Book Title: Jinabhashita 2001 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ मेरी उपलब्धि सक्षम नहीं रहे। शेष ने, यदा-कदा, लाभ | हैं। जैसे कि एक सुई खरीदनी है तो चार अर्जित किया जरूर, पर आधुनिकीकरण में कर्मचारी बाजार जाते हैं और सुई ठेले पर पुनर्निवेश के कारण इनकी हालत भी लाद कर ले आते हैं। कहा भी है कि साझे संतोषजनक न रह सकी। ऐसे में, सरकार ने, की सुई ठेले पर लद कर जाती है। पर यदि सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ चुनिन्दा उद्योगों में, उद्योग का प्रबंध निजी हाथों में गया तो फिर निजी निवेशकों को सहभागी बनने का ऐसा थोड़े ही हो पायेगा। वे तो सुई लेने एक आमंत्रण देते हुए, विनिवेश की एक महती आदमी भेजेंगे और कहेंगे कि जेब में रख कर योजना की घोषणा कर दी। लेते आना। साथ ही दो चीजें और ले आना। जाहिर है कि ऐसा कर सरकार ने तो इसको एक कर्मचारी तो यही मानेगा कि मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया। देश चार आदमियों का काम एक से करवाया भर में मजदूर संगठनों ने आसमान सिर पर जावेगा। उस पर बोझ बढ़ेगा। उसका शोषण उठा लिया। धरना, हड़ताल, घेराव, आत्म किया जाएगा।' दाह की धमकी दी। विपक्षी दलों ने सरकार तो उसे ऐसा क्यों नहीं मानना की इस नीति को घोर जनविरोधी निरूपित | चाहिए?' दूसरे विशेषज्ञ ने प्रति-प्रश्न करते करते हुए, खुलकर आलोचना की, निंदा की। हुए कहा,- 'आखिर उसे सरकारी संरक्षण की लाखों करोड़ों रुपयों के बहुमूल्य उद्योगों को सुखद छत्र-छाया से वंचित तो होना ही होगा। कोड़ी के भाव बेच देने की साजिश कहा। और रही बात काम की सो इसे यदि मानवउद्योगों के कर्मचारियों की रोजी-रोटी छीन कर स्वभाव के मूलगुण की पृष्ठभूमि में देखें तो उन्हें दर-दर का भिखारी बना देने की कोशिश सरकार और सरकारी विभागों के सभी कहा। विदेशी कंपनियों को देश में बुलाकर कर्मचारी एक ही नाव में सवार मिलेंगे। तब फिर से गुलाम बना लिए जाने का अवसर इनसे काम लेने के लिए क्या शासन को पुनः देने की बात कही। साथ ही, जैसी कि प्रथा पुरानी पद्धति अपनाना होगी? फिर प्रजातंत्र है, सत्तारूढ़ दल पर हजारों-करोड़ की राशि का क्या अर्थ होगा? मानव-अधिकारों का रिश्वत में लेने का आरोप लगाया तथा सरकार क्या मूल्य होगा?' से इस्तीफे की माँग की। 'अब काम न करने के लिये प्रजातंत्र यह प्रतिक्रिया आशा के बिल्कुल | और मानव अधिकारों की दुहाई तो बेमतलब अनुरूप थी। अतः सरकार ने इसके जवाब होगी।' पहले विशेषज्ञ ने उत्तर दिया, - में कुछ भी कहना आवश्यक नहीं समझा। 'अर्थशास्त्र जो कहेगा सो ठीक होगा। यदि लेकिन कर्मचारी संगठनों ने सार्वजनिक क्षेत्र निजीकरण से ही अर्थव्यवस्था का सुधार होना के उद्योगों का प्रबंध निजी हाथों में सौंपने का | है तो वही करना होगा। खूब करना होगा। उन जबरदस्त विरोध करते हुए निरंतर घेराव वा | सभी कामों का करना होगा जो किए जा सकते प्रदर्शन कर विषय को गर्माये रखा। मीडिया | ने भी समुचित सहयोग दिया। इंटरव्यू लिए पर इसके लिये पहले कुछ उद्योग ही और प्रसारित किए। विशेषज्ञों का पेनल बैठा | क्यों