Book Title: Jinabhashita 2001 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 29
________________ बालवार्ता रात्रिभोजन-त्यागी शृगाल प्रस्तुति : श्रीमती चमेलीदेवी जैन बात बहुत पुरानी है। एक नगर में एक सुपात्र जानकर मुनि ने करुणापूर्वक अपना के पास गया और अपना मुँह पानी के पास दिगम्बर मुनि आये थे। वे नगर के बाहर एक मौन भंग किया और शृगाल को सम्बोधित | ले गया कि अंधेरा दिखाई दिया। अंधेरा बगीचे में रुके हुए थे। सागरसेन उनका नाम कर कहा - देखकर उसे रात होने का प्रतिभास हुआ।उसे था। वे महान् तपस्वी थे। उनके तप का हे शृगाल! इन्द्रियों के विषय बुरे हैं। वे | मुनिराज के निकट लिए अपने व्रत की याद महात्म्य सुनकर सभी नगरवासी उनके दर्शन भोगते समय ही अच्छे प्रतीत होते हैं। तू | आई। फलस्वरूप वह बिना पानी पिये ही करने के लिये लालायित थे। राजा के पास रसना के आधीन होकर इधर-उधर क्यों भटक | बावड़ी के बाहर आ गया। समाचार पहुँचने पर वह भी उनके दर्शन करने रहा है? अरे! यह रसना यहीं नहीं भटका रही बाहर आने पर उसे धूप दिखाई दी। को उत्कण्ठित हुआ। उसने नगर में ढिढोरा है, संसार में अनेक जगह भटकावेगी। मछली उसे लगा कि दिन शेष है। बढ़ती हुई प्यास पिटवाया। सभी नगरवासी स्त्री-पुरुष एकत्रित इस रसना के चक्कर में आकर अपने प्राण से आकुलित होकर वह झटपट फिर बावडी हो गये। राजा सभी को साथ लेकर गाजे-बाजे संकट में डाल देती है और तड़फ-तड़फकर के भीतर गया। जैसे ही वह बावड़ी में पानी और धूम-धाम से मुनि के दर्शन करने गया। मरती है। के पास पहुँचा कि फिर अंधेरा दिखाई दिया दर्शन कर सभी प्रसन्न हुए। मुनि से सभी ने हे शृगाल! क्या नहीं सुना? जो जैसा और नियम का आमरणान्त निर्वाह करने की धर्मोपदेश सुना और अपनी शक्ति के करता है उसका फल वह वैसा ही पाता है। दृष्टि से वह पुनः बिना पानी पिये बावड़ी से अनुसार व्रत धारण किये। अन्त में वन्दना कर काँटे देने वाले बबूल से क्या कभी आम का बहर आ गया। बाहर आने पर फिर से उसे सभी वहाँ से लौट आये। फल मिला है? तूने पूर्वजन्म में जो पाप किये दिन दिखाई दिया। वह पानी पीने बावड़ी में नगर के बाहर एक शृगाल रहता था। थे उन्हीं का परिणाम है जो कि तुम शृगाल गया और फिर बिना पानी पिये ही वापिस उसने ऐसी धूम-धाम, गाजे-बाजे और ऐसा हुए हो। शृगाल मुनिराज को एक टक निहारता आया। यह करते-करते उसे रात हो गई और समूह किसी के मरने पर उसे श्मसान ले जाते रहा। उसने मुनि को ज्ञानी समझकर मन ही वह पानी नहीं पी सका। परिणामस्वरूप प्यास हुए ही देखा था। अतः उसे आज परम हर्ष मन प्रणाम किया। सोचने लगा- मुनि का इसमें से उसके प्राण निकल गये। आमरणान्त था। वह ऐसा खुश था जैसे उसे चिन्तामणि क्या स्वार्थ है जो कि वे ऐसा कह रहे हैं। । भावपूर्वक व्रत के पालन करने से मरकर वह रत्न मिल गया हो। वह खुशी से फूला नहीं हितकारी बात सभी को अच्छी लगती है। उसे मगधदेश में सुप्रतिष्ठ नगर के सेठ सागरदत्त समा रहा था। उसका अनुमान था कि आज भी मुनिराज का उपदेश हितकर प्रतीत हुआ। और सेठानी धनमित्रा का प्रीतिंकर नामक पुत्र नगर का कोई बड़ा आदमी मरा है। नगर के आगे मुनिराज ने कहा- शृगाल! सब दुष्कर्म हुआ। व्रत के प्रभाव से मुक्त हो गया वह लोग उसे ही नगर के बाहर छोड़ने आये थे। छोड़कर व्रत धारण करो। इसी में जीवन का | तिर्यंच योनि से। निश्चित ही वे मृतक को नगर के बाहर छोड़ कल्याण है। रात्रि होने पर भोजन करना छोड़ महापुराण कथाकुञ्ज गये होंगे। दो। जो कुछ भी खाना-पीना हो दिन ही में (डॉ. कस्तूरचन्द्र 'सुमन') से साभार शृगाल खुशी-खुशी छिपता-छिपता खा-पी लेने में सार है। उस ओर दौड़ा जिस ओर से उसे बाजों की शृगाल चुपचाप सुनता रहा। उसे आवाज आई। उसने यहाँ आकर सारा प्रदेश मनिराज के हितकारी वचन अच्छे लगे। वह छान मारा। न तो कोई मृतक उसे भूमि के शिखर का स्पर्श कैसे? सोचने लगा- मुनिराज ठीक ही तो कह रहे भीतर गड़ा हुआ मिला और न कोई श्मसान हैं। उसने दुष्प्रवृत्तियों से मुख मोड़ लिया और • आचार्य श्री विद्यासागर में जलते हुए दिखा। वह विचारों में खो गया। जोड़ लिया अपने को नियमों से। निश्चय कर पर्वत की तलहटी से भी सोचने लगा- बाजे क्यों बजाये गये? और | लिया उसने रात से नहीं खाने-पीने का। इतना बड़ा समूह इस ओर क्यों आया था? अच्छे कार्य में विघ्न आते ही हैं। विघ्नों हम देखते हैं कि उसने पुनः खोज की किन्तु उसे कोई मृतक | में स्थिर बने रहने में ही सफलता प्राप्त होती उत्तुंग शिखर का दर्शन होता है नहीं मिला। है। शृगाल ने एक दिन रूखा-सूखा भोजन परन्तु बगीचे में बैठे सागरसेन मुनि राज | किया। रूखा-सूखा खाने से उसे पानी पीने मौनपूर्वक शृगाल को इधर-उधर भटकते देख की इच्छा हुई। वह एक बावड़ी में पानी पीने चरणों के प्रयोग के बिना रहे थे। वे दयार्द्र हो गये। दया से उनका हृदय गया। बावड़ी गहरी थी। सूर्य की किरणें बावड़ी शिखर का स्पर्श भर गया। वे अवधिज्ञानी थे। उन्होंने अवधि- के पानी तक नहीं पहुंच पा रही थीं बावड़ी सम्भव नहीं ज्ञान से जान लिया था कि शृगाल भव्य है। में दिन रहते हुए भी रात्रि जैसा अंधेरा छाया यह व्रत धारण कर मोक्ष प्राप्त करेगा। उसे | था। शृगाल जैसे ही बावड़ी में पानी पीने पानी 'मूकमाटी' जून 2001 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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