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Padmanabh S. Jaini
Jambu-jyoti
चौरासी बोल
(१) ॐ नमः सिद्धेभ्यः ।
छप्पय छन्द
सुनय पोष हत दोष मोक्ष मुख शिव पद दायक गुण मणि कोष सुघोष रोषहर तोष विधायक। एक अनंत सरूप सन्त वन्दित अभिनन्दित निज सुभाव परभाव भाव भासेइ अमंदित ।। अविदित चरित्र विलसित अमित सर्व मिलित अविलिप्त तन । अविचलित कलित निज रस ललित
जय जिन विदलित कलिलघन ॥१॥ इकतीसा सवैया
नाथ हिम भूधर से निकसि गनेश चित्त भूपरि उतारी शिव सागर लौ धाई है। परमत वाद मरयाद कूल उन्मूलि अनुकूल मारग सुभाय ढरि आई है। बुध हंस सेइ पापमल कौं विध्वंस करै सुरवंश सुमति विकासि वरदाई है। सपत अभंग भंग उठै है तरंग जामैं ऐसी वानी गंग सरवंग अंग गाई है॥२॥
दोहा
सेतंबर मत की सुनी जिनते है मरजाद । मिलहि दिगंबर स्यों नहीं जे चौरासी बाद ॥३॥ तिन्ह की कछु संछेपता कहिए आगम जानि। पढत सुनत जिनिके मिटै संसै मत पहिचानि ॥४॥ संसय मत मैं और है अगनित कलपित बात।
कौन कथा तिन्ह की कहै कहिए जगतविख्यात ।।५।। चौपाई
जगत रीति सौजे न मिलाही, कहे अछेरे जिनमतमाही । जामै कथा कही बहुतेरी, संसय उपजावन भव बेरी ॥६॥ ता सेतंबर मत चाले, संसयमती जानि निरबले भद्रबाहु स्वामी के बारै, बारह वरस काल हुवसारै ।।७।।
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