Book Title: Jainism Author(s): Vallabh Smarak Nidhi Publisher: Vallabh Smarak NidhiPage 73
________________ ६८ चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे तथा नरक, स्वर्ग आदि का स्थान एवं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति रूप शरीर ये सब पुद्गलास्तिकाय के कार्य हैं । दृश्यमान वस्तुओं में जो परिवर्तन होता है या हो रहा है, तथा वर्त्तमान समय में विज्ञान (साइंस ) के आधार पर जो विचित्र प्रकार की वस्तुएँ उत्पन्न हो रही हैं, ये सब पुद्गलास्तिकाय की शक्ति से हो रही हैं जिनका विस्तृत वर्णन जैन धर्म के योनिप्राभृत आदि शास्त्रों में मिलता है । आदि जगत व्यवस्था ६ काल - द्रव्य - यह नये से पुराना का निमित्त है । षटू-काय जैन धर्म में छः वस्तुओं को जीव सहित माना है, जिनको षट् काय कहते हैं, उनके नाम ये हैं – १ पृथ्वीकाय, २ अप्काय, ३ तेजस्काय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय और ६ सकाय । इनमें— १ पृथ्वीकाय — एकेन्द्रिय अर्थात् केवल स्पर्शनेन्द्रिय वाले असंख्य जीवों के शरीरों का एक पिण्ड है परन्तु इस पृथ्वी के जिस भाग पर अग्नि, क्षार, ताप, शीत आदि का मिलाप होता है उस भाग के जीव मर जाते हैं और उन जीवों का केवल शरीर रह जाता है उसे अचित पृथ्वी कहते हैं । २ अप्काय - पानी ही जिन जीवों का शरीर है, उसे अपकाय कहते हैं संसार में जितना पानी है, वह सभ असंख्य जीवों के शरीरों का पिण्ड है, अग्नि आदि शस्त्रों के लगने से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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