Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 27
________________ (२६) संसारको त्यागकर सच्चे स्वाधीन अतीन्द्रिय सुखोंका अनुभव कर रहे है। यथार्थमें वे ही धन्य हैं ! नौकर भी इस प्रकार पराधीनताकी निंदा करते हुए कुमारको ले चले। । जब मृत्यु क्षेत्रमें ले जाकर उन्होंने स्वामीके ऊपर शस्त्र-प्रहार किया, तब स्वामीने वज्रदण्डसे, जो इनके करमें था अपना बचाव कर, उसीसे फिर उन्हें लौटकर मारा । दश वीस सुभट तो यहॉ वहाँ गदको तरह लुढक गये। फिर तो क्या था ! स्वामीने मानों सिहरूप ही धारण कर लिया हो, इस प्रकार लड़ने लगे। इस कारण संपूर्ण सैना स्वामीके ऊपर एकदम टूट पड़ी, सो कितने ही तो कुमारके मुष्टिप्रहारसे ही प्राणत्याग कर गये, कितनेक घायल हुए, कितने ही भागकर पीछे रत्नचूलके पास गये और कहने लगे कि यह रही आपकी नौकरी, जीते बचेंगे तो बहुत कमा खॉयगे, इस प्रकार कोई कुछ और कोई कुछ कहते थे। तात्पर्य कि बातकी बातमें स्वामी ने आठ हमार सैनाको तितर बितर कर दिया। तब राजा रत्नचूल, स्वामीका अतुल पराक्रम और अपनी सेनाको दुर्दशा देखकर स्वयं स्वामीके सन्मुख आया। उधरसे गगनगति विद्याधर जो स्वामीको ले आया था, आ गया और अपना विमान स्वामीको दे दिया तथा और कितने ही दिव्य शस्त्र लाकर दिये। दोनों में धमसान युद्ध होने लगा। एक तरफ तो स्वामी अकेले और दूसरी तरफ सव सैन्यसहित राजा रत्नचूल लड़ने लगे। यह कौतुक राजा मृगांकके दूतोंने, जो गढ़के उपरसे देख रहे थे जाकर सब हाल मृगांकसे कहा

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