Book Title: Jinabhashita 2003 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 30
________________ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बिलहरी जिनेन्द्र कुमार जैन कटनी शहर से पंद्रह किलोमीटर दूर स्थित बिलहरी नगर, जो कभी पुष्पावती नगरी के नाम से विख्यात था। इन दिनों जनजन की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। तारण पंथ के प्रवर्तक संत तारण-तरण की जन्मस्थली होने के साथ-साथ यह क्षेत्र दिगम्बर जैन संस्कृति का महान् केन्द्र रहा है। यहाँ विराजमान आठमीनवमी शताब्दी की भगवान् बाहुबली की मनोज्ञ युगल प्रतिमाओं के कारण एक ओर इस देश की सबसे प्राचीन बाहुबली प्रतिमा से मंडित होने का गौरव प्राप्त है यहाँ उपलब्ध शताधिक मूर्तियाँ, पुरावशेषों एवं चारों तरफ खाली पड़े मंदिरों के विशाल शिखरों को देखकर यह सहज ही अनुमान लग जाता है कि यह नगरी कभी किया तथा वहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं को मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ प्रतिमाओं को भव्य वेदी पर विराजमान करने का मार्ग दर्शन दिया। जैन संस्कृति का बहुत बड़ा केन्द्र रही होगी। अगले दिन मंदिर की जीर्णअपने गरिमामयी अतीत को समेटी यह नगरी चर्चा का गरिमामयी अतीत को सोयह नगरी चर्चा का शीर्ण अवस्था को ध्यान में विषय तब बनी जब विगत् दो वर्षों पूर्व यहाँ के पंचायती जैन मंदिर रखते हुये इंजीनियरों से की दीवार की खुदाई से दीवार में चुनी चौदह जिन प्रतिमाएँ प्रकट दाई से दीवार में चनी चौदह जिन पतिमापक परामर्श लेकर पूरे मंदिर के हुईं। प्रतिमाओं के प्रकट होने का समाचार सुनते ही कटनी और जीर्णोद्धार सहित तीन वेदी आस-पास के जैन श्रद्धालुओं का तांता लग गया। सभी के मन में का और भव्य शिखर युक्त इन प्रतिमाओं को भव्य वेदी पर विराजमान करने की उत्कृष्ट मंदिर बनाने का संकल्प अभिलाषा थी। परंतु मंदिर जी जीर्ण-शीर्ण दशा और चार घर की कटनी की जैन समाज ने साधन हीन स्थानीय जैन समाज इस कार्य को आगे बढ़ाने का ठोस लिया। मुनिद्वय के प्रेरक उपक्रम नहीं कर सकी। प्रवचनों से प्रभावित होकर इसी बीच इस वर्ष कटनी से बहोरीबंद चातुर्मास के लिये दानदाताओं ने मुक्त हस्त से बिहार करते हुये संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी संत शिरोमणि आचार्य गरुवर विद्यासागर जी | दान की घोषणा की स्थानीय महाराज के परम प्रभावक शिष्य-मुनिश्री १०८ समता सागर जी. | जैन समाज ने भी उदारता मुनिश्री १०८ प्रमाण सागर जी, ऐलक १०५ श्री निश्चय सागर जी पूर्वक दानराशि घोषित की। महाराज जिन प्रतिमाओं के दर्शनार्थ बिलहरी पहुँचे। यहाँ विराजित मंदिर अत्यंत जीर्णप्रतिमाओं के दर्शन से मुनिद्वय मुग्ध हो उठे। मुनिद्वय ने भगवान् | शीर्ण स्थिति में था। उसके आदिनाथ की अत्यंत मनोज्ञ प्रतिमा को देखकर अपार हर्ष व्यक्त गुमटीनुमान शिखरों पर लगी 28 सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org

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