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ही सुन्दर, मार्मिक व अद्भुत चित्रण इस पउमचरिउ में मिलता है । को मारकर शुद्धि कहाँ मिलेगी? हे देव! इनके साथ तुम्हारा युद्ध जो इस प्रकार है
कैसा? यह सुनते ही राम ने हथियार डाल दिये और अपने दोनों व्यष्टि रूप में राम
पुत्रों का सिर चूम लिया। लव-कुश के मामा वज्रजंघ को भी बाहों पुत्र रूप- (अ) राजा जनक के म्लेच्छों से घिर जाने पर | में भरकर उनकी बार-बार प्रशंसा की कि आपके होने से ही में जैसे ही राजा दशरथ जनक की सहायता करने के लिए जाने हेतु अपने दोनों बेटों को पा सका हूँ। उद्यत होते हैं वैसे ही राम विरुद्ध हो उठते हैं और कहते हैं- मेरे | 4. मित्र रूप- सुग्रीव अपनी पत्नी तारा देवी का हरण हो जीते जी आप क्यों जा रहे हैं? मै शत्रु को मारुंगा। पुनः राजा | जाने पर रक्षा हेतु राम के पास गया। तब राम ने कहा- मित्र तुम दशरथ जव सुकुमार होने से उनको लड़ने में असमर्थ बताते हैं तब तो मेरे पास आ गये पर मैं किसके पास जाऊँ? जैसे तुम वैसे मैं भी राम यह कहकर- क्या बाल सूर्य अन्धकार को नष्ट नहीं करता, | स्त्री वियोग में काम ग्रह से गृहीत हूँ और जंगल-जंगल में भटक क्या बाल दावाग्नि वन को नहीं जलाती, क्या बाल सिंह हाथी को | रहा हूँ। इस पर सुग्रीव ने सीतादेवी का वृत्तान्त लाने की प्रतिज्ञा की चर-चर नहीं करता, क्या बाल सर्प नहीं काटता, युद्ध के लिये | तो राम ने भी मित्रता का हवाला देते हुए कहा- हे मित्र! मैंने भी कृच कर जाते हैं।
यदि सात दिन में तुम्हारी स्त्री तारा को लाकर नहीं दिया तो सातवें (ब) कैकया के वरदानानुसार राजा दशरथ द्वारा राम को | दिन सन्यास ल लूगा। अन्तत: राम न कपट सुग्राव का मार कर भरत के लिये छत्र, सिंहासन व धरती अर्पित करने के लिये कहने | तारा सहित सुग्रीव का पुन: अपने नगर में प्रतिष्ठित करवाकर मित्र पर राम ने कहा- पुत्र का पुत्रत्व उसी में है कि वह कुल को संकट | का कर्त्तव्य पूरा किया। समूह में नहीं डालता तथा अपने पिता की आज्ञा धारण करता है, 5. पति रूप - (अ) सीता के शोक में अत्यन्त दुखी राम गुणहीन और हृदय में पीड़ा पहुँचाने वाले 'पुत्र' शब्द की पूर्ति | के शोक को दूर करने के लिये (क्योंकि अति शोक से बुद्धि के करने वाले पुत्र से क्या ? यह कहकर राम ने भरत के सिर पर शिथिल हो जाने से मनुष्य कर्महीन हो जाता है।) मुनिश्री ने स्त्री पट्टा बांध दिया।
दुःख की खान और वियोग की निधि होती है आदि उपदेश राम (स) लंका नगरी में नारद से माता कौशल्या की वियोग | को दिये । उसे सुनकर भी राम धरती तल पर मूर्छा से विह्नल होते में क्षीण दशा का होना सुनते ही राम उन्मन होकर बोले- 'मैंने | हुए बोले- 'गाँव और श्रेष्ठ नगर प्राप्त किये जा सकते हैं, घोड़े और यदि आज या कल में माँ के दर्शन नहीं किये तो निश्चय ही माँ के | गज प्राप्त किये जा सकते हैं परन्तु ऐसा स्त्री रत्न नहीं प्राप्त किया प्राण पखेरू उड़ जावेंगे, अपनी माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी | जा सकता ।' प्यारी होती है' हे विभीषण अब मैं अपने घर जाता हूँ।
(ब) जाम्बवन्त ने भी राम के शोक को कम करने हेतु 2. भाई रूप - (अ) राम वनवास में भी भरत भाई का | उन्हें 13 रूपवान कन्याएँ स्वीकार करने के लिये कहा। तब राम पूरा ध्यान रखते थे। राम को जब वनवास पर्यन्त ही भरत के ऊपर | ने प्रत्युत्तर में कहा- 'यदि रम्भा या तिलोत्तमा भी हो, तो भी सीता राजा अनन्तवीर्य के आक्रमण करने की सचना मिली तो अपनी | की तुलना में मेरे लिये कुछ भी नहीं है। स्त्री का पराभव सबसे तीक्ष्ण बुद्धि से योजनानुसार अभिनय करते हए अनन्तवीर्य को | भारी होता है। भाग्य के फलोदय से जो मेरा यश रूपी वस्त्र पकड़ लिया तथा भरत की सेवा स्वीकार करने के लिये कहा। | अकीर्ति और कलंक के पंक मल से मैला हो गया है उसे मैं रावण
(ब) रावण व खरदूषण के साथ हुए लक्ष्मण के युद्ध में | के सिर पर पछाड़ कर साफ करूंगा।' जब पूर्व सुनिश्चित योजनानुसार लक्ष्मण के सिंहनाद को राम ने | 6. लौकिक धर्म व सामाजिक क्रियाओं के प्रति सुना तो अपशकुन होने पर भी उन सबकी उपेक्षा कर लक्ष्मण के | आस्थावान- राजा वज्रकर्ण के प्रकरण में राम यह कहकर कि पास युद्ध क्षेत्र में पहुँच गये।
'सत्य मिथ्यात्व के तीरों से नष्ट नहीं होता' सम्यक्त्व के प्रतिष्ठाता (स) लक्ष्मण के शक्ति से आहत होने पर राम विलाप | बने हैं तो बालिखिल्य को रुद्रभूति से मुक्त करवाकर पीड़ितों के करते हैं- 'हे हतभाग्य विधाता! तुम ही बताओ इस प्रकार हम
रक्षक हुए हैं। राजा अनन्तवीर्य के तपश्चरण स्वीकार करने पर भाईयों का बिछोह करा कर तुम्हें क्या मिला? तुम्हारी कौन सी जब राम भी उनके सेवक बन जाते हैं तब उसमें उनकी तपश्चर्या कामना पूरी हो गयी। चाहे कलिकाल रूपी शनिचर की नजर मुझ के प्रति पूज्य भाव के दर्शन होते हैं । वेसे ही जिनेन्द्र के प्रति श्रद्धा पर पड़ जाय परन्तु भाई का वियोग न हो'।
मुनियों के प्रति भक्ति व उनके उपसर्ग दूर करना तथा ब्राह्मण, 3. पिता रूप - राम और लक्ष्मण के साथ लव व कुश के बालक, गाय, पशु, तपस्वी, स्त्री के प्रति रक्षा के भाव में भी राम द्वारा किये जा रहे युद्ध में नारद ने राम को कहा- अपने ही पुत्रों | का धार्मिक पक्ष प्रबल बन पड़ा है।
-अक्टूबर 2003 जिनभाषित 15
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