Book Title: Jinabhashita 2003 10
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 27
________________ जिज्ञासा-समाधान हैं? पं. रतल लाल बैनाड़ा जिज्ञासा-वृहद्र्व्य संग्रह गाथा-41 की टीका में श्री । तब वे भगवान् के समवशरण में गिरनार पर्वत पर गये। वहाँ ब्रह्मदेवसूरी ने बज्रकुमार नामक विद्याधर को श्रमण लिखा है। ये | दिव्यध्वनि सुन संसार से भयभीत हो दीक्षा लेकर तपश्चरण करने बज्रकुमार मुनि की कथा है। तो क्या मुनिराज विद्याधर हो सकते लगे। तभी एक दिन रात्रि को सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण, जो अपनी पुत्री के त्याग के कारण अत्यन्त क्रोधित था, वह उन मुनिराज समाधान-आपने जो प्रश्न किया वह उचित ही है। इस गजकुमार के शिर पर तीब्र अग्नि प्रज्जवलित करने लगा। उस अग्नि संबंध में 2 प्रश्न उठते हैं। से उनका शरीर जलने लगा और उसी अवस्था में वे शुक्ल ध्यान 1.क्या मुनिराज विद्याधर हो सकते हैं। के द्वारा कर्मों का क्षय कर अन्तकृत केवली हो मोक्ष चले गये। 2. क्या मुनिराज को इस प्रकार आकाश में जैन रथ भ्रमण इस कथा के अनुसार उस समय गजकुमार एक दम नवयुवा कराकर प्रभावना कराना उचित है, जबकि उस काल में भट्टारकों | थे, इसलिए हमको ऐसा लगता है कि उनको अल्पायु मिली । मेरे का सद्भाव नहीं था। | इसी प्रश्न के उत्तर में पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने इन दोनों प्रश्नों के समाधान के लिए हमें बज्रकुमार मुनि की | समाधान दिया था कि इस नवयुवा आयु को अल्प आयु नहीं कहा कथा का श्री रत्नकरण्डश्रावकाचार गाथा-20 की, श्री प्रभाचन्द्राचार्य | जाता है। 8 वर्ष अर्तमुहूर्त की आयु में तो जीव संयम धारण कर, निर्मित टीका को देखना चाहिए, जो इस प्रकार है केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है । अत: 8 वर्ष अन्तर्मुहूर्त 'फाल्गुन मास की नन्दीश्वर यात्रा में उर्विला (जैन रानी)ने | से कम आयु को अल्पायु मानना चाहिए। तद्नुसार गजकुमार रथयात्रा की तैयारी की। उसे देख उस बौद्ध पटरानी ने राजा से कहा | महामुनि को अल्पायु प्राप्त करने वाला नहीं कहा जा सकता। कि देव, मेरा बुद्ध भगवान का रथ इस नगर में पहले घूमे। राजा ने | प्रश्नकर्ता- एच.डी. वोपलकर, उस्मानावाद । कह दिया कि ऐसा ही होगा। तद्नन्तर उर्विला ने कहा कि यदि मेरा | जिज्ञासा - लोक के निचले एक राजू भाग में निगोदिया रथ पहले घूमता है तो मेरी आहार में प्रवृत्ति होगी, अन्यथा नहीं। जीव ही रहते हैं या अन्य स्थावर जीव भी। आगम प्रमाण उत्तर ऐसी प्रतिज्ञा कर वह क्षत्रिय गुहा में सोमदत्त आचार्य के पास गई। | दीजिए? उसी समय बज्रकुमार मुनि की वंदना भक्ति के लिए दिवाकर देव | समाधान - लोक के निचले एक राजू भाग में, जिसे आदि विद्याधर आए थे। बज्रकुमार मुनि ने यह सब वृतांत सुनकर | अकलंक