Book Title: Jambuswami Charitra
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 5
________________ (१) ___ इस पर्वतके उत्तर और दक्षिणमें हिमवन् , महाहिमवन्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ऐसे छह महापर्वत दण्डाकार पूर्वस पश्चिम समुद्र तक आड़े फैले हुए है, जिनके कारण जंबूद्वीपके स्वाभाविक सात भाग हो गये है। सुदर्शनमेतके आसपासके देना जो पूर्व से पश्चिम समुद्र तक दो महावतोंके मध्यम पड़ा हुआ है, नाम विदेहक्षेत्र है। यहाँपर सैदव बोस यकर विद्यमान रहते है। गिनके अनादिले ये ही नाम होते आये है-सीमंघरै, युगमंघर, बाहु, सुबाहु, समता, स्वयंप्रनु, ऋष्मानन, अन्तवीर्य, संग्प्रभु, विशालकीर्ति, देवर, चन्द्रानन, द्रबाहु, भुगम, ईश्वर, नेमिप्रेम, वीरपण, महाभद्र, देववेश, अतिवीर्य । यहाँके मनुप्णके आयु, नाय, वल, वीयदि सदैव इथे कालके मनुष्यों के प्रमाग होते है तथा सदैव इस क्षेत्रसे भीक को नामकर मोन प्राप्त कर सकता है। अर्थात् न्हाँपर जान को मिरन नहीं है इसीसे इनका नाम विद क्षेत्र हुआ। कतो उन महार्वतोंके दोनों ओर भरत, एरावत, हमवत् , हरि. स्क, हेण्यवत् , ऐसे पटूक्षेत्र और है। इनमेंसे ऐरावत उत्तरकी मेर और भरत नामका क्षेत्र दक्षिगको जोर बिलकुल समुद्र तटपर है। इन दोनों मध्यमें एक एक वैताड्य पर्वतके पहनाने दोदो भाग हो गये हैं और महापर्वतास दो दो महान्दो निकल कर उत्तर दक्षिण सन्द्रमें गाकर मिली है, जिससे एक भागके तीन तीन भान हो गये हैं। इन सबको मिलाकर दोनों क्षेत्रके छह म्ह भाग हर अर्थात् छ ऐरावतके और छ भरतके इन छह छह खंडास अत्यन्त उत्तर और दक्षिण भागमें समुद्र से मिला हुआ एक एक

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