Book Title: Jinabhashita 2001 06 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 7
________________ आपके पत्र : धन्यवाद, सुझाव शिरोधार्य "जिनभाषित' पत्रिका 'जिनभाषित' का मई 'जिनभाषित' का अप्रैल माह का अंक प्राप्त हुआ। चूँकि । का अप्रैल 2001 का अंक 2001 का अंक प्राप्त हुआ। 'जिनभाषित' पहली बार देखा, इसके पूर्व नहीं, अतः शायद यही प्रथम प्राप्त हुआ। धन्यवाद! हालाँकि अंक (प्रवेशाक) होगा। देखते ही और पढ़ने के बाद बहुत प्रसन्नता हुई। सज्जा नयनाभिराम है और यह पत्रिका से स्पष्ट नहीं हो बधाइयाँ। इस प्रथम अंक ने ही मन मोह लिया। ऐसा लगा बहुत बड़ी कमी सामग्री उच्च स्तरीय एवं पठपाया कि यह कौन से नम्बर की पूर्ति हुई है। सामग्री की गुणवत्ता से ही इसके चयन में विशेष सावधानी नीय। आध्यात्मिकता के विवेका अक है। सम्भवतः यह झलकती है। आपकी विद्वत्ता, लेखनी और प्रतिभाचातर्य का लाभ इस | कपूर्ण प्रचार-प्रसार एवं जैन प्रवेशाक ही होना चाहिए। यह | माध्यम से साहित्य और समाज को बहुत पहले ही प्राप्ति का प्रारंभ होना | सांस्कृतिक अस्मिता के संरक्षण जानकार बहुत प्रसन्नता हुई चाहिए था। पर 'देर आयद दुरुस्त आयद' कहावत चरितार्थ हो रही है। की चिन्ता पर आधारित आपका कि इस पत्रिका के सम्पादक | मेरी शभकामनाएँ हैं। यह दीर्घायुष्क हो 'तथा यथा नाम तथा' बना रहे।। साहसिक, सामयिक एवं मार्मिक तथा सभी सहयोगी सम्पादक | अन्य की तरह 'नाम बड़े और दर्शन छोटे न हों और किसी या किन्हीं सम्पादकीय 'श्रुतपञ्चमीः श्रुत बहुत ही विद्वान है। अतः यह | विवादों में कभी न उलझें। सभी को सदा-सर्वदा यह पत्रिका अपना नाम की निश्चय पूजा आवश्यक' अपेक्षा तो सदा रहेगी कि | सार्थक करने वाली लगती रहे। मंगल कामनाएँ। आँखे खोलने वाला है। मुझे पत्रिका श्रेष्ठतम रूप धारण डॉ. फुलचन्द्र जैन 'प्रेमी विश्वास है कि आपके कुशल एवं करे। अनेकान्तभवनम्, बी-23/45, पी-6, शारदा नगर, नवाबगंज मार्ग, वाराणसी-221010 सक्षम संपादकत्व में प्रकाशित जैसा कि आप स्वयं 'जिनभाषित' आधुनिक विज्ञान भी जानते हैं कि आज जैन पूर्व में 'जिनभाषित' का प्रवेशांक देखा था। इस बार मई-2001 और विवेक को ध्यान में रखते समाज में पत्र-पत्रिकाओं की | श्रुतपंचमी का अंक पढ़ने को मिला। दिगम्बर जैन समाज में 'जिनभाषित' | बाढ़ सी आ गई है। नित नयी | एक विशाल रिक्तता की पूर्ति करेगा। आज की पत्र-पत्रिकाएँ तत्त्वज्ञान, हुए जैन-संस्कृति और अध्यात्म पत्रिका उदय में आती है। ऐसी | प्रबल बौद्धिकता तथा वैचारिकता प्रदान करने की बजाय निषेधात्मक के प्रचार-प्रसार में अपनी प्रभावी स्थिति में पत्रिका का स्तर | आलोचना की शिकार हैं। समालोचना तो आवश्यक है किन्त सर्जनात्मक | भूमिका निभायेगा। | आलोचना (Creative criticism) का मार्ग अपनाना सरल कार्य नहीं, बनाये रखना एक बड़ी चुनौती | आलोचना (Creative criticism) का माग 3 श्रीमती विमला जैन, शायद इसीलिए लोग इसे अपना नहीं पाते। 