Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 49
________________ ( ४८ ) इस प्रकार स्वामीको अपनी चार स्त्रियोंको निरुत्तर करते २० सवेरा होगया । सब लोग उठ कर अपने काममें लगने लगे । स्वामी की माताको रात में निद्रा नहीं आई । वे चिंतातुर बैठी थीं, इतने में दरवाजेके निकट एक चोरको खड़ा देखा। माताने पूछा"ऐ भाई ! तू कौन है और किस हेतु यहां आया है ?" तब चोर बोला - " हे माता ! मै चोर हूं और आपके घर से बहुत द्रव्य कई चार चुरा ले गया हूं। मेरा नाम विद्युतचर है। मैं राजपुत्र हू परन्तु बाल्यावस्थासे मुझमें चोरीकी कुटेव पड़ गई है इसलिये देश छोड़कर यहां आया हूं ।" तब माता अपना खजाना दिखाकर वेली - ' हे भाई! ये सब धन सम्पत्ति रत्नराशि है, इसमेंसे जितना चाहे ले जा ।" चोर ने कहा - ' ए माता ! तू क्षणेक घरमें जाती है और क्षणेक आंगन में आती है तथा इसतरह बिलकुल निष्टह होकर द्रव्य के जानेकी आज्ञा देती है सो इसका क्या कारण है ?" तब माताने कहा - "भाई ! अभी प्रातःकाल मेरा पुत्र दीक्षा ले जायगा और उसकी ये चारों स्त्रियां जो समझा रही हैं अभी कल ही व्याह कर आई है । पुत्र आज दीक्षा लेगा तब इस द्रव्यको कौन भोगेगा ? सो तू भला आया । अब इसे तू ले जा, यह भाररूप ही है । मैं इसी चिंतामें बाहर जाती हूं और भीतर आती हू, कहीं भी चैन नहीं पड़ता है ।" 1 चोर बोला- "माता ! मुझे अब धनकी इच्छा नहीं है, आप अपने पुत्रसे मेरी भेंट करा दो। मैं उन्हें वनमें जानेसे

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