Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 19
________________ ( १८ ) पूछा - "हे स्वामिन् ! यह यक्ष क्यों नाचता है ?" स्वामीने उत्तर दिया कि - " अर्हदासका सहोदर भाई रुद्रदास था, सो महा कुरूप, व्यसनासक्त था । एक दिन वह अपना सब धन जुआ में हार गया तत्र उधार लेकर खेला, और जब वह भी हार गया. और घरमें भो कुछ न रहा तब उधार लिया हुआ ऋण दे कहाँसे ? निदान साथके खिलाड़ी दूसरे जुआरियोंने, गिनसे उसने ऋग लिया था उसे बाँधकर बहुत ही मारा, यहाँतक कि उसे बेसुध कर दिया । जब यह खबर अर्हदासको मिली तो तुरंत ही उसने रुद्रदासको खाटपर रखाकर घर भगाया और अतिम वेदना जानकर सन्यास मरण कराया । सो यह उस दासका जीव सन्यासके योगसे यक्ष हुआ ह और अब अपने वंशमे मोक्षगामी पुरुषकी उत्पत्ति सुनकर हर्पित हो नाच रहा है । " यह वृत्तांत गौतमस्वामी के मुखसे सुनकर सभा ननोंको भत्यानन्द हुआ और अर्हास तथा उनकी सेठानीके तो आनन्दका पार हो नहीं रहा। जैसे भिक्षुकको कुबेरकी संपत्ति पानसे होता है, उसी प्रकार सर्व नगर में आनन्द ही आनन्द भर गया । घरोघर मंगल गन होने लगा । एक दिन सेठानी जिननती शयनगृह में सुखनंद ले रही थी कि उसी समय वह विद्युतवेग देव ब्रह्मोत्तर वर्गसे चयकर सेठानीके गर्भमें आया । सेठानीने यह शुभ स्वप्न पिछली रात्रमें देखा और आने पतिले उक्त स्वमका फल पूछा । ठीक है - "सती स्त्रियाँ लाभ अलाभ जो कुछ भी हो, सच्चा हाल अपने पति से हो कहती है " तब लेटने स्वामी के -

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