'जिनभाषित' से मुझमें उम्मीद जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 30, है। आपने भी नयी पत्रिका निशात कालोनी, भोपाल-403 प्रारंभ की है। आपकी यह जागी है। इसका स्वाध्याय करने से लगा कि अवश्य ही यह पत्रिका न 'जिनभाषित' का अंक पत्रिका अन्य पत्रिकाओं से तो समस्या से मुँह फेरेगी और न ही मात्र किसी भी स्थिति की आलोचना पाया। आनन्दम्। उसे देख किस प्रकार हटकर होगी? इस करेगी। बल्कि एक तीसरी दृष्टि देगी जो हमें समाधान देगी। आदरणीय अप्रैल अंक न मिलने का विषाद पत्रिका का उद्देश्य क्या है? रतनलाल जी बैनाड़ा का तत्त्वप्रेम और उससे संपोषित शंका-समाधान उभरा। "जिनभाषित' परिवार आदि बातों का प्रवेशाक में समाज में तत्त्वज्ञान को जीवन्त रखेगा। आप इसी प्रकार स्तरीय आलेख को नमन। तो स्पष्टीकरण होना ही चाहिए, तथा अन्य स्तंभ प्रकाशित करते रहें। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ। प्रा. डॉ. विश्वास पाटील, साथ ही आने वाले अकों में कुमार अनेकान्त जैन 34, कृष्णाम्बरी, वैसा झलकना भी चाहिए। सरस्वती कालोनी, आखिर नयी पत्रिका प्रकाशित करने की 'जिनभाषित' सबसे कुछ अलग सा लगा।। शहादा (नंदुरबार)-425409 आवश्यकता क्यों हुई, इसका खुलासा होना आपके द्वारा प्रेषित और सुसम्पादित इसमें सब कुछ है और सभी के लिए है। मध्यप्रदेश से और भी जैन पत्रिकाएँ निकलती 'जिनभाषित' का मई 2001 का अंक मिला। चाहिए। आभारी हूँ। आपका 2/5 को गंजबासौदा में होंगी, पर आप अपनी पत्रिका के माध्यम से डॉ. अनिल कुमार जैन, बी-26, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल जैन समाज और बुद्धिजीवी वर्ग की जो सेवा श्री गीता-ज्ञान-आराधना-स्वतंत्र पारमार्थिक पम्प के सामने, साबरमती, अहमदाबाद कर रहे हैं वह प्रशंसनीय है। सभी लेख, न्यास की ओर से सार्वजनिक सम्मान किये 380005 कविता और संस्मरण पढ़ने योग्य हैं, जिनसे जाने का समाचार विशेष आह्लादकारी रहा। हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं। बधाई। अभिनन्दन, बधाई, हार्दिक शुभकामना कृपया "जिनभाषित' (2001 अप्रैल) का डॉ. विनोद कुमार तिवारी स्वीकार करें। अंक पहली बार मुझे प्राप्त हुआ और इसे रीडर व अध्यक्ष- इतिहास विभाग डॉ. शशिकान्त जैन एवं रमाकांत जैन देखने-पढ़ने का मौका मिला। यूँ तो पत्रिकाएँ यू.आर. कालेज, रोसड़ा-848210, (समस्तीपुर) बिहार सम्पादक- शोधादर्श, ज्योति निकुंज, और जर्नल्स निकलते ही रहते हैं, पर चारबाग, लखनऊ-226004 -जून 2001 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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