Book Title: Jinabhashita 2003 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 21
________________ सदलगा की भूमि पर आचार्य श्री विद्यासागर जी की शिष्याओं का चातुर्मास महासूर्य की जननी महाप्राची रूप सदलगा की धरती पर | अपूर्व व अद्वितीय हैं यद्यपि वे अपने माता पिता की द्वितीय संतान हो रहा है आर्यिका रत्न 105 आदर्शमति माताजी का संसघ सुखद | रहे किन्तु इस द्वितीय संतान ने अद्वितीयता के ही कीर्तिमान स्थापित चातुर्मास। किए जो प्रेरणादायी हैं, आदर्शमयी हैं, रोमांचकारी हैं। पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर महाराज की समस्त प्रथम अद्वितीयता तो यह है कि उनका पूरा परिवार शिवपथ शिष्य मंडली में महासौभाग्य शालिनी हैं श्री आदर्शमति माता जी, | गामी है। भाई महावीर प्रसाद अष्टगे भी घर में सपत्नीक अखण्ड जिन्होंने गुरु जन्म-भू पर वर्षायोग का प्रथम पावन अवसर पाया। ब्रह्मचर्य से रह रहे हैं, कर्तव्य निर्वाह हेतु । शेष तो गृहत्यागी हो मात्र पुण्यमयी धरा पर ही नहीं वरन् बिल्कुल उसी स्थान पर संघ | चुके हैं। चातुर्मास कर रहा है, जिस स्थान से कुछ वर्ष पूर्व सप्त ऋषियों की । दूसरी अद्वितीयता यह है कि उनके गुरु ने ही उनका भाँति निकल चुके थे सप्त आत्म-तत्व जेता, घर के एक सदस्य शिष्यत्व स्वीकारा। इस सदी के वे ऐसे गुरु हैं जो अपने गुरु के को भरत की भाँति कर्तव्य निर्वाह हेतु छोड़कर। पूरा परिवार | सम्मुख ही गुरु के गुरु बने । उनके गुरु आ. श्री 108 ज्ञानसागर जी पावन पथ पर बढ़ गया पुण्य पाप से परे होने। महाराज ने अपने कर कमलों से उन्हें आचार्यपद सौंपा। 80 वर्ष जहाँ छायी है विद्याधर की पावन स्मृतियाँ, जिस स्थान | के आचार्य वर जो कि मात्र वयोवृद्ध ही नहीं, ज्ञान वृद्ध, तपोवृद्ध का कण-कण सुनाता है 'पीलू' की पुण्यमयी कहानियाँ, जहाँ | और अनुभव वृद्ध के साथ आर्जववृद्ध भी थे, 26 वर्षीय युवा मुनि गूंज रही है 'गिनी' की गौरवमयी गाथाएँ, 'तोते' की तारणहारी | के चरणों में अपना महाशीश झुकाया युवा शिष्य की वंदना वृद्ध कथाएँ! उसी सन्निवेश में साधना रत है समस्त संघ आनंद के | गुरु ने की। शिष्य की चरण धूल गुरु ने अपने माथे पर लगाकर साथ ! हाँ, उस धरा का नाम तो आप जानते ही हैं । दक्षिण देश में | आर्जव की चरम सीमा का अनूठा आदर्श स्थापित किया। भी एक प्राची है और वह प्राची है सदलगा। जो दक्षिण बड़े-बड़े महाज्ञानी, महादानी, महाकवि, महासाधक, महामानजेता आचार्यों का दाता रहा उसी दक्षिण देश में जुड़ गया नाम सदलगा | महाचार्य-प्रदाता आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने इस युग की का भी जहाँ से 7 कि.मी. दूर पर भोज क्षेत्र है, जिसने कि इस युग श्रमण संस्कृति के पन्नों पर एक नया महाध्याय जोड़ दिया। जो के प्रथम आचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर महाराज को | कि युगों-युगों तक गर्व के साथ पढ़ा जाएगा। उन्होंने इस युग को जन्म देने का सौभाग्य पाया है और इसी सदलगा से 15 कि.मी. | वह संत दिया जो इस समय में श्री कुंदकुंदाचार्य की झाँकी दिखा कोपली क्षेत्र है जहाँ कि आचार्य श्री देशभूषण महाराज जी का जन्म हुआ था। सदलगा से ही 35 कि.मी. दूर शेडवाल है जहाँ गुरुवर के साथ जुड़ी तीसरी अद्वितीयता यह है कि उनकी कि विद्यानंद जी महाराज का जन्म हुआ सभी की जन्मभूमियाँ | समस्त शिष्य मंडली बाल ब्रह्मचारिणी है। यह इस युग का अद्भुत एक दूसरे को छू रही हैं। दक्षिण के चार महाग्रामों का संगम । चार | चमत्कार है कि माता-पिता की गोद से फिसल फिसलकर बच्चे आराधनाओं की प्रदात्री दक्षिण माटी है। शायद इसी वजह से इस | उनकी शरण ले रहे हैं। बुंदेल खण्ड के तो वे भगवान हो गए हैं। भारत वसुंधरा को रत्नगर्भा कहा गया है। सदलगा भी रत्नगर्भा है | बुदेलखण्ड के घर-घर में ही नहीं बुंदेलवासियों के दिल-दिल में जहाँ से एक नहीं, कई रत्न निकले और उन रत्नों में बन गया एक | उनकी तस्वीर है। बच्चा-बच्चा उनका नाम बड़े ही गर्व के साथ रत्न रत्नों का रत्न कोहिनूर हीरा, जिसका चारित्रिक नूर इतना | लेता है। माताएँ लोरियों में उनके विराग की गाथाएँ गागा कर निखर गया कि उसके सम्मुख कोहिनूर का निखार भी लज्जित हो | सुनाती हैं। हर माँ की कोख लालायित हो उठी श्रीमति माता की गया। सदलगा के रत्नों में से तीन और रत्न उस कोहिनूर हीरे के कोख बनने । पर प्राची दिशा तो एक ही होती है न! और प्राची ही साथ श्रमण संस्कृति के हार में जड़ित होकर जगमगा रहे हैं, और | नहीं सूर्य भी एक ही होता है और सूर्य भी नहीं शरद पूनम का वे तीन रत्न हैं मुनि श्री समयसागर जी महाराज, मुनि श्री योगसागर | चाँद भी तो एक ही होता है। जी महाराज, मुनि श्री नियमसागर जी महाराज। दो रत्न अपना | आधुनिक मशीनों की चीखों से दूर, कारखानों की कर्णभेदी रत्नपना सार्थक कर समाधिरूप हो गए, वे हैं मुनि श्री मल्लिसागर आवाजों से अछूता यह सदलगा ग्राम बड़ा ही सुरम्य है। पर भागते जी महाराज और आर्यिका श्री समय मति माताजी। वृषभ, उनको हाँकते कृषक, सर पर घट लिए पनिहारिने, गली- परमपूज्य आ. श्री विद्यासागर जी महाराज के साथ ऐसी | गली खेलते बच्चे, वृक्षों पर झूला डाले झूलती बालाएँ और उनकी कई घटनाएँ जुड़ी हैं, जो कि इस सदी के समस्त संतों के मध्य । सरल सहज उन्मुक्त हँसी, खेतों में लहलहाती फसलें, हरे भरे -सितम्बर 2003 जिनभाषित - 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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