ्यक्रम समानरूप से लागू होगा। इस बोर्ड के अन्तर्गत ली जाने वाणी में कहा 'जियो और जीने दो' लेकिन आज भाई-भाई को वाली परीक्षाओं एवं इनके महत्त्व तथा जीवन में उपयोगिता के मारने पर तुला हुआ है। गालियों और अपशब्दों का भरपूर इस्तेमाल | सम्बन्ध में स्वयं मुनिश्री सुधासागर जी ने प्रकाश डालते हुए कहा किया जा रहा है। दुश्मनों की तादाद बढ़ रही है। आपसे तो शेर, | कि हमें धार्मिक पाठशालाओं को अवश्य खोलना चाहिए ताकि गाय अच्छे, जिन्होंने महावीर की वाणी को सार्थक किया। दुश्मनी | जैन बन्धु संस्कारित होकर देश के सुयोग्य बन अपना आत्मिक करना, गालियाँ देना, क्रोध करना छोड़ दोगे तो भवसागर से पार | कल्याण कर सकें। हो जाओगे। मंगलाचरण सरेश जैन ने किया। विनयांजली श्रीमती । प्रतिष्ठाचार्य दीपक कुमार जैन शास्त्री, परीक्षाप्रभारी 32 जनवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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