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बाह्य तप
जो तप पूर्व समय में अर्जित कर्म रूपी पर्वत के लिए अन्तरंग तप के उपरांत 6 प्रकार के बाह्य तपों का भी। कुलिश है, जो कामाग्नि की ज्वालाओं के लिए जल स्परूप है, जो पालन करना चाहिए।
उग्र (तीव्र) इन्द्रिय रूपी सर्प के लिए मन्त्राक्षर है जो विघ्न रूपी 1. अनशन- इसे उपवास कहा जाता है। अपनी शक्ति के अंधकार के समूह के लिए दिवस सदृश्य है और जो कैवल्य रूपी अनुसार अन्न आदि चार प्रकार के पदार्थों का त्याग करना अनशन
लता के समान है, ऐसा तप दो प्रकार का है अन्तरंग और बहिरंग।
जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। सूक्ति मुक्तावली में कहा 2. ऊनोदर - भूख से कम भोजन ग्रहण करना। सुरुचिपूर्ण गया है। वस्तु का त्याग करना, एकासन करना आदि ऊनोदर कहलाता है।
यस्माद्विघ्न परम्पराविघटते दास्यं सुरा कुर्वते। इसी को अवमोदर्य भी कहते हैं।
काम्यासाम्यति दाम्यति इन्द्रिय गणा कल्याणमुपसर्पति 3. वृत्ति परिसंख्यान - प्रतिज्ञा लेकर प्रतिज्ञा की पूर्णता पर
उन्मीलन्ति महंर्धयः कलयति ध्वंसं च यत्कर्मणा, ही आहार ग्रहण करना। साधुगण इस नियम का पालन करते हैं।
स्वाधीनं त्रिविधं शिवं च भवति श्लाघ्यंतपस्तन्न किम्॥ 4. रस परित्याग- विभिन्न रसों के त्याग को रस परित्याग
जिससे विनों का नाश होता है, देवता दासता स्वीकार कहते हैं । शास्त्रों के अनुसार रविवार को नमक, सोमवार को हरी
करते हैं, कामवासना शांत होती है, इन्द्रियों का दमन हो जाता है सब्जी, मंगलवार को मीठा, बुधवार को घी, गुरुवार को दूध तथा
कल्याण की वृद्धि होती है महान् ऋद्धियों की प्राप्ति होती है, कर्मों . मलाई, शुक्रवार को दही तथा शनिवार को मूंगफली, खोपरा आदि का नाश किया जाता है। स्वर्ग और मोक्ष स्वाधीन हो जाते हैं, वह का त्याग करना चाहिए।
तप श्लाघनीय क्यों न हो अर्थात- प्रशंसनीय होता है। 5. विविक्त शैय्यासन - कल्याणार्थ किसी एकान्त वन
उपरोक्त तप केवल मनुष्य ही कर सकता है देव, तिर्यंच या गुफा में एक करवट से सोना तथा आत्मा का चिंतन मनन और नारकियों में संयम साधना न होने से वे तप धारण नहीं कर करना।
सकते। अत: मानव जन्म पाकर भी हमने तप को अंगीकार नहीं 6. कायक्लेश - शरीर के प्रति ममत्व भाव का त्याग
किया तो हम संसार में रहकर कौन सा श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। अतः करना तथा शरीर के माध्यम से तपस्या करना।
धर्म धारण कर अपनी आत्मा को निर्मल बनायें। कर्मों का क्षय इस प्रकार तप बारह प्रकार के कहे गये हैं। इन तपों के | करें । मोक्ष प्राप्त करने का उपक्रम करें। यही तप धर्म की सार्थकता पालन से कर्मों का नाश होता है कहा गया हैयत्पूर्वार्जित कर्म शैल कुलिशं, यत्कामदावानलः।
ए-27, न्यू नर्मदा विहार ज्वालाजाल जलं यदुन करणं ग्रामाहि मन्त्राक्षरन्॥
सनावद (म.प्र.) यत्प्रत्युह तमः समूह निखिलं यल्लब्धि लक्ष्मीलता। मूलं तद्विविध यथाविधितपः कुर्वीत वीतस्पृहः ।।
बोध-कथा
आचरण का प्रभाव
एक सेठ थे। उन्होंने अपने कारोबार के लिए कुछ रुपये। से पूछा, सबने इन्कार कर दिया। तब रुपये गये तो कहां गये ! किसी से उधार लिये। वह समय पर उन रुपयों को नहीं लौटा | उन्होंने लड़के से पूछा तो उसने भी मना कर दिया। पाये । कर्ज देने वाले ने बार-बार मांग की तो वह मुंह छिपाने | लेकिन जब सेठ ने बहुत धमकाया, तो लड़के ने मान लिया कि लगे। उन्होंने अपने लड़के को सिखा दिया कि जब वह आदमी | रुपये उसने ही निकाले थे। आये तो कह देना कि पिताजी घर पर नहीं हैं।
सेठ को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने लाल-पीले होकर वह आदमी जब-जब अपने रुपये मांगने आया, लड़के लड़के के गाल पर जोर से चांटा मारा और कहा, 'कायर, तू ने कह दिया, 'पिताजी घर पर नहीं हैं।'
झूठ बोलता है।' कई दिन निकल गये।
__लड़के ने तपाक से कहा, 'पिजाती, झूठ बोलना आपने एक दिन सेठ ने देखा कि उनकी जेब से दस रुपये ही तो सिखाया है।' गायब हैं। वह बड़ी हैरानी में पड़े। उन्होंने बार-बार रुपये गिने, । सेठ ने अपनी भूल समझी और लज्जा से सिर झुका लिया। पर हर बार दस कम निकले। उन्होंने घर के एक-एक आदमी
आदर्श कथाएँ : यशपाल जैन
14 सितम्बर 2003 जिनभाषित
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