Book Title: Jinabhashita 2004 01
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 17
________________ ग्रन्थ समीक्षा ग्रन्थ : स्वतंत्रता संग्राम में जैन ( प्रथम खण्ड ) लेखक : डॉ. कपूरचन्द्र जैन एवं डॉ. श्रीमती ज्योति जैन भारत के सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विकास में। जैन समाज का महनीय योगदान है। भारत की आजादी के आन्दोलन में भी इस समाज के लोगों ने अपना बलिदान देकर, जेलों में रहकर तथा आर्थिक आदि अन्य प्रकार से जो योगदान दिया था, वह एक मिसाल है। लगभग पाँच हजार जैनों ने जेल यात्रा कर आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था । १८५७ में लाला हुकुमचन्द जैन और अमरचन्द बांठिया को तथा १९३० में मोतीचन्द शाह को फांसी पर लटका दिया गया था । १९४२ में उदयचंद जैन, जयावती संघवी, नत्थालाल शाह, सिंघई प्रेमचन्द जैन, साबूलाल वैसाखिया, मगनलाल ओसवाल, अण्णा पत्रावले, कन्धीलाल जैन आदि को गोलियों से भून दिया गया था। इतना होने पर भी स्वतंत्रता संग्राम में जैन समाज के योगदान की चर्चा तक नहीं होती थी, जबकि सरकार के अभिलेखों में यह सब दर्ज है। अनेक जैन संस्थाओं ने इस प्रकार के प्रस्ताव भी पास किये थे, पर प्रस्ताव ही रहे । प्रसन्नता का विषय है कि जैन दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् अनेक पुस्तकों के लेखक डॉ. कपूर चन्द जैन, अध्यक्ष संस्कृत विभाग, श्री कुन्दकुन्द जैन स्नातकोत्तर महावद्यिालय, खतौली - २५१२०१ (उ.प्र.) फोन: ०१३९६ - २७३३३९ तथा उनकी धर्मपत्नी 'संस्कार सागर' तथा 'जैन संदेश' की सह सम्पादिका डॉ. श्रीमती ज्योति जैन ने यह बीड़ा उठाया और लगभग १० वर्षों के परिश्रम एवं बहु अर्थ व्यय कर 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन ' ( प्रथम खण्ड) ग्रन्थ का लेखन किया है । इस दम्पति के लेखन की प्रामाणिकता सुविदित है। पहले भी 'शोध सन्दर्भ' जैसी चुनौती पूर्ण पुस्तकों का संकलन/सम्पादन डॉ. जैन कर चुके हैं। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ को तैयार करने में लेखक दम्पति को जहाँ सन्त शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज का आशीर्वाद और प्रेरणा मिली है वहीं प्रकाशन में उपाध्यायरत्न ज्ञानसागर जी महाराज का आशीर्वाद मिला है। ग्रन्थ का प्रकाशन 'प्राच्य श्रमण भारती' मुजफ्फरनगर ने किया है। 20X30/8 (स्मारिका साइज) के लगभग ५०० पृष्ठों में समाहित इस पुस्तक में ४८ बड़े दुर्लभ चित्रों के साथ १९५ पासपोर्ट साइज के चित्र हैं। पूरी पुस्तक आर्ट पेपर पर छापी गई है। मूल्य भी अत्यल्प मात्र २००/- है। पुस्तक-प्राच्य श्रमण भारती, १२ / ए, निकट जैन मंदिर, प्रेमपुरी, मुजफ्फरनगर- २५१००१ (उ.