Book Title: Jainism
Author(s): Vallabh Smarak Nidhi
Publisher: Vallabh Smarak Nidhi

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Page 89
________________ १७ वृद्धानुराग-परिणत मतिज्ञान, वृद्ध सदाचारी पुरुषों के अनुसार चले। १८ विनीत-गुरुजन का गौरव-आदर करे । १९ कृतज्ञ-किसी पुरुष ने इहलोक या परलोक सम्बन्धी थोड़ासा भी उपकार किया हो तो उसके उपकार को भूले नहीं अर्थात् कृतघ्न न हो। २० परहितार्थकारी-दूसरों के उभय लोक हितकारी कार्य करे। २१ लब्धलक्ष-जो कुछ सीखे और श्रवण करे उसके परमार्थ को तत्काल समझे। ___षट्-कर्म पहिले कह चुके हैं कि षट्-कर्म और षडावश्यक करे, वे षट्-कर्म* ये हैं १ देव पूजा, २ गुरू उपासना, ३ स्वाध्याय, ४ संयम, ५ तप और ६ दान । षडावश्यक षडावश्यक ये है-१ सामायिक, २ चतुर्विशतिस्तव, ३ वन्दन, ४ प्रतिक्रमण, ५ कायोत्सर्ग और ६ प्रत्याख्यान । *देव पूजा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः । दानं चेति गृहस्थाणां षट्कर्माणि दिने दिने । (उपदेश तरंगिणी तरंग ३ लोंक १) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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