Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 23
________________ (१२) राजा रत्नचूलको लगी, तब उसने राजा मृगांकके पास दूत भेजा, कि तुम्हारी कन्या मंजु, जो अपनी कुशल चाहते हो तो मुझे, दो। राजा दूतके वचन सुन चिंतातुर हुआ और क्रोध कर दूतसे कहा कि जाकर अपने स्वामीसे कह दे कि कन्या तो रामा श्रेणिकको दे चुका सो अब दूसरेको नहीं दी जा सकती है। तब इतने पोछे आकर सब हाल राजा रत्नचूलसे कहा। अव रत्नचूलने आकर केर. लपुर घेर लिया है और आपकी मॉग लेनेको दवाव डाल रहा है। नगरमें बहुत ही विघ्न कर रहा है, इसलिये महाराज ! अपने श्वसुरकी सहायताको चलो।" यह बात सुनकर राग श्रेणिक विचारने लगे, क्या करना चाहिये ? जो जाता हूँ तो वह विद्याधर और मै भूमिगोचरी हूँ और मार्ग भी विषम है, किस प्रकार पार पड़ेगी ? और नहीं जाता तो मॉग, जो कि एक गरीवकी भी कोई नहीं ले सकता है, जाती है यह बड़ी लज्जा तथा कायरपनकी बात है । इस प्रकार दुचित्ते हो राजा चिंतातुर हो रहे थे कि वह विद्याधर फिर कहने लगा-“हे राम्न् ! वह रत्नचूल बहुत ही पराक्रमी और बलवान् है, सेना भी बहुत साथ है, सिवाय इसके वह विद्याधर है ! रास्ता अति ही विषम है । भूभिगोचरी वहाँपर जा नहीं सकता है।" यह सुनकर स्वामी जंवूकुमार बोले "अरे मूर्ख ! तू क्या वचन बोल रहा है ? सभाके मध्य रत्नचूलकी प्रशंसा करके राजा श्रेणिकको छोटा बता रहा है। काम पड़े विना हे अनान ! तूने कैसे जान लिया कि राजा श्रोणिककी गम्य नहीं है। चुप रहो, ऐसे वचन फिर समामें न कहना।"

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