Book Title: Jinabhashita 2001 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ उन्होंने एक सूझी-बूझी रणनीति के अंतर्गत | बाकायदा इन वादों पर विश्वास करते हुए, | विकास की सही कुंजी हाथ लग गई है। मंतव्य शासित वर्ग की ऊपरी सतह से कुछ | कभी एक दल को तो कभी दूसरे को सत्ता बना कि अधिक से अधिक उद्योग सार्वजनिक बुद्धिजीवियों को अपने वर्ग में खींच लिया के आसन तक पहुँचाती रहती है। क्षेत्र में लाये जावें। चाहे वो डबल रोटी बनाने और उनकी मदद से शेष शासितों पर अपनी इस तरह, अनगिनत बाधाओं को पार के कारखाने हों, बैंक हों, कोयला खदाने हों, पकड़ मजबूत कर ली। इसके लिये तब, कर जब कोई राजनीतिक दल अथवा दलों खोखले हो गए निजी कपड़े के मिल हों अथवा बाहुबल के अलावा, साम, दाम और भेद का का समूह सत्ता पर काबिज़ होता है तो उस | घाटे में चल रहे निजी इस्पात कारखाने। और सहारा भी लिया जाने लगा और इस तरह एक पर अनेक जिम्मेवारियाँ आ पड़ती हैं। यह सब प्रजातंत्र की मूल भावना के अनुरूप बार फिर शासकों ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर मसलन, मंत्रीपरिषद् में स्थान न पा सकने ही था। जो लोग सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों दी। वाले सदस्यों के आक्रोश को झेलना। दल के में कार्यरत हुए वे कम से कम एक चौथाई यों करने को तो श्रेष्ठता सिद्ध कर दी उन महत्त्वपूर्ण नेताओं को जो चुन कर नहीं सरकारी कर्मचारी तो कहलाए ही। सरकारी शासकों ने, लेकिन एक बात शासितों की भी आ पाते हैं, निगमों के अध्यक्ष के पदों पर कर्मचारी कहलाए जाने की ललक किसे नहीं समझ में आ गई कि शासक वर्ग में स्थापित करना अथवा स्थापित करने हेतु नए होती? सत्ता का सुख चटनी के माफिक भी सम्मिलित होने के लिए, उन्हें, वस्तुतः, निगमों का गठन करना, आदि-आदि! मिले तो मुँह का जायका तो बदल ही जाता अगले जन्म तक प्रतीक्षा करना आवश्यक कहते हैं कि हमारे देश में, प्रजातंत्र के नहीं था। जो कुछ जरूरी था, वह था, शासकों आरम्भिक काल में, इस तरह की बाध्यताएँ सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्योगों का की पकड़ ढीली कर देने के लिए जोरदार नहीं थीं। तब राजनीतिक दलों में कुछ हद तक महिमागान कई वर्षों तक चला। इस दौरान प्रयास! इस अद्भुत रहस्य के उजागर होते ही अनुशासन भी पाया जाता था। सत्तारूढ़ दल अधिक से अधिक लोगों को नौकरी मुहैय्या शासितों ने, सामूहिक रूप से, शासकों की सहसा ही विघटित नहीं हो जाया करते थे। कराने का उत्तरदायित्त्व इन उद्योगों ने बखूबी श्रेणी में घुस-बैठने के लिए, भागीरथ प्रयत्न आयाराम-गयाराम का प्रचलन प्रारंभ नहीं निभाया। तकनीक व मशीनों के आधुनिकीप्रारंभ कर दिए और फिर आविर्भाव हुआ एक हुआ था। छींक आते ही समर्थन वापिसी की करण में अरबों-खरबों रुपयों का निवेश किया क्रांति का जो अनवरत चलती हुई, काफी घोषणा भी तब नहीं हुआ करती थी। ऐसे और कहा गया कि बस अब उद्योगों की हालत उठा-पटक, झगड़ा-झंझट, मार-पीट और सौम्य, शांत और सर्वथा अनुकूल वातावरण सुधरने को ही है। लेकिन उद्योग का गणित अन्तराल के बाद प्रजातंत्र स्थापित करने में | में, जाहिर है कि, अन्य व्यस्तताओं के निराला ही होता है। इसमें उत्पादन करना होता सफल हुई। इस क्रांति ने, आदमी को संगठित बावजूद, सत्ताधारी लोग, जनता का जीवन है। उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखनी होती है। प्रयासों के चमत्कारिक परिणामों से अवगत भी सुखमय बनाने के