Book Title: Jambu Jyoti
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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Padmanabh S. Jaini
Jambu-jyoti
चौपइ
कहै जुगलीया कोउ मुंवौ ताकी तियन रंडापौ हुवौ ।
सोई रिषभदेव घरि आनी, भई सुनंदा दूजी रानी ॥३७॥ सोरठा
करै न निंदित काज जो समानिक होइ जन । क्यौं करि श्री जिनराज करै अकारज विधिकरन ॥३८॥ कहै कोउ कहै कोउ रिषभ थौ विप्र तिसूं देवानन्द तिय ता गभि जिन वीर उतर्यो । दिन असी तिनिल (?) बस्यौ तिहां तब इंद्र समर्यो हीन जाति दुज कुल विषै महापुरुष अवतार
जोगि नांहि तातै करौं और गरभ संचार ॥३९॥ सोरठा
कीयौ इन्द्र आदेस हिरनगवेषी देवको।
कीधौ तास परवेस त्रिसला के तिनि गर्भमें ॥४०॥ चौपइ
पहिलै गर्भ क्यों न हरि लीनौ, आसी दिन बीतै क्यों कीनौ।
पहिलै कहा जानै हौ नाही, कहौ विचारि धारि मनमांहीं ॥४१॥ अडिल
दिज घरवासि सिद्धारथ घर जब संचरिउ। गरभ कल्यानक कहौ कहां जिन को कर्यो ।। जौ दुज घरि तौ हौइ हीनता इसकी सिद्धारथ घरि कीया न बनै हदीस की ॥४२।। जौ दोनौ घरि तौ कल्यानक छह गनौ । जौ दोनौ कै नाहि तुछ पौँ हीलनौ । सीलभंग तौ होइ जिनेश्वरमात का
जातै वीरज नांहि सिद्धारथ तात का ॥४३॥ चौपइ
जहां बात का नांहि निबेरी(रा), तहां कलपि करि कहै अछेरा।
ऐसी बानी मूढ बखानै, दरसन मोहे लीन सरद्यानै ॥४४।। दोहरा
पंच कुमार जिनेस है सत्यारथ मत मांहि । मल्लि नेमि एइ कुमर कहै दोइ अरु नांहि ॥४५|| तीर्थकर जिन कौं नमै सामानिक जिन होइ । कहै बाहुबलि केवली नयौ(म्यौ) रिषभ के पाइ ॥४६।।
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