प्र.) फोन : ०१३१-२४५०२२८ तथा श्रुत संवर्धन संस्थान, प्रथम तल, २४७ - दिल्ली रोड, मेरठ २५०००२ फोनः ०१२१ - २५२७६६५ से प्राप्त की जा सकती है। साहित्य सदन, श्री दि. जैन लाल मंदिर, चांदनी चौक, दिल्ली, फोन : २३२८०९४२, २३२५३६३८ से भी प्राप्त कराने की व्यवस्था की जा रही है । आरम्भ में 'बोलते शब्द चित्र' नाम से एक विस्तृत भूमिका दी गई है जिसमें १८५७ तक के प्रमुख जैन राजाओं, मंत्रियों, Jain Education International दीवानों, सेनापतियों, कोषाध्यक्षों आदि का परिचय है। उपक्रम चार में २० जैन शहीदों का परिचय है तथा उपक्रम पांच में उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के लगभग ६५० जैन जेल यात्रियों का परिचय है। परिशिष्टों में जहाँ संविधान सभा में जैन, आजाद हिन्द फौज में जैन, एक जब्तशुदा लेख आदि की जानकारी दी गई है वहीं फिलरों में राष्ट्रगान में जैन, भारतीय संविधान में जीव दया आदि के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी आदि के अहिंसा के सम्बन्ध में विचार दिये गये हैं । अन्त में ग्रन्थ तैयार करने में आधारभूत २१७ ग्रन्थों आदि की सूची दी गई है। यह प्रथम खण्ड है, जैसी की लेखक दम्पति की योजना है, यदि इसके दो और खण्ड निकल गये तो यह बहुत बड़ी उपलिब्ध होगी। इसके अतिरिक्त ग्रन्थ में उल्लिखित कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं- शहीद मोतीचंद ने जेल में खून से पत्र लिखा था । क्रान्तिकारी अर्जुनलाल सेठी जिन-मूर्ति का दर्शन न मिलने से बेलूर जेल में ५६ दिन निराहार रहे। श्री कुसुमकान्त जैन संविधान सभा में सबसे कम उम्र के सदस्य थे। कर्नल राजमल कासलीवाल नेताजी सुभाषचंद बोस के निजी चिकित्सक रहे थे। पं. फूलचन्द सिद्धान्त शास्त्री डॉ. अम्बेडकर से मिले थे। श्री रतन लाल मालवीय दीपावली के दिन संविधान की पूजा करते थे। श्री छोटेलाल जैन के निधन पर पूज्य बापू ने सम्पादकीय लिखा था । मध्यभारत के मुख्यमंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल ने राजकीय अतिथि को मांसाहार कराने से पं. जवाहरलाल नेहरू को मना कर दिया था। अनेक जैन सेनानियों ने सरकारी पेंशन, जमीन, रेलपास आदि लेने से मना कर दिया। सेठ अचल सिंह ने जेल में 'मेरा जैनाभ्यास' वृहद् पुस्तक लिखी थी, श्री ज्योति प्रसाद देवबन्द, श्री कल्याण कुमार शशि, श्री श्यामलाल पाण्डवीय आदि की रचनाएँ जब्त कर ली गई थीं। लेखक दम्पत्ति ने जिस अध्यवसाय, लगन और प्रामाणिकता के साथ इसे तैयार किया है, इस रूप में इसका प्रचार-प्रसार होना ही चाहिए। समाज के श्रेष्ठियों/पाठकों का कर्त्तव्य है कि अपने क्षेत्र के विश्वविद्यालय, महावद्यिालय के पुस्तकालयों व नगर के सार्वजनिक पुस्तकालयों में इसकी प्रति भिजवायें। अपने शहर में इतिहास - राजनीति शास्त्र के जो प्रोफेसर हों उनको इस पुस्तक के संदर्भ में अवश्य बतायें। अपने क्षेत्र के केन्द्रीय या राज्य के मंत्रियों/संसद सदस्यों/विधायकों को इसकी प्रतियाँ भेंट करें। स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को इसकी जानकारी दें। मंदिरों, पाठशालाओं में इस पत्र की फोटो कापी लगायें। सम्पादकों व विद्वानों के लिए भी प्रति उपयोगी है 1 डॉ. जयकुमार जैन महामंत्री - अ.भा. दि. जैन शास्त्री परिषद् २६१/१, पटेल नगर, मुजफ्फरनगर, २५१००१ (उ. प्र. ) जनवरी 2003 जिनभाषित 15 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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