Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 9
________________ । (८) कुछ भी नहीं निकलता, उसी प्रकार संसार असार है। नो भव्य जीव सुखके अभिलाषी हैं वे इसे त्यागकर धर्मका सेवन करें। धर्म दो प्रकारका है- एक सागार (गृहस्थों का) जिसे अणुव्रत या देशत्रत कहते हैं। दूमरा अनागार (साधुओंका) मिसे महाव्रत या सकलव्रत भी कहते है। पहिला परम्परा सच्चे सुख-मोक्षका साधन है। दूसरा साक्षात् मोक्षका साधन है।" इस प्रकार स्वामीने संक्षेपसे संसार दशाका स्वरूप वर्णन करके दो प्रकारके धर्मका स्वरूप वर्णन किया। इनमें एक देव वहां आया और नमस्कार कर अपनी सभामें गबैठा। उसकी अपूर्व काति देखकर राना श्रेणिक बड़े आश्चर्यमें होकर पूछने लगे-हे स्वामिन् ! यह देव कौन है ? तव स्वामीने कहा-'यह विद्युन्माली नाम देव है और अब इसकी आयु तीन दिनकी शेष रह गई है" तव पुनः राजाने पूछा-“हे प्रभो। देवोंकी आयुके जब छह महीना बाकी रह गते है, तव माला मुरझा जाती है और जब इस देवकी आयु केवल तीन ही दिनकी रह गई है तब भी इसकी काति अनुपम है, सो हे प्रभो ! कृपाकर इसका वृत्तांत कहिये।" तब गौतमस्वामीनीने इस प्रकार कहना प्रारंभ किया-"ऐ राजन् ! सुनो, इसी देशमें वर्धमानपुर नामका एक सुन्दर नगर है, जहांका रानामहीपाल अत्यन्त धर्मधुरंधर और न्यायनीतिनिपुण था और जहाँ अनेक सेठ वास करते थे। ऐसे उत्तम नगरमें एक ब्राह्मण रहता या, जो कि महामिथ्यात्वी था और लोगों को निरंतर मिथ्या उपदेश देकर व्याह, श्राद्धादि नाना कोद्वारा अपनी आजीविका करता था उसके भदेव और भावदेव नामके दो पुत्र विद्यामें

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