स्वामी ने राजवार्तिक में कलकला भूमि कहा है, पाँचों उन विद्याधरों से कहा कि आप लोगों को प्रतिज्ञा पर आरूढ़ उर्विला स्थावर जीव पाये जाते हैं। यह तो आपको ज्ञात ही होगा कि की रथयात्रा कराना चाहिए। तद्नन्तर उन्होंने बुद्ध दासी का रथ | निगोदिया जीव वनस्पतिकाय में ही गर्भित होते हैं। अन्य चार तोड़कर बड़ी विभूति के साथ उर्विला की रथयात्रा कराई। । स्थावरों में निगोदिया जीव नहीं होते। नीचे के एक राजू में पंच (टीका-पं. पन्नालाल जी, सागर) स्थावर होते हैं इसके आगम प्रमाण इस प्रकार हैंउपरोक्त कथा के पढ़ने पर हमें उपर्युक्त दोनों प्रश्नों का 1. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा- 120 की टीका में इस समाधान मिल जाता है । इस कथा में बज्रकुमार मुनि को विद्याधर नहीं प्रकार कहा हैकहा है और न ही उन्होंने स्वयं आकाश में रथ भ्रमण कराया था। तस्मादधोभागे रज्जुप्रमाणक्षेत्रं भूमिरहित विद्याओं का त्याग नहीं करने पर, विद्याधरों के केवल। से निगोदादिपचस्थावरभृतं च तिष्ठति। 5 गुणस्थान तक हो सकते हैं, इससे अधिक नहीं। जैसा कि अर्थ- उस लोक के अधोभाग के भूमिरहित एक राजू तिलोयपण्णत्ति अधिकार-4 की गाथा 2938 में कहा है | प्रमाण क्षेत्र में निगोद आदि पांच स्थावर जीव निवास करते हैं। विजाहरसेढीए तिगुणट्ठाणाणि सव्वकालम्मि। 2. द्रव्यसंग्रह गाथा - 35 की टीका में पृष्ठ - 133 पर श्री पणगुणठाणा दीसइ छंडिदविउजाण चौद्दसट्ठाणं॥ | ब्रह्मदेव सूरी ने भी ठीक इसीप्रकार कहा है(२९३८) तस्माद् अधोभागे रज्जुप्रमाण क्षेत्रं भूमिरहितं अर्थ- विद्याधर श्रेणियों में सदा तीन गुणस्थान (मिथ्यात्व, निगोदादिपन्चस्थावरभृतं च तिष्ठति। असंयत और देशसंयत) और उत्कृष्ट रूप से पांच गुणस्थान होते हैं। अर्थ- उपरोक्त प्रकार ही है। विद्याओं को छोड़ देने पर वहाँ चौदह भी गुणस्थान होते हैं। इससे 3. श्री सिद्धान्तसागर दीपक अधिकार -2 के श्लोक 7-8 स्पष्ट है कि बिना विद्याएं छोड़े निर्ग्रन्थ मुनिपना संभव नहीं होता। | में इस प्रकार कहा हैजिज्ञासा - श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार श्लोक नं. 35 के सप्तानां श्वभ्रपृथ्वीनामधो भागेऽस्ति केवलम्। अनुसार सम्यग्दृष्टि जीव अल्पायु नहीं होता। तो फिर गजकुमार एक रज्जूप्रभं क्षेत्रं पृथिवीरहितंभृतम्॥7॥ मुनिराज का निर्वाण अल्पायु में क्यों हुआ? नानाभेदैनिकोदादिपन्चस्थावरदेहिभिः ॥8॥ समाधान - श्री हरिवंशपुराण सर्ग-61, श्लोक नं. 2 से 7 अर्थ- सातों नरक पृथ्वियों के नीचे एक राजू प्रमाण क्षेत्र के अनुसार जब गजकुमार के विवाह के प्रारंभ का समय आया था | नरक पृथ्वी से रहित है, उसमें केवल पन्च स्थावरों के शरीर को -अक्टूबर 2003 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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