विषय में चिंतन करने उत्पादन लागत कम रखनी होती है। उत्पाद कराया, संगठन के महत्त्व से परिचित | हेतु थोड़ा समय निकाल ही लेते थे तथा देश | की बिक्री लागत से अधिक मूल्य पर करनी कराया, सदा एक-जुट होकर ही काम करने के विकास की दिशा में, हल्के से ही सही, होती है। ऐसे तमाम काम करना होते हैं तब हेतु संकल्पित किया। एक-दो कदम बढ़ा ही लेते थे। ऐसे ही कहीं जाकर बेलेन्स-शीट धनात्मक बन पाती यहाँ प्रजातंत्र की प्रशस्ति में दो शब्द सद्प्रयत्नों के फलस्वरूप स्थापित हुए देश है। उद्योग चल पाता है। कह देना उपयुक्त होगा। प्रजातंत्र, शासन की | के सार्वजनिक क्षेत्र में अनेक उद्योग, जिनमें पर जहाँ काम करने की बात उठती है वह पद्धति है जिसमें कोई शासित नहीं होता। विदेशी सहायता से, जनता के कर्ज से तथा वहाँ मानव स्वभाव के मूलगुण का आड़े अर्थात् सभी शासक होते हैं और चूँकि | अन्य स्रोतों से प्राप्त राशि से किया गया भारी आना स्वाभाविक ही होता है। दरअसल जबसे प्रजातंत्र में केवल शासक ही होते हैं इसलिये | निवेश। साथ ही बने बहुतेरे मंत्रालय, आदमी ने, आदमी से, आदमी की तरह लोग आपस में एक-दूसरे पर ही शासन करने विभाग, अनुभाग, संचालनालय, नियंत्रणा- व्यवहार करना आरम्भ किया तब से आदमी हेतु उतारू रहते हैं। इसके लिये वो बाकायदा लय आदि, जिनका काम था इन उद्योगों पर से काम करवा लेना और भी चुनौती पूर्ण कार्य संगठन बनाते हैं जिसे राजनीतिक दल कहा निगरानी रखना, उन पर नियंत्रण रखना, उन्हें हो गया। विदेशों में इसे बहुत पहले ही भाँप जाता है। ये दल अनेक होते हैं तथा राष्ट्रीय, | जनता के प्रति उत्तरदायी बनाए रखना। लिया गया था। अतः वहाँ प्रबंधकों को प्रदेशीय, क्षेत्रीय या नगरीय, कुछ भी हो | सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए | मनोविज्ञान तथा मानव-व्यवहारविज्ञान जैसे सकते हैं। इन सभी राजनीतिक दलों का एक | उद्योगों का सभी ने स्वागत किया। जिन विषय पढ़ाए जाने लगे तथा मानव-प्रबंधन सूत्रीय कार्यक्रम होता है- येन केन प्रकारेण | विदेशियों ने कर्ज दिया, मशीनें दी, तकनीक में प्रशिक्षित किया जाने लगा। हालाँकि, सत्ता-सुख प्राप्त करना, जिसके लिए उन्हें | दी, जिन अफसरों की देख-रेख में उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के हमारे प्रबंधकों ने भी इनसे जनता का बहुमत प्राप्त करना आवश्यक | स्थापित हुए, जिन ठेकेदारों ने निर्माण कार्य सीख ली, पर वे बिना किसी दबाव के अथवा होता है। इस हेतु सभी दल, जनता को | किया, जिन लोगों को इन उद्योगों में नौकरी उद्योग पर बिना कोई आर्थिक बोझ डाले. प्रभावित कर रखने के सभी संभव हथकंडे | मिली तथा जिन कर्मचारी संघों को विस्तार | कर्मचारियों को काम करने हेतु, प्रेरित किए अपनाते हैं। लुभावने वादे करते हैं। जाति की, | का अवसर मिला, वे सभी अत्यंत प्रसन्न | रहने की कला में पारंगत नहीं हो सके। इसके धर्म की, क्षेत्र की, कर्म की दुहाई देते हैं। सभी | हुए। कुल मिलाकर यह एक ऐसा निर्णय था | फलस्वरूप, कालांतर में सार्वजनिक क्षेत्र के के हिस्से में सुख की बराबर मात्रा उपलब्ध जिसने सरकार और विपक्ष दोनों को समान | बहुतेरे उद्योग तो निरंतर घाटे में चलते हुए करा देने का संकल्प लेते हैं और जनता, | रूप से आह्लादित किया। लगा कि देश के | अपने मूल-निवेश को बचा सकने में भी जून 2001 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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