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प्राकृतिक चिकित्सा स्वास्थ्य प्रत्येक मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है
डॉ. वन्दना जैन स्वास्थ्य प्रत्येक मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है और | है। निरोग रहना मानव शरीर की स्वाभाविक स्थिति है, रोग या कष्ट । प्रस्तुत लेख का उद्देश्य प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में शरीर के शत्रु नहीं हैं कि हम उनसे संघर्ष करें या उन्हें दवाएँ। दवा । उपयोगी जानकारी देकर इस सरल एवं सस्ती चिकित्सा पद्धति अथवा डॉ. रोगी को रोग मुक्त नहीं करते, रोगी स्वयं अपने को को जन-जन तक पहुँचाना है, जिससे समाज के हर वर्ग में इस रोग मुक्त करता है। हमारे देश में कई चिकित्सा पद्धतियाँ प्रचलित | चिकित्सा के बारे में जागृति उत्पन्न हो सके तथा यह अहिंसक हैं जैसे एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी तथा प्राकृतिक | पैथी लोकप्रिय बन जाये। पिछले लेखों में मैंने कुछ रोग तथा चिकित्सा आदि इनमें से हर एक की अपनी-अपनी अच्छाईयाँ हैं, | उनकी प्राकृतिक चिकित्सा के बारे में जानकारी दी उसका उद्देश्य कोई भी चिकित्सा पद्धति अपने आप में पूर्ण नहीं है, कहीं न कहीं | सिर्फ आपको स्वास्थ्य लाभ पहुंचाना है। पर उसे अन्य पद्धतियों का सहारा लेना पड़ता है।
निरोग रहने के लिये केवल एक घंटा :जहाँ तक प्राकृतिक चिकित्सा का सवाल है इसके दो पक्ष "Prevention is Better Than Cure हैं, पहला सुरक्षात्मक और दूसरा उपचारात्मक । आज उपचार के इंग्लिश की इस कहावत का अर्थ है बीमार होकर ठीक साथ-साथ इस बात की भी जरूरत है कि हम लोगों को यह होने की अपेक्षा बीमार न पड़ना ही अधिक अच्छा है। कीचड़ में बताएँ कि किस प्रकार नियम पूर्वक रहने से वे बीमार नहीं पड़ेंगे। छप कर फिर साफ होने के बदले उससे बच कर निकल जाना प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार मनुष्य शरीर के अंदर ही | बुद्धिमानी है । बीमार न होने के लिये शरीर व मन दोनों को शुद्ध वह प्राकृतिक जीवनी शक्ति है जो व्यक्ति को रोग मुक्त रखती है
रखना चाहिये। आप कह सकते हैं कि ऐसी अवस्था केवल योगी और रोग को ठीक कर सकती है। यह जीवनी शक्ति प्रत्येक प्राणी साधुओं की ही हो सकती है, सामान्य व्यक्ति के लिये यह संभव को जन्म लेते ही प्राप्त होती है, जो जीवन भर शरीर को संचालित'
| नहीं है, सामान्य मनुष्य के लिये खान पान में प्राय: गड़बड़ हो रखने में सहायता करती है। जीवनी शक्ति की कार्यक्षमता बढ़ाना
जाती है, कभी अनियमितता आती है, कभी आलस्य, कभी ही प्राकृतिक चिकित्सा है। मानव शरीर का निर्माण प्रकति की मिलावटी चीजें खाने में आ जाती हैं. कभी जागरण. कभी दौडधप. प्रयोग शाला में होता है वायु, जल, सूर्य, ताप, पृथ्वी आदि तत्व के
कभी झगड़ा, मानसिक तनाव आदि के प्रसंग आते रहते हैं, इससे अंश ही इसे बनाते हैं व जीवित रखते हैं, स्वस्थ रखते हैं। शरीर मनुष्य का अस्वस्थ या रोगी बना रहना अस्वाभाविक नहीं है। पर के उपचार व चिकित्सा के लिये भी इन्हीं मूल पांच तत्वों की
हम थोड़ी सी सावधानी से स्वस्थ रह सकते हैं। आवश्यकता होती है। प्रभु पर आस्था, जीवनी शक्ति व प्रकृति पर
बीच-बीच में मरम्मत करते रहने से मकान ठीक रहता है। विश्वास, धैर्य व सहनशीलता यह प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति के
साइकिल की देखभाल, हॉलिंग आदि से वह ठीक रहती है। मूल मंत्र है।
मशीन की बीच-बीच में ओव्हर हालिंग करने से मशीन प्राकृतिक चिकित्सा में शुद्ध वायु के उपयोग, शुद्ध जल के
ठीक चलती है। उपचार, गर्मी व ठंडक के प्रयोग, सूर्य किरणों के उपचार, योग
- इसी तरह शरीर व मन को बीच-बीच में शुद्ध करके ठीक उपचार, शारीरिक शोधन क्रियाएँ प्राकृतिक वनस्पतियाँ, भोजन. | रखा जा सकता है । इसके लिए प्रतिदिन कम से कम एक घंटे का शोधक व पाचक जड़ी बूटियों के उपयोग तथा उपवास, रसाहार, | समय निकालना चाहिये, सप्ताह में कम से कम दो घंटे देना विश्राम आदि के द्वारा लाभ प्राप्त किये जाते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा
| चाहिये। हर छह महीने में दो या तीन दिन देना चाहिये और साल के नियमों का पालन अनुशासन एवं ईमानदारी से करने की जिम्मेदारी
में एक सप्ताह का समय देना चाहिये। स्वयं रोगी पर होती है, इनका ठीक ठाक ज्ञान व अनुभव प्राप्त | दानक कायक्रम
दैनिक कार्यक्रम में इसका अंतर्भाव करेंकरके व्यक्ति स्वयं घरेलू रूप से भी अपना उपचार करने में समर्थ. शुद्ध व ताजी हवा में टहलना, प्राणयाम व सूर्यस्नान। हो जाता है और स्वयं अपना चिकित्सक बनने में सक्षम हो जाता खेलना, आसन, व्यायाम, तैरना आदि। है। प्राकृतिक जीवन के सरल नियमों का नियमित पालन करने पर - पेट साफ रहे इसके लिये भोजन में शदार वस्तुओं को डॉक्टर व चिकित्सालय व उपचार की कोई विशेष आवश्यकता शामिल करें।
और उनकी नहीं पड़ती। व्यक्ति स्वयमेव स्वस्थ और निरोग बना रह सकता स्वाध्याय, भजन, आत्मचिन्तन ।
मा फसलें, हरे भरे सम्बर 2003 जिनभाषित 19
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सम्बर 2003 जिनभाषित
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