Book Title: Jambu Jyoti
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

Previous | Next

Page 397
________________ 386 Padmanabh S. Jaini Jambu-jyoti चौरासी बोल (१) ॐ नमः सिद्धेभ्यः । छप्पय छन्द सुनय पोष हत दोष मोक्ष मुख शिव पद दायक गुण मणि कोष सुघोष रोषहर तोष विधायक। एक अनंत सरूप सन्त वन्दित अभिनन्दित निज सुभाव परभाव भाव भासेइ अमंदित ।। अविदित चरित्र विलसित अमित सर्व मिलित अविलिप्त तन । अविचलित कलित निज रस ललित जय जिन विदलित कलिलघन ॥१॥ इकतीसा सवैया नाथ हिम भूधर से निकसि गनेश चित्त भूपरि उतारी शिव सागर लौ धाई है। परमत वाद मरयाद कूल उन्मूलि अनुकूल मारग सुभाय ढरि आई है। बुध हंस सेइ पापमल कौं विध्वंस करै सुरवंश सुमति विकासि वरदाई है। सपत अभंग भंग उठै है तरंग जामैं ऐसी वानी गंग सरवंग अंग गाई है॥२॥ दोहा सेतंबर मत की सुनी जिनते है मरजाद । मिलहि दिगंबर स्यों नहीं जे चौरासी बाद ॥३॥ तिन्ह की कछु संछेपता कहिए आगम जानि। पढत सुनत जिनिके मिटै संसै मत पहिचानि ॥४॥ संसय मत मैं और है अगनित कलपित बात। कौन कथा तिन्ह की कहै कहिए जगतविख्यात ।।५।। चौपाई जगत रीति सौजे न मिलाही, कहे अछेरे जिनमतमाही । जामै कथा कही बहुतेरी, संसय उपजावन भव बेरी ॥६॥ ता सेतंबर मत चाले, संसयमती जानि निरबले भद्रबाहु स्वामी के बारै, बारह वरस काल हुवसारै ।।७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448