Book Title: Jinabhashita 2003 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 26
________________ हूँ कि मुझे इतनी शक्ति प्रदान करें कि जिस पथ पर चल रहा हूँ। अंत में इस समय सभी के लिए मुझे यही कहना है कि उस पर अडिग बना रहूँ। सभी लोग समता, शांति का परिचय दें। जहाँ-जहाँ से भी श्रद्धा इस अवसर पर आचार्य श्री की न जाने कितनी सारी बातें | भक्ति से लोग दौड़े आये हैं, इससे उनकी श्रद्धा और अधिक ध्यान में आती हैं एक बार जब मेरा अलग विहार होने लगा तब निर्मल हो गई। मुझे लगता है कि मेरी परीक्षा के साथ-साथ मैंने आचार्य श्री से कहा कि भगवन् कोई उपदेश दीजिए जो पाथेय | आपकी श्रद्धा की परीक्षा भी हो गई। इस घटना से केवल जैन बन सके, तब उन्होंने कुंद-कुंद महाराज की एक गाथा सुनाई थी- समाज ही नहीं परंतु अन्य श्रद्धालु जन भी द्रवित हैं, तो मुझे लगता ऋण पोयणं पि मण्णे, उपसग्गं परिषहं तित्वं। है कि भारत में आज भी आत्मीयता जीवित है। पाव फलं मे एदे, मया वि संचयं पुव्वं॥ आप सभी को मेरा आशीर्वाद है कि अपनी सहनशीलता इसका मतलब है कि संत के जीवन में जब कभी उपसर्ग का परिचय देते हुए अपनी श्रद्धा को निर्मल बनाएँ। श्री प.पू. आ. आते हैं तो वह यह सोचते हैं कि मैं कर्म मुक्त हो गया। निश्चित | विमलसागर जी महाराज की जय। है कि पूर्व कर्म सत्ता में रहते हैं और जब तक वह सत्ता में रहते हैं तब तक कर्म के रूप में रहते हैं। कर्म तो चुकाना ही पड़ता है चाहे प्रस्तुति : ब. पंकज रोकर दिया जाए या हँसकर, इसलिए संत लोग कर्मोदय में भी हंसते ही रहते हैं। मंगल-कामना डॉ. वन्दना जैन जब-जब बादल मेघ बरसता आँखों से बरसातों सा जब-जब भू पर क्रंदन होता नभ में उठती ज्वालायें जब-जब दुख से कातर होकर त्राण चाहती मानवता तब गुरु हाथ उठाकर कहते सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु। जब धरती भी कांपने लगती हिंसा के आघातों से बूचड़ खाने खोल-खोल कर । करें कमाई सरकारें बढ़ते अत्याचार देखकर सिसक सिसक कर रोती करूणा तब मेरे गुरुवर गाते हैं। सर्वेषां शान्तिर्भवतु। सागर की लहरों सा जीवन गंदे नाले में बदला तलवारों की प्यास बुझी जब झुका पाप का ही पलड़ा मानवता के खाते में बस आया ख्वाब अधूरा सा फिर गुरुवर की वाणी गूंजी सर्वेषां पूर्णंभवतु। 'कार्ड पैलेस' वर्णी कॉलोनी, सागर (म.प्र.) 24 सितम्बर 2003 जिनभाषितJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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