Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 55
________________ (98) "सुनो प्रभो ! गुण खान, कीनो बहुत मुलाहजो । अब हम तजें सुप्राण, जो आगेको चाल हो ॥" यह सुनकर और उन स्त्रियोंकी यह दशा देखकर स्वामीने पालकी ठहरा दी और दयालु चित्त हो अमृत वचनों से समझाने लगे - " ए सुन्दरियो ! विचारो ! यह जगत् क्या है और किसके पिता पुत्र है ? किसकी माता और किसकी स्त्री ? यह तो सब अनादि कर्मी संतति है । अनेक जन्मों में अनेकानेक सम्बन्ध हुए हैं, जिनका कुछ भी पारावार नहीं है । मैंने मोहवश इस संसार में अनादिकाल से अनेकवार जन्म मरण किया परन्तु किसीमें बचानेकी सामर्थ्य नहीं हुई । अब यह अच्छा समय है कि जिसमें इन चार गतिकी बेड़ी छूट सकती है। अब विघ्न मत करो । मोहवश अपना और हमारा बिगाड़ मत करो चलो तुम भी गुरुके पास चलकर इस पराधीन पर्यायसे छूटकर स्वाधीन सुख पाने का उपाय पूछो " । + यह सुनकर माता और चारों स्त्रियोंका चित्त फिर गया और पालकी छोड़ दी। वे सब चलते चलते जिस वनमें सुधर्मस्वामो तप कर रहे थे पहुंचे, और बिनय सहित साष्टांग नमस्कार कर बैठे । मुनिनाथने ' धर्मवृद्धि ' दी । तब स्वामीने हाथ जोड़कर प्रार्थना की- " हे नाथ ! इस अगम अथाह अतट ससारसे पार उतारिये । तब गुरु बोले - " हे कुमार ! अब तुम भेषको छोड़ दो ।

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