Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 34
________________ ( ३३ ) मोके आगमन के समाचार कह सुनाये। राजा यह सुनकर अतिप्रसन्न हुए और तुरंत ही ये समाचार और वह भेटकी सामग्री श्रेष्ठी अर्हदास के पास भेा । सेठ और सेठानी अति ही प्रसन्न हो उन आगन्तुक विद्याधरोंसे पूछने लगे कि - 'आप लोगोंने हमको कैसे पहिचान लिया ?" " तव नभचर कर जोर कर कही सुनो हम व.त । विश्व-विभूषण तुम रानय; जगत भये विख्यात ||" ठोक ही है - सूर्यके ऊपर चाहे हजारों ही वादल क्यों न आ जायँ तथापि उसे लोप नहीं कर सकते है । हे मातापितामी । आपके पुत्र, कुल नहीं, देश नहीं, परंतु विश्वके भूषण हैं, फिर मला, आपको कौन न पहचानेगा ! जिस दिशा से सूर्यका उदय होता है, उसे ऐसा कौन अजान होगा जो न जाने ? अर्थात् सब ही जानते हैं । 2 यह वार्ता सुनकर सब पुरजन तथा वे चारों सेठ, जिन्होंने स्वामी को अपनी कन्या देना स्वीकार किया था सो बहुत आनन्दित हुए और सब लोग कुमारके आनेकी घड़ी घड़ी गिनने लगे कि कब हम लोग स्वामीका दर्शन करें ? समय तो अरोक चला ही जाता है। केरलपुर में तो दग दिन दग घड़ीके समान निकल गये परंतु राजगृहीमें दश दिन दश वर्षसे भी अधिक प्रत हुए और बड़ी कठिनता से पूरे हुए। सां ठीक है 2 66 जात न जाना जात है; मुखमें सागर काळ | एक पलक भी ना करे; दुःख वियोगमें हाल || दिवस नगर राजगृही; अरु केरलपुर माँहि ।

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