Book Title: Jinabhashita 2003 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 24
________________ भिलाई के भक्त तो मंदिर जी में ही अनशन पर बैठ गये कि जब । तो करुणा के सागर हैं, निस्पृह संत हैं, फिर उपसर्ग समाप्त हो जाने तक आचार्यश्री आहार नहीं लेंगे, भिलाई के किसी घर में चूल्हा | के बाद भी, यह मौन क्यों? नहीं जलेगा। तभी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री अजीत जोगी का संदेश भक्तगण आचार्यश्री को मना रहे थे, पूरा साधु-संघ मना | उनके राज्यमंत्री श्री बदरुद्दीन कुरेशी ने सविनय सुनाया। रहा था, तब तक देश में विभिन्न स्थानों पर चातुर्मास कर रहे। | कमेटी की प्रार्थना पृथक जोर मार रही थी, दोपहर के दो साधु-संतों के प्रतिनिधियों के फोन आने लगे। सभी का एक ही | बज गये थे, भिलाई के भक्त उपवास पर थे। दयालु आचार्यश्री ने कथन था"आचार्यश्री विराग सागर मौन तोड़ें, आहार को उठे।" देश के संतों और भिलाई के भक्तों की बात रखी, ठीक ढाई बजे जिन प्रमुख आचार्यों के संदेशों ने आचार्यश्री को सोचने | दोपहर को ससंघ, नित्य की तरह, आहारों को उठे। पर विवश कर दिया, उनमें परमपूज्य मासोपवासी तपस्वी सम्राट भिलाई नगर में प्रसन्नता छा गई। सारे देश में फैले आचार्य आचार्य सन्मति सागर जी महाराज, राष्ट्र संत प्रज्ञाश्रमण परमपूज्य श्री के शिष्यगण भी उपवास पर थे, अतः भिलाई वालों ने हर साधु आचार्य विद्यासागर जी महाराज , वात्सल्य रत्नाकर प.पू. आचार्य | के चातुर्मास स्थल पर, फोन से सूचना दे दी। भरत सागर जी महाराज, जिनधर्म प्रभावक प.पू. आचार्य वर्धमान | सब कुछ सामान्य हो गया। जिनधर्म की विजय हुई, कमठ सागर जी महाराज, पू.आचार्य कुंथुसागर जी महाराज, पू. आ. | रूपी पापाचारियों को सद्बुद्धि मिली और देश का एक आचार्य कनकनंदी जी महाराज, पू. आ. पुष्पदंत सागर जी महाराज, पू. | 'बच' गया। अनेक शहरों एवं तीर्थों से अन्यान्य संतों के संदेश आ. देवनंदी जी महाराज, पू. आ. सुविधि सागर जी महाराज, पू. | वाहकों और डाक आदि से पहुंच रहे हैं। उपसर्ग के समय कठिन आ. रयन सागर जी महाराज, पू. आ. विवेक सागर जी महाराज | श्रम कर उन्हें लाने वाले श्रावकों को धन्यवाद ही कहा कहा जा पू. आ. देवनंदी महाराज, पू. आचार्य कल्प हेम सागर जी महाराज, | सकता है, वे पक्के भक्त हैं, संतों के आशीष उनपर बरसते रहेंगे। पू. मुनि प्रज्ञासागर जी, पू. मुनि प्रार्थनासागर जी, पू. मुनि अजयसागर | इस घटना से देश के दिगम्बर संतों की 'संत-संस्था' की जी आदि के कृपापूर्ण संदेश कमेटी ने प्राप्त कर आचार्य श्री को | जो एकता देखने मिली वह सतयुगी है। इसी तरह पू.आचार्य श्री बतलाये । तब तक दुर्ग में वर्षायोग कर रहे पू. आ. स्याद्वाद सागर | विराग सागर जी संयम और क्षमा भाव 'संयम वर्ष' की प्रथम जी संघ और श्रावकों के साथ उनके कक्ष में गये और कहा कि | श्रेष्ठता का प्रतीक बन गया है। देश भर के संतों के संदेश को आप अनसुना नहीं कर सकते, आप 293, गढ़ाफाटक, जबलपुर (म.प्र.) क्रमश.. व्यंग्य नहीं सत्य संकलन : श्रीमती सुशीला पाटनी | 1. ऐसा कोई इंसान नहीं, जिसके पास एक भी गुण नहीं है। ऐसा कोई इंसान नहीं, जिसके पास एक भी औगुण नहीं है। इसीलिए मैं आपसे बार-बार कहता हूँ। दूसरों के अवगुण को देखना, यह आपका अच्छा गुण नहीं है। 2. जो दूसरों के दुख को देखकर दुखी होते हैं वे इंसान कहलाते हैं। जो अपने पाप कर्म से दुखी हैं वे हैवान कहलाते हैं। किन्तु दुनियाँ में सबसे ज्यादा दुखी तो वे रहते हैं। जो दूसरों को सुखी देखकर दुखी हैं वे शैतान कहलाते हैं। 3. हर किसी जीव के भाव को समझना आसान काम नहीं है। जैसे केवली भगवान को जानना शैतान का काम नहीं है। किसी के भावों को समझे बिना निर्णय ले लेना | आप जैसे सज्जन का अच्छा काम नहीं है। 4. कोई जन्म से ही महान् होता है। कोई पुरुषार्थ से महान् होता है। किन्तु आज का मानव महान् बनने के चक्कर में अपनी मानवता को ही खो देता है। 5. अपने नाम के पीछे दूसरों को बदनाम करना अच्छा नहीं है। अपने काम के पीछे दूसरों को बेकाम करना अच्छा नहीं है। यदि आपके जीवन में यश का उदय नहीं तो हम क्या करें | अपने यश के पीछे दूसरों का अपयश फैलाना अच्छा नहीं है। मदनगंज-किशनगढ़ (राजस्थान) 22 सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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