Book Title: Jainism Author(s): Vallabh Smarak Nidhi Publisher: Vallabh Smarak NidhiPage 91
________________ मृषा (झूठ) बोलने का त्याग करे । ४ कोई पुरुष मौतबर ( विश्वसनीय बड़ा आदमी) समझ कर अपना धन या और कोई वस्तु रख जाये और फिर जब वह मागने के लिये आवे तो ऐसा झूठ न बोले कि तू मेरे पास अमुक वस्तु रख ही नहीं गया। ५ कूट-साक्षी अर्थात् झुठी गवाही न दे । इस तरह उक्त पांच प्रकार का झुठ न बोले। यह दूसरा स्थूल मृषावाद विरमण व्रत है। (३) स्थूल अदत्तादान-विरमण व्रत-१ सचित्त-द्विपद चतुष्पदादि । २ अचित्त-सुवर्ण रौप्यादि। ३ मिश्र-अलंक्त स्त्री आदि इनकी चोरी का त्याग करे तथा कोई धन आदि रख गया हो अथवा किसी का धन दबा हुआ हो या पड़ा हो उसको ग्रहण न करे । यह तीसरा स्थूल अदत्तादान-विरमण व्रत है। (४) स्वदार सन्तोष-परस्त्री-विरमण व्रत-जो स्त्री पर विवाहिता अथवा संगृहीता या वेश्या इत्यादि हो, इनके साथ मैथुन सेवन का त्याग करे और स्वदार-संतोष अंगीकार करे । यह चौथा स्वदार सन्तोष-परस्त्री-विरमण व्रत है। (५) परिग्रह-परिमाण व्रत-नव प्रकार के परिग्रह जैसे धन धान्य क्षेत्र वस्तु आदि को, स्वेच्छा परिमाण से अधिक रखने का त्याग करे । यह पांचवां परिग्रह-परिमाण व्रत है।। (६) दिशा-परिमाण-धर्म-कार्य को छोड़ कर अपने व्यापारादि के लिये षट् दिशाओं में से अमुक-अमुक दिशा में रक्षा करने वाले का अभिप्राय जीव को मारने का नहीं होता, बल्कि अपनी रक्षा करना होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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