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ग्रन्थ-समीक्षा
कुन्दकुन्द का कुन्दन
समीक्षक - डॉ. बी.एल. जैन कृति - कुन्दकुन्द का कुन्दन
साथ दिया गया है। जो सोने पे सुहागा का कार्य करता है जिससे सम्पादक- डॉ. शीतलचन्द जैन ,पं. रतन लाल बैनाड़ा, | कृति की उपयोगिता और अधिक बढ़ जाती है। ब्र. भरत जैन
| प्रस्तुत कृति में प्रयुक्त गाथाओं का अन्वयार्थ भी दिया प्रकाशक - श्री दिग. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर | गया है, जो बोधगम्य है। अन्वयार्थ के बाद गाथा का अर्थ तथा जयपुर (राज.)
भावार्थ दिया गया है। भावार्थ में गाथा में प्रयुक्त प्रत्येक शब्द मुल्य आधा करने में अर्थ सहयोग -- श्री विद्याविनोद | स्पष्ट सूपाठ्य एवं रूचिकर हो, लिखा गया है। कृति की विशेषता काला मेमोरियल ट्रस्ट, जयपुर
यह है कि व्याकरण, भाषा-शैली एवं अन्य अपेक्षाओं से प्रत्येक संस्करण द्वितीय - अक्टूबर २००३, प्रतियाँ -२००० | शब्द शुद्ध तथा सार्थक रखा गया है। इसका कारण है कि कृति पृष्ठ-१४४, सजिल्द लागत २०रु. विक्रय मूल्य १० रु.
का सम्पादन एवं प्रूफ रीडिंग योग्य विद्वानों द्वारा किया गया है। प्रथम शताब्दा के प्रथम आचार्य अध्यात्म जगत के प्रस्ताविकी में कहा गया है कि श्रमण परम्परा में अध्यात्म के सर्वोपरि प्रभापुंज श्री कुन्दकुन्द स्वामी के प्रमुख ग्रन्थ समयसार,
आद्य उपस्कर्ता आचार्य कुन्दकुन्द का अध्यात्म आत्मा से ही प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय, अष्टपाहुड, वारसाणुवेक्खा
उत्पन्न होकर आत्मा में ही विलीन हो जाता है, से ओत प्रोत इत्यादि जिनका स्वाध्याय करने से मुक्ति पथ प्राप्त होता है। उन्हीं
समयसार कृति को महत्त्वपूर्ण गाथाओं का विवेचन स्वरूप ग्रन्थों में से विशिष्ट गाथाओं का संकलन कर एक लघु कृति के
प्रस्तुत कृति में सरल भाषा में लिखा गया है। ग्रन्थमाला के रूप में कुन्दकुन्द का कुन्दन प्रकाशित किया गया है। प्रस्तुत
सम्पादक ब्र. भरत जी प्रकाशकीय में लिखते हैं कि 'गत वर्ष कृति को जीवन के चार आश्रम की भांति चार अधिकारों में
मुनि श्री सुधासागर जी द्वारा अतिशय क्षेत्र बिजौलिया में संस्थान कुन्दकुन्द स्वामी की गाथाओं को मोक्षरूपी माला में पिरोया
के छात्रों को कुन्दकुन्द का कुन्दन नामक कृति का अध्ययन गया है।
कराया गया जिससे इस कृति की उपयोगिता प्रतीत हुई। अल्पकाल प्रथम अधिकार का नाम रत्नत्रय अधिकार रखा है, नाम
के शिक्षण प्रशिक्षण में ही आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी को के अनुरूप ही मोक्ष मार्ग के तीन अमूल्य रत्न सम्यग्दर्शन,
समझने में सुगमता रहे, इसलिए प्रथम संस्करण में केवल सामान्य सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र का निरूपण है। मोक्षमार्ग का वर्णन
अर्थ दिया गया था जिसके सम्बन्ध में अनेक पाठकों के अनुरोध करते हुए लिखा गया है कि व्यवहार मोक्षमार्ग से परम्परा एवं
हमें प्राप्त हुए कि गाथाओं का संकलन तो अच्छा है परन्तु उनका निश्चय मोक्षमार्ग से साक्षात् मोक्ष की प्राप्ति होती है। रत्नत्रय का
अन्वयार्थ तथा भावार्थ यदि विस्तृत रूप से दे दिया जाये तो कृति आधार स्तम्भ सम्यग्दर्शन के नि:शंकित आदि आठ अंग तथा क्षुधा, तृषा आदि १८ दोषों का वर्णन है। सम्यग्ज्ञान का स्वरूप
का हार्द समझने में सुविधा होगी। अतः तदनुसार इसके मूल
रूप में कुछ वृद्धि भी की गयी है।' ब्रह्मचारी जी के इन शब्दों से एवं महिमा बतलाकर निश्चय चारित्र एवं व्यवहार चारित्र का स्वरूप व्यावहारिक भाषा में किया गया है। चारित्तं खल धम्मो'
स्पष्ट है कि कृति की उपयोगिता पठन-पाठन के लिए आवश्यक अर्थात् चारित्र ही धर्म है। अतः ऐसे धर्म के पालन से ही मुक्ति
तो है ही साथ में शिक्षण प्रशिक्षण के लिए भी आवश्यक है। है। द्वितीय उपयोग अधिकार में द्रव्य-गुण पर्याय का विवेचन
कृति का प्रकाशन पूर्व में जबलपुर से हो चुका था लेकिन कृति करने वाली गाथाओं के संकलन के बाद शुद्धोपयोग एवं शुभोपयोग
की मांग के कारण पुस्तक को ज्ञानसागर ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित के स्वरूपों का विवेचन किया गया है। तृतीय ज्ञान ज्ञेय अधिकार
| किया गया है। कृति का उपयोग केवल मुनियों तक ही सीमित में आत्मा की सर्व व्यापकता की चर्चा करके शुद्धनय, सर्वज्ञता,
| नहीं है बल्कि श्रावक भी कृति में बताये गये व्यवहार मोक्ष मार्ग संवर का स्वामी ज्ञानी, शुद्धात्मा का स्वरूप, ध्यान आदि विषयों
का पालन कर जीवन को अनुशासित कर सकते हैं। सामान्य का समावेश किया गया है। चतुर्थ अधिकार में जैसा कि नाम है
श्रावक के साथ-साथ विद्वत्प्रवर के लिए भी उपयोगी सिद्ध श्रामण्य अधिकार में श्रामण्य का स्वरूप श्रमणों की भक्ति का होगी। पुस्तक की एक और यह विशेषता है कि एक पेज पर फल जैसे विषयों को रखा गया है, जिस को जीवन में उतारकर | एक ही गाथा की विषयवस्तु को संजोया गया है। ब्र. भरत जी मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। कति की सबसे महत्त्वपूर्ण | का कृति के प्रकाशन में सम्पादक कार्य के अलावा अन्य कार्य विशेषता यह है कि कति में संकलित सभी गाथाओं का आचार्य में भी विशेष सहयोग सराहनीय है। कुन्दकुन्द के कन्दन से विद्यासागर जी महाराज द्वारा विरचित पद्मानवाद भी गाथाओं के । सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति हो, ऐसी भावना है।
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