Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 7
________________ जीव शात हो बैठा था। अर्थात् जहाँ संसार दशाका भले प्रकारअनु. भव होता था, ऐसे मिनमंदिर तोरन पताकादि कर शोभायमान थे। ऐसी अनेक शोभाकर संयुक्त वह नगरी थी, जहॉ भिक्षुक, भयवान् व दरिद्री पुरुष तो दृष्टिगोचर ही नहीं होते थे। यहॉका महामंडलेश्वर राजनीतिनिपुण, न्यायी, यशस्वी और महाबली राजा अणिक राज्य करता था। जिसकी बहुतसे मुकुटबंध राजा आज्ञा मानते थे। एक समय जब कि राजा श्रेणिक रानसभामें बैठे थे कि उस समय वनमालीने आकर छहों ऋतुके फल फूल राजाको भेंट करके विनय की-भो स्वामिन् । विपुलाचल पर्वतपर अंतिम तीर्थकर श्रीमहावीर जिनका समवसरण आया है, जिसके प्रभावसे ये सब ऋतुओंके फल फूल फल फूल गये है। वापी, कुवे, तालाव आदि सब भर गये हैं। राजा यह समाचार सुन अत्यानन्दित हुआ और तुरंत हो सिंहासनसे उतर सात पैड़ चलकर प्रभुकी परोक्ष वंदना को। पश्चात् मुकुटको छोड़कर शेष सब वस्त्राभूषण नो उस समय उनके शरीरपर थे, उतारकर वनमालीको दे दिये और नगरीमें घोषणा कराई कि वीर प्रभु जिनका समवसरण विपुलाचल पर्वतपर आया है, इसलिये सर्व नगरके नर-नारी वंदनाको चलो । घोषणाको सुनकर पुरजन बहुत हर्षित हो स्वशक्तिप्रमाण अष्ट द्रव्य ले लेकर वंदनाको चले। उस समय राजा प्रजा सहित जाता हुआ ऐसा मालूम होता था मानों इन्द्र ही सेनासहित दर्शनको आया हो। जब वे समवसरणके , निकट पहुंचे, तब रथसे उतर पॉव प्यादे चलने लगे। सो प्रथम ही

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