Book Title: Jinabhashita 2004 01 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 8
________________ ज्यादा पेट्रोल खाए कम काम करे ऐसे गाड़ी को मत बनाओ।। घासलेट के लिए, कभी शक्कर के लिए, कहीं और किसी के गाड़ी को आलसी मत बनाओ। पैट्रोल उतना डालो जितना आवश्यक | लिए.... | आप लाइन लगाओ हम भी लाइन में, यदि लाइन से हो। बहुत विश्राम से भी गड़बड़ हो जाता है। ज्यादा चलाना भी | बाहर आएँगे तो सामान नहीं मिलेगा। ये लाइन में लगने वाला नहीं। चलाना उतना जितना पैट्रोल डालते हैं। जहाँ पैट्रोल नहीं | व्यक्ति अवश्य पाता है, ऐसा हमने समझा। यदि कहीं न कहीं डालते व गाड़ी चलाने लगे तो गाड़ी आवाज करने लगती है, | घुसपैठ करता है, तो ये घुसपैठ नहीं चलेगी। ये सीधी लाइन होती मशीन खराब हो जाती है। और मशीन को बिगाड़ना भी नहीं। | है कभी भी आप लाइन में आकर खड़े हो सकते हैं। एक बार यदि बीमार पड़ने का यह अर्थ नहीं कि मशीन को बिगाड़ कर दूसरी | आप लाइन में आ जाते हैं तो आप बेलाइन हो ही नहीं सकते। मशीन खरीद ली जाए, अपने आप छूट जाती है, तो छूट जाने दो | कहीं कुछ भी हो आकर वह पुनः लाइन में लग जाता है। तो जो आगे दूसरी मिल जाएगी। यह हमारी Direct लाइन नहीं है इसलिए लाइन में लगे हुए हैं उसकी हमें कोई चिंता ही नहीं थी। हमें जो ऐसा हो रहा है। पर जहाँ तक इसकी रोड है हम कहीं से भी चले | ज्ञात हुआ उस अनुसार उन्हें खबर भेज दी गई। हमें पहले से ज्ञात जाएँ , पर वहाँ जाना है, इसको समझ जाएं। उसको भूलना नहीं, | था। व्यक्ति की असफलता की बात तो थी ही नहीं प्रवचनसागर यही महत्वपूर्ण है। उन्होंने अंतिम समय में दृढ़ता से कार्य किया | लिए वो हमेशा-हमेशा तत्पर रहते पालन करने के लिए। पास सोना नहीं, स्टेशन पास है, अपने समय पर सब काम कर लें। | रहने के लिए कहा, तो हमने कहा पास तो हो ही। टिकट तो है दुनिया के काम में बहुत योजना करते हो। अब एक बार एक यात्रा | आपके पास, तो वहीं पास-पास हैं, जो जितने पास होता है। करनी है जिसके बारे में आपको कहां-कहां पर उतरना है, कहां | समझदार होता है उसके लिए भावों के द्वारा पास बनाइए, केवल उतरना अनिवार्य है और अपने को उतरना ही था, गाड़ी में इतनी | शरीर के द्वारा पास होकर के यदि भावों में निकटता नहीं है, तो ही पेट्रोल थी। लेकिन ज्यादा पेट्रोल खर्च कर कम चलते हैं उस | वह निकट नहीं माना जाता। हमने निर्णयसागर व उनको अपेक्षा से उन्होंने कम पेट्रोल खर्च करके अल्प समय में जो प्रवचनसागर दोनों को उधर बिहार कराया। रफ्तार से गाड़ी छोड़ी वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। और अगली गाड़ी वे बहुत साहस के साथ, शांति के साथ, ज्ञान के साथ, के लिए उम्मीदवार होकर खड़े हो गए। और ऐसा करते उनको | शरीर के साथ, शरीर से मोह नहीं था, हाँ जीर्णोद्धार हो जाए तो अवश्य मुक्ती मिल जाएगी। यह हमारी भावना है, कामना है | अलग बात है। लेकिन संयम को छोड़कर या गौणकर शरीर की उनको जल्दी मुक्ति मिल जाए। हमारी भावना से जल्दी मुक्ति मिल | मरम्मत के पक्ष में नहीं थे। जाए। वे अपनी ही जागृति से अवश्य पाएंगे। उनको उदाहरण उन्होंने अपने रत्नत्रय की साधना के संकल्प से दिगम्बरत्व बनाने से उनको आदर्श बना लेने से जागृति हमेशा बनी रहती है। को इस एक समय के साथ भी जिस लगन से पालन किया अंत में बड़े-बड़े तीर्थंकर हो गए कि जिनको देखकर लगता है कि हमारा | जो परीक्षा में पास होना आवश्यक था उसको उन्होंने भूला नहीं व नम्बर बहुत पीछे है। मैं हमेशा यही आशा करता हूँ कि हमारे पीछे सफलता पाए। और क्या कहा जाए अनंत काल से संसारीप्राणी से और बहुत तीर्थंकर होने वाले हैं। पीछे से हार्न(प्लीज) करके | डूबता हुआ सा लग रहा है पर डूबा नहीं। डूब ही नहीं सकता आगे बढ़ने वाले हैं । वो कहेंगे भैया हार्न(प्लीज) करके आगे बढ़ क्योंकि वह जीव है। अंत समय में हमें जो आत्मानुभूति है, जो जाओ कोई बात नहीं हम आगे बढ़ रहे, आप पीछे से आ जाइए। उसकी ओर दृष्टि रखते हुए सिद्ध बने हैं उनका स्मरण करना यदि आपको चाहिए तो आप आइए नहीं है तो बीच से आइए हम अनिवार्य होता है। उनके स्मरण के बल पर ही हम अजर-अमर आप को पहले कह रहे थे। अविनाशी आत्मतत्त्व को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान से प्रार्थना ये बात और है अभी हम आगे हैं जो हमारे तीर्थंकर हुए हैं | करते हैं जो व्यक्ति अभी लाइन में नहीं हैं, वे लाइन पर आ जाएं आगे बढ़कर हुए हैं। उनके सामने भी बहुत अनंत जीवों की जो लाइन पर हैं उनकी लाइन छूटे नहीं और हम भी उसी लाइन श्रृंखला थी व उस श्रृंखला को आदर्श बना कर आगे बढ़े व उनको पर चलते रहें। जो लाइन है, उस लाइन पर चलते जाएं रूकें नहीं आदर्श बना के हम चल रहे हैं। इस प्रकार हमारे पीछे भी लाइन | व रूकना है तो ठीक है रूक जाएं ,जो नट बोल्ट ढीले हो गए हैं है, यह लाइन ऐसी है यह खींचने वाली लाइन नहीं, आप अपने | उन्हें कस लें व आगे बढ़ जाएं.... । आप ही इस लाइन में जल्दी-जल्दी लग जाइए, ये भी अपने आप अहिंसा परमो धर्म की जय में बहुत मजा है, आनंद है। आप कूपन लेकर खड़े होते हैं, कभी । संकलन- नंदकिशोर अकलतरा 6 जनवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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