Book Title: Jinabhashita 2001 06
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 35
________________ समता का संगीत आचार्य श्री विद्यासागर सुख के बिन्दु से ऊब गया था यह दुःख के सिन्ध में डब गया था यह। कभी हार से सम्मान हुआ इसका कभी हार से अपमान हुआ इसका। कहीं कछ मिलने का लोभ मिला इसे कहीं कुछ मिटने का क्षोभ मिला इसे। कहीं सगा मिला, कहीं दगा भटकता रहा अभागा यह। परन्तु आज सब वैषम्य मिट गये हैं जब से मिला यह मेरा संगी संगीत। 'मूकमाटी' 'जिनभाषित' के सम्बन्ध में तथ्यविषयक घोषणा प्रकाशन-स्थान : 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा- 282002, उ.प्र. प्रकाशन-अवधि : मासिक मुद्रक-प्रकाशक : रतनलाल बैनाड़ा राष्ट्रीयता : भारतीय पता : 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) सम्पादक : प्रो. रतनचन्द्र जैन पता : 137, आराधना नगर, भोपाल-462003 म.प्र. स्वामित्व : सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) मैं, रतनलाल बैनाड़ा, एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है। रतनलाल बैनाड़ा प्रकाशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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