Book Title: Jinabhashita 2003 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 22
________________ आधुनिक विज्ञान, ध्यान एवं सामायिक डॉ. पारसमल अग्रवाल १. प्रस्तावना सकती है। इस लेख में यह दर्शाया जा रहा है कि आज पश्चिम जगत् अमरीका में बहु प्रशंसित प्रख्यात चिकित्सक डॉ. दीपक के वैज्ञानिकों ने ध्यान को अनेक भौतिक लाभों के जन्मदाता के चोपड़ा ने उनकी पुस्तक 'परफेक्ट हेल्थ' में पृ. १२७ से १३० पर रूप में स्वीकार कर लिया है। हजारों वर्षों से जैन संस्कृति में | ध्यान को औषधि के रूप में वर्णन करते हुए प्रायोगिक आंकड़ों गृहस्थ के लिए भी प्रतिदिन सामायिक करने की परम्परा रही है।। का विश्लेषण किया एवं कई तथ्यों का रहस्योद्घाटन किया। ४० आज आवश्यकता इस बात की है कि हम ध्यान या सामायिक के ] वर्ष से अधिक उम्र के ध्यान करने वाले एवं ध्यान न करने वालों महत्त्व को समझकर इसका लाभ लें। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस की तुलना करने पर उन्होंने यह पाया कि जो नियमित ध्यान करते लेख में ध्यान के बारे में पश्चिम के वैज्ञानिकों एवं डॉक्टरों के हैं उन्हें अस्पताल जाने की औसत आवश्यकता लगभग एकअनुसन्धान से प्राप्त निष्कर्षों का वर्णन करने के उपरान्त सामायिक | चौथाई (२६.३ प्रतिशत) रह जाती है। इसी पुस्तक में डॉ. चोपड़ा का विशेषण किया गया है। यह भी बताया गया है कि सामायिक ने बल्डप्रेशर एवं कोलेस्टराल के आंकड़ों द्वारा भी यह बताया है ध्यान का एक विशिष्ट रूप है। सामायिक के विश्लेषण का उद्देश्य कि ध्यान करने से कोलेस्टराल का स्तर गिरता है व रक्तचाप यह भी है कि हम सामायिक को एक रूढ़ि की तरह न करते हुए सामान्य होने लगता है। हृदय रोग के आंकड़े बताते हुए डॉ. उसको समझकर करें ताकि उसका आध्यात्मिक एवं भौतिक लाभ | चोपड़ा लिखते हैं कि अमरीका में हृदयरोग के कारण अस्पतालों तत्काल ही हमारे जीवन में दृष्टिगोचर हो सके। में प्रवेश की औसत आवश्यकता ध्यान न करने वालों की तुलना २. आधुनिक विज्ञान एवं ध्यान में ध्यान करने वालों को बहुत कम, मात्र आठवां भाग (१२.७ अमरीका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय की एक वैज्ञानिक प्रतिशत) होती है। इसी प्रकार कैंसर के कारण अस्पताल में भर्ती डॉ. पैट्रिशिया पैरिंगटन ने ध्यान मग्न अवस्था में कई व्यक्तियों पर होने की आवश्यकता ध्यान न करने वालों की तुलना में लगभग कई प्रयोग इन वर्षों में किए। उनके निष्कर्ष उनके द्वारा लिखित आधी (४४.६ प्रतिशत) होती है। डॉ. चोपड़ा लिखते हैं कि आज पुस्तक 'फ्रीडम इन मेडिटेशन' में देखे जा सकते हैं। डॉ. पैरिंगटन तक ध्यान के मुकाबले में ऐसी कोई रासायनिक औषधि नहीं बनी ने सिद्ध किया कि ध्यान से ब्लडप्रेशर सामान्य होता है, कोलेस्टराल है जिससे हृदय रोग या कैंसर की इतनी अधिक रोकथाम हो ठीक होता है, तनाव कम हो जाता है, हृदय रोगों की सम्भावना | जाये। १९८० से १९८५ के एक ही चिकित्सा बीमा कम्पनी के कम हो जाती है, याददाश्त बढ़ती है, डिप्रेशन के रोगी को भी सभी उम्रों के ६ लाख सदस्यों के आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी लाभ होता है इत्यादि ...... इत्यादि। ज्ञात हुआ कि ध्यान न करने वालों की तुलना में ध्यान करने वालों अमरीका के ही उच्चकोटि के वैज्ञानिक डॉ. बेनसन ने भी | को डॉक्टरी परामर्श की औसत आवश्यकता आधी रही। इस प्रकार के परिणाम उनके अनुसंधान कार्यों द्वारा प्राप्त की। इस प्रकार के अनुसन्धान से प्रभावित होकर ही अमरीका अमरीका के डॉ. राबर्ट एन्थनी ने इनकी पुस्तक 'टोटल | क कई | के कई डॉक्टर कई बीमारियों के उपचार हेतु दवा के नुस्खे के सेल्फ कॉन्फिडेंस' में ध्यान के २४ भौतिक लाभ गिनाने के बाद साथ ध्यान का नुस्खा भी लिखने लगे हैं। ध्यान के नुस्खे के यह बताया कि ये सब लाभ तो साइड इफेक्ट,यानी अनाज के अन्तर्गत रोगी को ध्यान सिखाने वाले विशेषज्ञ के पास जाना होता उत्पादन के साथ घास के उत्पादन की तरह हैं। मूल लाभ तो यह है जो ध्यान सिखाने की फीस लगभग ६० डालर प्रतिघण्टा की दर है कि आप ध्यान द्वारा अपनी आन्तरिक शक्ति के नजदीक आते से लेता है। अमरीका की कई चिकित्सा बीमा-कम्पनियाँ ध्यान हो। डॉ पथनी ने जो २४ लाभ मिनाजसोनाली पर होने वाले रोगी के इस खर्चे को दवा पर होने वाले खर्चे के रूप मुक्ति, ड्रग एवं नशे की आदत से छुटकारा पाने में आसानी, | में मानने लगी हैं व इसकी भरपाई करती हैं। अवस्थमा से राहत, ब्लडप्रेशर, कैंसर, कोलेस्टराल, हृदयरोग आदि अधिक क्या कहें, यहाँ तक कि डॉक्टरों के संगठन में लाभ सम्मिलित है। 'अमरीकन मेडिकल एशोसिएशन' ने ८३२ पृष्ठों की एक पुस्तक डॉ. आरनिश (अमरीका) ने उनकी पुस्तक 'रिवर्सिंग 'फैमिली मेडिकल गाइड' लिखी है जिसमें पृ. २० पर विस्तार से हार्ट डिजीज' में ध्यान का महत्त्व विस्तार से स्वीकार किया है। वे यह बताया है कि जीवन को स्वस्थ बनाये रखने के लिए नियमित यह प्रचारित करते हैं कि हृदय रोग की बीमारी ध्यान से ठीक हो | ध्यान करना चाहिए। पुस्तक के एक अंश का हिन्दी अनुवाद 20 अक्टूबर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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