Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 40
________________ ( ३९ ) वे स्वामीसे कहने लगे - "पुत्र ! ऐसे बचन क्यों कह रहे हो ? जैसे अंबेको लकड़ीका सहारा होता है, वैसे ही हम लोगों को आपका सहारा है । यह बाल्य अवस्था है। अभी आपका शरीर तप करने योग्य नहीं है। कुछ दिन भोग करके पश्चात् योग लीजिये । यद्यपि स्वजन और पुरजन जो लोग इस खबर को सुनकर आये थे, सो सभी नाना प्रकारसे स्वामीको समझाने और विषयोंमें फॅसांनकी चेष्टा करते थे तथापि कुमारके चित्तपर कोई कुछ भी असर नही डाल सकता था । ठीक है " अनुभव के अभ्याससे, रच्यो जो आतम रंग । कहु ताको त्रैलोकमें, कौन कर सके भंग ! " जब अर्हदास सेठने देखा कि स्वामी किसी प्रकार भी नहीं मानते, तब उन्होंने उन चारों सेठोंको, जो अपनी कन्यायें स्वामी को व्याहना चाहते थे, ये समाचार भेजे। उन लोगोंने ये समाचार सुनकर और अत्यन्त व्याकुल होकर अपनी २ पुत्रियोको बुलाकर कहा - 'ए पुत्रियो ! जंबूकुमार तो विरक्त हुए है और आज ही दीक्षा लेना चाहते हैं इसलिये अब जो हुआ सो हुआ, हम लोग तुम्हारे लिये और कोई उत्तम रूपदान् वर सोघ लावेंगे ।" तब वे कम्यायें अपने पिताओं के इस कुत्सित वाक्यको सुनकर बोलीं- पिता ! इस भवमें हमरे पती, होगे जब्रूस्वामि । 66 और सकल नर आप राम, मानो वच अभिराम । " इसलिये अब आप पुनः ये वचन मुॅहसे न बोले । बड़े पुरुषोंकी कुलीन कन्यायें इन शब्दोंको सुन नहीं सकती है । प्राण जाने से भी अत्यन्त दुःखदायक, घृणित, लज्जाननक ये अप

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