Book Title: Jinabhashita 2003 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 13
________________ आचार्य श्री शान्तिसागर के तपस्वी जीवन का चमत्कार (श्री सोली सोराबजी का अपमान जनक टिप्पणी के सन्दर्भ में) डॉ. श्रीमती रमा जैन पूर्व प्राध्यापक घटना सन् 1926 की है। एक बार आचार्य शांतिसागर | श्री शांतिसागर महाराज का ससंघ नगर से 1 मील दूर उत्तम महाराज दक्षिण भारत से सिद्ध क्षेत्र, कुन्थल गिरि की वन्दना के | व्यवस्था करके ठहराया जाये। जैसे ही सूचना मिली कि आचार्य लिए गये थे। उनके विशाल संघ में दिगम्बर मुनि, ऐलक, क्षुल्लक | श्री का संघ अपने नगर से आठ मील की दूरी पर आ चुका है। और आर्यिका सहित लगभग 35 लोग थे। उसी समय सोलापुर के | समाज के लोगों ने नगर के बाहर परिश्रम पूर्वक उचित स्थान पर प्रमुख पदाधिकारी भी कुंथलगिरि की वंदना करने आये थे। आचार्य | पूरे संघ को ठहराने की सुन्दर व्यवस्था कर दी। दूसरे दिन दोपहर शांतिसागर को देखकर सभी लोग अत्यन्त प्रसन्न हुए और आचार्य | में आचार्य श्री का पूरा संघ नगर के बाहर सानन्द ठहर गया। श्री को श्रीफल भेंट कर सोलापुर आने के लिए आमंत्रित किया। | आचार्य श्री के शुभागमन की सूचना पूरे नगर में रुई में लगी आग आचार्य श्री शांतिसागर ने कहा मैं तो स्वयं सोलापुर आने | की तरह सर्वत्र फैल गई। का निश्चय कर चुका हूँ किन्तु एक शर्त है कि आप लोग सोलापुर आचार्य श्री के दर्शन करने और प्रवचन सुनने हजारों जैन आने के लिए सरकार का परवाना आदि प्रसारित नहीं करना और | अजैन बन्धु आ गये। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, पारसी आदि न कोई अर्जी देना। सेठ राव जी बापू पंडारकर जो कि सोलापुर | सभी धर्मों के प्रतिष्ठित व्यक्ति आचार्य श्री के अमृतमयी, मधुर जैन समाज के मुखिया थे, उन्होंने सोलापुर जाकर पंचायत सभा | वचन सुनकर बहुत प्रभावित हुये। वे सब गद्गद होकर जयकारा को बुलवाया और कहा कि कुछ दिनों में आचार्य श्री शांतिसागर | लगाने लगे। धर्मसभा की चमत्कारिक घटना सुनकर श्रीमान कलेक्टर महाराज ससंघ सोलापुर आ रहे हैं, अत: मुनि संघ के ठहराने की | साहब एवं डी.एस.पी. भी आश्चर्य चकित हो गये। उन्होंने भी उत्तम व्यवस्था होना चाहिये। समाज के सभी लोग उनका स्वागत नगर के बाहर आकर आचार्य श्री को साष्टांग नमन किया और करने के लिए नगर से 4-5 मील दूर बाहर चलेंगे। सेठ सखाराम | उपस्थित समाज को आदेश दिया कि आपलोग नगर को बहुत दोषी, सेठ हीराचन्द्र राय चंदगाँधी आदि ने सेठ राव जी को | सुन्दर सजाईये, वन्दन वारे बांधिये फिर इन सब संतों को नगर के सलाह दी कि यहाँ के कलेक्टर को अर्जी देकर परवाना निकलवाना | मंदिर में ठहरने का प्रबंध कीजिये। बहुत जरूरी है अन्यथा कोई भी आपत्ति आ सकती है। सेठ दूसरे दिन जैन एवं जैनेतर सभी भाई बहिन गाजे-बाजे के रावजी बापू पंडारकर ने परवाना निकलवाने का विरोध किया साथ विशाल जुलूस लेकर आचार्य श्री को नगर के मंदिर में लिवा और कहा कि आचार्य श्री ने परवाना निकलवाने के लिए इन्कार | ले गये। इस जुलूस में लगभग 20 हजार लोगों ने नृत्य, गीत, किया है, अतः उनकी इच्छा के विरूद्ध हमें कोई काम नहीं करना उल्लास और आनंद का अद्भुत दृश्य उपस्थित कर जनता में नई चेतना जाग्रत कर दी। सुरक्षा की दृष्टि से चार-पांच लोग चुपचाप कचहरी | इस प्रकार आज से 77 वर्ष पूर्व भी नग्न दिगम्बर साधुओं जाकर कलेक्टर साहब को एक अर्जी दे आये और नगर में मुनि | की पूजा, अर्चा और प्रतिष्ठा थी। उस जमाने के अंग्रेज क्लेक्टर संघ के आगमन की स्वीकृति चाही। कलेक्टर साहब ने तुरन्त | और डी.एस.पी. भी दिगम्बर मुनियों को चरित्र निष्ठा और महान् डी.एस.पी. साहब को बुलवाया और इस विषय में उनसे सलाह तपस्या के आगे अपना माथा झुकाते थे, साष्टांग नमन् करते थे। ली। कलेक्टर और डी.एस.पी दोनों ही यूरोपियन थे। उन्होंने देश के मूर्धन्य विधिवेत्ता श्री सोली जे. सोराबजी का दिग. जैन अपने नगर में किसी बाहरी संघ को आने की अनुमति नहीं दी। मुनि के सम्बन्ध में उनका कथन अविवेक पूर्ण, अनर्गल और और अर्जी खारिज कर दी। समाज के सभी लोग 'किं कर्तव्य समाज को अपमानित करने की भावना का द्योतक है। यह उनका विमूढ़ हो गये, उन्हें बहुत दुख हुआ उन्होंने आग्रह कर अर्जी अपराध है। वापिस ले ली। उपअधिष्ठाता, उदासीन आश्रम सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि, रात्रि में समाज की मीटिंग हुई और इस समस्या का जिला-छतरपुर (म.प्र.) समाधान निकाला कि- परमपूज्य चारित्र चक्रवर्ती तपोनिष्ठ आचार्य -अक्टूबर 2003 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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