चुने गए?' कर चर्चा करवायी और इस सारी प्रक्रिया में 'इसे यों समझ लें कि जब किसी जो बात उजागर हुई वो ये कि देश की मशीन को ओवर-हालिंग के लिए खोला जाता अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने हेतु, पिछले है तो पहले एक पुर्जा खोलते हैं, फिर दूसरा दस वर्षों में, हर सरकार, कमोवेश यही कदम और उसके बाद तीसरा। पर पुर्जे एक एक कर उठाना चाहती थी और ये भी कि इस परिवर्तन सभी अलग करने होते हैं। तभी ठीक से में कर्मचारियों का हित सुरक्षित रखना, खुद ओवर-हालिंग हो पाती है। दरअसल हमारे सरकार के हित में था। देश की अर्थव्यवस्था की ओवर-हालिंग बहुत तो फिर कर्मचारियों के भय का कारण | जरूरी है। बहुत ही जरूरी।' क्या है?' चर्चा में प्रश्न उठा। 7/56-ए, मोतीलाल नेहरु 'निजीकरण का भूत' एक विशेषज्ञ ने नगर (पश्चिम), भिलाई (दुर्ग) उत्तर दिया, 'दरअसल होता यों है कि (छ.ग.) 490020 सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में जो काम होते हैं, वे सामूहिक जिम्मेवारी के आधार पर होते 24 जून 2001 जिनभाषित मेरी उपलब्धि है तरुण जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी का सान्निध्य। एक ऐसे आचार्य से साक्षात्कार जो युवा है, जिनके मुख मंडल की मुस्कराहट और प्रवचन करने का ढंग सहसा चुम्बक सा खींच लेता है। प्रायः वे अपनी सरल, मृदु व सहजवाणी से शंकाओं का समाधान करते हैं। वस्तुतः तर्क से अतर्क में ले जाने का उनका दृष्टिकोण उत्कृष्ट है। तर्क को वे व्यर्थ का अवकाश नहीं देते. मात्र उतना हाशिया देते हैं, जहाँ तक कि वह तत्त्वज्ञान में उपकारक होता है, उसके लिए उनका आग्रह नहीं होता। शुद्ध, विशाल, व्यापक दृष्टि सम्पन्न ये आध्यात्मिक साधु बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। इनके दर्शन से वस्तुतः मैं बहुत ही कृतकृत्य हुआ हूँ। आचार्य विद्यासागर विलक्षण काव्यकार होने के साथ विलक्षण शब्दकार भी हैं। उनकी शब्दशास्त्रीय प्रतिभा निरुक्तिकार 'यास्क' की परम्परा का स्मरण दिलाती है। वर्ण-विपर्यय और सभंग-अभंग श्लेष द्वारा शब्दों की चमत्कार पूर्ण अर्थ योजना में आचार्य श्री की द्वितीयता नहीं। संस्कृत के ज्ञानोत्कर्ष की दृष्टि से उनकी मेधा एवं धारणाशक्ति विस्मयाभिभूत करनेवाली है। साहित्य और दर्शन का उनमें समाहार हुआ है। उनकी भक्ति और नीतिसमन्वित काव्यप्रतिभा ने संस्कृत साहित्य को मानो शंकराचार्य की द्वितीयता से विमडित किया है। उनकी काव्यकृतियाँ कोश का अनुकरण नहीं करतीं, वरन कोशकारों के लिए नई शब्दावली प्रस्तुत करती हैं। सचमुच वे अतुल और विस्मयकारी शब्द भंडार के अधिस्वामी है। __ डॉ. रंजनसूरि देव, पटना (बिहार) आचार्य श्री विद्यासागर, दिगम्बर जैन परम्परा के ख्यातिलब्ध आचार्य हैं। अल्पवय में ही आप में जो सारस्वत वैभव प्रकट हुआ है, वह आपकी उग्र तपस्या का परिणाम है। आपके व्यक्तित्व में तपस्या और काव्य का ऐसा अद्भुत समन्वय है कि आपकी तपस्या भी काव्यात्मक हो उठी है और काव्य भी तपस्यात्मका डॉ. आशा मलैया या | हैं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36