Book Title: Jainism Author(s): Vallabh Smarak Nidhi Publisher: Vallabh Smarak NidhiPage 92
________________ ટક इतने इतने योजन से अधिक न जाउंगा, ऐसा नियम अंगीकार करना, यह छट्टा दिशा - परिमाण व्रत है । (७) भोगोपभोग - परिमाण व्रत - मांस, मदिरा, रात्रिभोजन आदि २२ अभक्ष्य भक्षण का त्याग करे और पन्द्रह प्रकार के वाणिज्य का त्याग करे अथवा परिमाण करे । पन्द्रह वाणिज्य के नाम ये है: १ अंगार कर्म, २ बन कर्म, ३ शकट कर्म, ४ भाटक कर्म, ५ स्फीटक कर्म, ६ दंत वाणिज्य, ७ लख (लाक्षा) वाणिज्य, ८ रस वाणिज्य, ९ केश वाणिज्य, १० विष वाणिज्य, ११ यंत्र पीलन, १२ निर्लाछन कर्म, १३ दवदान, १४ सरोवर द्रहादि शोषण और १५ असति पोषण । इनका विस्तार जैन धर्म के शास्त्रों से जानना । यह सातवां भोगोपभोग व्रत है । (८) अनर्थदण्ड - विरमण व्रत – १ अपध्यान करना, २ पापोपदेश करना, ३ हिंसाकारक वस्तु देनी और ४ प्रमादाचरण । इन चार प्रकार के अनर्थ दण्ड का त्याग करे । यह अष्टम अनर्थ दण्ड - विरमण व्रत है । ( ९ ) सामायिक व्रत - सर्व संसार के धंधे छोड़ कर जघन्य से जघन्य (कम से कम ) दो घड़ी ( ४८ मिनिट ) तक सावद्य योग (पाप सहित क्रिया ) का त्याग कर धर्म ध्यान में प्रवृत्त हो । यह नवमा सामायिक व्रत है । (१०) देशावकाशिक व्रत - पूर्वोक्त सर्व व्रतों का और भी संक्षेप करना, दसवां देशावकाशिक व्रत है । ( ११ ) पौषधोपवास व्रत - चारों प्रकार के आहारों का www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, SuratPage Navigation
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