Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 47
________________ . ( ४६ ) काले दो रंग चूहे काट रहे थे । झाड़पर मधुमक्खियोंका छाता लग रहा था सो हाथीने आकर झाड़को हलाया और मक्खियाँ उड़ कर उस टोह के शरीर से चिपट गई। इतने में शहदकी एक बूँद उस बटोहोके मुँहमें पड़ गई, वह उसे बड़े प्रेमसे सब दुःख भूलकर चाटने लगा। इतनेमें एक विद्याधर आया और समझाकर कहने लगा- हे बन्धु ! यदि तू कई तो मैं तुझे इस दुःखकूप से निकाल लूँ | तब बटोही बोला-'मित्र! बात तो भली है, परन्तु एक बूँद और आ जाने दो फिर मैं तुम्हारे साथ चलूँगा' ऐसा कह वह फिर ऊपरको बूँदकी ओर देखने लगा । यहाँ विद्याधर भी अपने मार्ग चला गया । वहाँ चूहोंने जड़ काट डाली, इससे वह बटोही बात की बात में अनगरके मुखमें जा पड़ा। इसलिये ऐ सुन्दरी । । पंथी इन्द्रिय विषय वश, अजगर सुख गयो सोय । मैं जु पहूँ भवकूपमें, तो काढ़ेगा कोय || भव वन, पंथी जीव, गज; काल, सर्प गति जान । कुआ गोत्र, माखी स्वजन, आयू जड़ पहिचान ॥ निगोद अजगर है महा, घोर दुःखकी खान । विषय स्वाद मधु बूँद ज्यों, सेवत जीव अज्ञान || सम्यक् रत्नत्रय सहित, संवर करें निदान | विनयश्री ! इम जानियो, सोई पुरुष प्रधान || " यह कथा सुन विनयश्री निरुत्तर हुई तव चौथी स्त्री रूपश्री कहने लगी- 'स्वामिन् ! आपने हमारी तीनों बहिनोंको ठग लिया । अब मुझे टगो तब आपकी चतुराई है। इस प्रकार गर्वयुक्त हो कहने लगी-'हे नाथ! सुनो एक वार जब बहुत पानी वरसा तो बिल वगेर: में

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