Book Title: Jambu Jyoti
Author(s): M A Dhaky, Jitendra B Shah
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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Hemaraj Pande's Caurāsī Bol
389
चौपइ
जौ मुनि तपवी रिद्धि के धारी, गहत अहार ते न नीहारी ।
क्यौं करि सकल जगत के स्वामी, करै निहार अमलपदगामी ।।२७|| दोहरा
जाकै देखि मिटै विकट घोर उपद्रव वर्ग।
दोष होइ ताकौं कहै रोग और उपसर्ग ।।२८।। सवैया इकतीसा
कहै कोउ क्रोध साला (?) हुवौ है गोसाला मुनि तिनितेजोज्वालमाला छोडी परजलती। वीरके समोसरणि दाहे जिन दोइ मुनि ताकी झाल स्वामीहू को पहुची उछलती ॥ तहां भयो उपसर्ग नाही उषमा तै फिरि उदर की व्याधि लइ आमलो प्रज्वलती । परगट दोष जांनि तजै औसौ सरधान
ज्ञानवान जिनिकै सुजोति जगी बलती ।।२९।। दोहरा
जनमत ही मति श्रुति अवधि, तीन ग्यान घट जास । कहै पढ्यौ वट साल सों, वर्धमान गुनवास ॥३०॥ कहै और सितवास सब (?) जब जिन होइ विराग । एक वरस लौ दान दे, अंत करै घरत्याग ॥३१॥ जिन वैराग दसा धरत, त्याग सब पर भाव । कहा जानि आपनौ करों, पाछै दान बताव ॥३२।। धरै दिगंबर दसा जिन, पाछै अंबर आनि ।
इंद्र धरै जिनकंधपरि, यह संसयमति मानि ॥३३।। चौपइ
गनधर विना वीर की धनी निफल, खिरी न काहू मानी।
समकितव्रत का भया न धारी, कोउ तहां कहै सविकारी ॥३४|| दोहरा
कै न खिरै जौ खिर, तौ होइ सफल तहकीक।
खिरै फलविना जे कहै, तिनकी वात अलीक ॥३५।। अडिल्ल
लोकनाथ सो जिनवर जाकौं पूत है, तिस माता स्यौ कहै और परसूत है। अदिनाथ को प्रगट कहतु है जुगलीया, तिनहींकौं फिरि कहै भए ते पतितिया ॥३६।।
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