Book Title: Jinabhashita 2001 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 16
________________ विद्याधर से विद्यासागर : युग परिवर्तन . मुनि श्री समतासागर प्यासे को जितनी पानी की जरूरत थी, | लम्बी यात्रा की कहानी भी बड़ी संघर्षपूर्ण रही | जा रहा हूं- 'बस संघ को गुरुकुल बनाना' और उतनी ही जरूरत पानी को प्यासे की थी। है। अजमेर नगर में जब पारखी ज्ञानसागर ने | जब ये आँखें गुरुवर के विस्तार को देखती प्यासा पानी की तलाश में था तो पानी भी यह घोषणा कर दी कि विद्याधर की दीक्षा | हैं, तो सहज ही कृतज्ञता से झुक जाती हैं। प्यासे की प्रतीक्षा में था। आज की तिथि में होगी, तब समाचार सुनकर सारे नगर में उनका सारा संघ आज तपोवन के गुरुकुलों प्यासे को पानी और पानी को प्यासा मिला हलचल-सी पैदा हो गई। उस समय की की याद दिलाता है, वह आज सिर्फ गुरुकुल था। 80 वर्ष के वयोवृद्ध तपस्वी साधक | परिस्थितियों में किसी युवा व्यक्ति का | | के जनक ही नहीं है, हम सबके कुलगुरु भी ज्ञानसागर ने 21 वर्ष के युवा ब्रह्मचारी | एकदम मुनि बनना समाज का प्रबुद्ध वर्ग | हैं। आज उनका निर्मल चरित्र करुणामय वाणी विद्याधर के लिये मुनि दीक्षा प्रदान की। पचा नहीं पा रहा था। बात फैली और मुनि और 'सब जन हिताय सब जन सुखाय', कहने को तो आज की इस अषाढ़ सुदी | दीक्षा न हो, इसकी अगुवाई करते हुए समाज | चर्चा उन्हें उनके यश को सात समुंदर पार पंचमी (सन् 1968) की तिथि में ब्र. | के प्रमुख सरसेठ भागचंद सोनी ज्ञानसागर ले जा रही है। विद्याधर की मुनि दीक्षा सुना गया है कि कृष्ण हुई. पर सिर्फ यह दीक्षा ही की वंशी की तान सुनकर, नहीं थी, था युग को गोपियाँ उनके पीछे लग जाती परिवर्तित करने का स्वर्णिम थीं, पर वह सतयुग था और अवसर। जीर्ण-जर्जरित राग की वंशी थी, पर यह तो श्रमण परंपरा को जीवंत, कलयुग है और है विराग की जयवंत करने का इतिहास वंशी। जिसे सुनकर लाखों इसी अवसर की लेखनी जन पीछे लगे हुए हैं। उनका से रचा गया। अध्यात्मिक यही व्यक्तित्व उनको असानायक आचार्य कुंद-कुंद धारणता दिला रहा है, अपने की वह पावन गाथा ब्र. लक्ष्य की ओर निरंतर गतिविद्याधर के मानस पटल मान करना और धैर्य से काम पर तैर रही थी कि 'पडि लेना, यह आपकी विशेषता वज्जदु सामण्णं जदि इच्छदि दुःख परि- महाराज के पास पहुंचे और कहा कि महाराज है। आप कथनी में कम किन्तु करनी में, मोक्खं' यदि आप दुःख से छुटकारा चाहते आप ब्रह्मचारी को सीधे मुनि दीक्षा न दें, आचरण में विश्वास रखते हैं। हों तो श्रामण्य को अंगीकार करो। तन-मन को क्योंकि इनकी उम्र अभी कम है, मुनि बनना परम तपस्वी साधक, चितन व चेतना दिगंबर कर 28 मूल गुणों में अपनी तो ढलती उम्र का काम है। ज्ञानसागर ने बात के धनी इस धरती पर वरदान हैं, इन्हें देखकर जीवनचर्या को निरुद्ध करना ही श्रामण्य सुनी और पूरे विश्वास के साथ कहा- दीक्षा लगता है कि जैसे कभी महावीर को शिष्य (समता) है। तीर्थंकर महावीर और गौतम तो होगी, क्योंकि मुहूर्त निकल गया है अब इंद्रभूति, गौतम स्वामी और आचार्य धरसेन गणधर की परंपरा में अनेकानेक आचार्यगण यदि कम उम्र वाले को दीक्षा नहीं दें तो को शिष्य पुष्पदंत-भूतबलि मिले थे, ठीक हुए हैं। इसी सदी में विलुप्त होती निग्रंथ श्रमण आपकी उम्र ज्यादा है, आप तैयार हो जायें। वैसे ही गुरु आचार्य ज्ञानसागर को ब्र. परंपरा का प्रवाह आचार्य श्री शांतिसागर ने सोनी जी सुनकर अवाक् रह गये। तब विद्याधर मिले, जो निग्रंथ विद्यासागर बनकर किया। राजमार्ग खोला, जिनके शिष्य आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने सभी की शंकाओं का आज समूची जैन समाज के शिरोमणि वीरसागर, आचार्य शिव सागर, तत्पश्चात् समाधान करते हुए कहा कि मैं इन्हें ऐसे ही आचार्य बने हुए हैं। उनके आचार्यत्व की आचार्यश्री ज्ञानसागर और इन्हीं ज्ञानसागर दीक्षा नहीं दे रहा हूँ। मैंने ग्यारह माह की इनकी मंगलयात्रा में जो कुछ घट रहा है वह स्वयं ऋषिराज के प्रथम शिष्य आचार्य श्री साधना को परख लिया है। ये जिन शासन अतिशय चमत्कार बना हुआ है। आज अपने विद्यासागर आज सिर्फ जैनों के ही नहीं, की निर्मल श्रमण परंपरा के सही प्रभावनापथ- गुरुवर के 32वें दीक्षा दिवस की पावन बेला बल्कि जन-जन के संत हैं। उनका परिचय संवाहक रहेंगे। में हम अकिंचन अन्तेवासी कामना करते हैं खुद सूरज का प्रकाश है, जिसे देखने किसी गुरुवर आचार्य ज्ञानसागर ने अपनी कि इसी तरह गुरुवर अपने विशाल संघ के दूसरे प्रकाश की जरूरत नहीं पड़ती। समाधिबेला में अपने होनहार शिष्य को | साथ धर्म प्रभावना करते रहें। उनका तपोमय स्वयं अपना परिचय बनाने की इस आचार्य पद देकर इतना ही कहा था मैं तो | जीवन यशस्वी और चिरंजीवी रहे। LT लादला रह 14 जून 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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