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रुद्रट एवं मम्मट ने काव्योत्पादक हेतुओं में सबसे अधिक महत्व | महोत्सव के पश्चात् दूसरी बार हम लोग गुरुदत्त उदासीन आश्रम प्रतिभा को दिया है। उनके अनुसार आचार्य विद्यासागर को 'सहजा | के 3-4 पदाधिकारियों के साथ बण्डा गये और आश्रम की अधिष्ठाता प्रतिभा' अर्थात् जन्मजात प्रतिभा प्राप्त थी, संस्कृत के अनेक शतकों, | विदुषी 87 वर्षीया ब्र. रामबाई के कमर में फेक्चर एवं अस्वस्थ शारदा स्तुति एवं अनेक शास्त्रों का सरल सुबोध भाषा में पद्यानुवाद | होने तथा सल्लेखना लेने का समाचार बताया, तब उन्होंने मधुर कर पूर्ववर्ती आचार्यों की परम्परा का हिन्दी में विकास किया है। मुस्कान के साथ कहा- 'बाई जी से आशीर्वाद कहना' हम लोग यह सम्पूर्ण साहित्य भारतीय वाङमय के लिये वरदान सिद्ध हुआ आचार्य श्री की शान्त, निर्विकार, गम्भीर तेजस्वी मुद्रा देखकर है, इस साहित्य ने मानव मात्र को
दूसरे दिन वापिस लौट गये। कुछ दिनों बाद हम यह देखकर हर संकट, हर असत्शक्ति से, लड़ने का अभ्यास दिया है। | आश्चर्य चकित रह गये। कुछ दिनों के बाद आचार्य श्री की दो जायुग का आ
जो युग का अन्धियारा हर ले, ऐसा दिव्य प्रकाश दिया है।। धर्मपरायण विदुषी शिष्याएँ बाई जी की समाधि तक उनकी पंचकल्याणक के समय एक बार बोली लग रही थी और वैय्यावृत्ति करने एवं धर्मदेशना से उनका समधिमरण सुधारने आ *1301' (तेरह सौ एक) पर कुछ क्षण के लिए बोली रुक गई। गईं। उन दोनों दीदियों के तपोनिष्ठ आचरण एवं सादगीपूर्ण जीवनचर्या बस क्या था आचार्य श्री उक्त संख्या को सुनकर चिंतन में डूब गये | से सभी आश्रमवासी प्रभावित हुये । उन्हें प्राप्त 44 बजे से रात्रि
और सोचने लगे तेरा ही मेरा बस एक आत्मा की अपना है, शेष | 84 बजे तक प्रार्थना, पूजापाठ, स्वाध्याय, अध्ययन, आरती आदि सब पराया है, मिथ्या है। उन्हें याद आ गयी आचार्य कुन्द कुन्द | में तीव्र रुचि जाग्रत हो गई। पूज्य श्री गणेशप्रसाद वर्णीजी की स्वामी की गाथा
प्रेरणा से संस्थापित उदासीन आश्रम सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरि की व्यवस्था एगो मे सासदो आदा, णाण-दंसण-लक्खणो। उत्तम हो गई। वृद्धाश्रम की अधिष्ठाता ब्र. रामबाई जी प्रसन्नता के
सेसा मे बाहिरा भावा, सच्चे संजोग लक्खणा॥ वातावरण में कुछ ही दिनों के आयुर्वेदिक लेप तथा आचार्य श्रीके
ज्ञान, दर्शन लक्षण वाला एक आत्मा ही तेरा है। वही | आशीर्वाद से स्वस्थ हो गईं। पर्वतराज की वन्दना वे सबके साथ शाश्वत अविनाशी है और पर पदार्थ के संयोग से उत्पन्न होने | धीरे-धीरे पर्वत पर चढ़कर कर आईं। वाले काम क्रोधदि जितने भी विकारी भाव हैं, वह सब मुझसे आचार्य श्री जब यात्रा करते हैं तब उनकी नीची निगाहें भिन्न हैं। इसी बात को समयसार में भी आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी | इन पंक्तियों को साकार कर देती हैं:। कहते हैं
"षटकाय जीव न हनन सब विधि दरव हिंसा टरी" अहमिक्को खलु सुद्धो, दंसण-णाण-मइयो सदारूवी। ऐसा लगता है कि मुनिराज छहकाय जीवों की हिंसा न हो अत:
ण वि अस्थि मज्झ किंचि वि, अण्णं परमाणु मित्तं पि॥ | पूर्णरूप से अहिंसा महाव्रत का पालन करते हुए गमन कर रहे हैं। ___अर्थात ज्ञान दर्शन से तन्मय रहने वाला मैं एक शुद्ध और | और श्रावकों को यह शिक्षा देते हैं- जयं चरे, जयं चिढ़े, जय रूपादि से रहित हूँ। इस ज्ञान दर्शन स्वभावी एक आत्मा को आसे, जयं सये। छोड़कर अन्य कुछ भी मेरा परमाणु मात्र भी नहीं है। जब आचार्य श्री के अनेक बार दर्शन होते हैं तो ऐसा
उप अधिष्ठाता, दिगम्बर जैन
गुरुदत्त उदासीन आश्रम, द्रोणगिरि आभास होता है कि गुरुदेव तो, मनोविज्ञान, भविष्य विज्ञान एवं आकृति विज्ञान के पारखी हैं। फरवरी 2002 बंडा के गजरथ
जणा।
बेहद फायदेमंद साबित हुआ गाय का गोबर झारखंड की राजधानी रांची के पास अंगारा में स्कूल की छत पर बिजली गिरने से कई बच्चे बेहोश हो गए। और जल्दी ही उन्होंने इसकी सूचना गांव के लोगों को दी। खबर मिलते ही गांव के लोग वहां पहुंचे ओर बेहोश विद्यार्थियों के शरीर पर गाय के गोबर का लेप लगा दिया। थोड़ी देर बाद १५ में से १३ बच्चे होश में आ गए। स्कूल के हेडमास्टर सादरनाथ महतो का कहना है कि बिजली गिरने के बाद क्लास रूम के सभी बच्चे बेहोश हो गए। गांव का प्राथमिक चिकित्सा केंद्र वहां से चार किलोमीटर दूर था। इसलिए उन्होंने घबराकर गांव वालों को खबर भेजी। लोगों ने बच्चों को कमरे से बाहर निकाला और उनके शरीर पर गोबर का लेप लगा दिया। कुछ ही देर में तेरह बच्चे होश में आ गए और दो बेहोश बच्चों को निजी क्लिनिक में भरती करा दिया गया। गांव के लोगों का कहना है बिजली गिरने से बेहोश हुए बच्चों के उपचार की दवा डॉक्टरों के पास नहीं थी। सो, हम लोगों ने देसी इलाज की बात सोची और उनकी देह पर गोबर का लेप लगा दिया। लोगों का यह भी कहना है कि बिजली गिरने से मूर्च्छित व्यक्तियों पर इसका लेप बेहद कारगर साबित होता है और लोग जल्दी ही होश में आ जाते हैं।
12 सितम्बर 2003 जिनभाषित
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